पटना : मिट्टी के दीये का अपना ही आकर्षण है। जलते दीये की लौ से जो रौशनी निकलती है वो आंखों को सुकून देती है। आज के हाईटेक युग में जहां हमारी संस्कृति एवं परंपराएं आधुनिक गजट एवं तौर—तरीकों की मार से त्रस्त हैं, वहीं मिट्टी के दीयों को लेकर लोगों में अभी भी क्रेज बना हुआ है। यद्यपि मिट्टी के दीये का इस्तेमाल महज कर्मकांड तक सीमित रह गया है। पटना हाइकोर्ट के सामने दीपावली के मौके पर विशाल दीया मार्केट सज चुका है। यहां परंपरागत दीये का स्टाल लगाने वाले दीपक ने बताया कि आज भी लोग जब दीपावली की खरीदारी करने निकलते हैं तो दीये की दुकान जरूर ढूंढते हैं।
हालांकि खरीददारों की संख्या थोड़ी कम जरूर रहती है, पर दिनभर तांता तो लगा ही रहता है। हाल के कुछ वर्षों में लोगों का रुझान एक बार फिर मिट्टी के दीये को लेकर अच्छा होने लगा है। राजू नामक दुकानदार ने तो साफ—साफ कहा कि मेरे दुकान से तो मिट्टी के दीये की ही खरीदारी हो रही है, वैसे मैंने डिज़ाइनर दीये भी दुकान में सजा रखे हैं। बड़ी संख्या में राजधानीवासी मेरी दुकान पर आ रहे हैं। एक अन्य दुकानदार ने बताया कि पटना विमेंस कॉलेज के बगल में लगने वाले दीया बाजार में परंपरागत के साथ ही डिज़ाइनर दीयों की भी जबरदस्त धूम है।
मिट्टी के दिये खरीद रही एक लड़की ने कहा कि मेरे पापा कहते हैं कि मिट्टी के दीये की जो रौशनी होती है उसका मुकाबला सीरीज बल्ब से निकलने वाली रौशनी नहीं कर सकती। दीये से निकलने वाली रौशनी से मन प्रसन्न हो जाता है। जलते दीये को देखकर लगता है कि हम परंपरा से जुड़ गए हैं। वही एक ग्राहक ने बड़े मार्के की बात कही कि मिट्टी का दिया हमें ईश्वर और आस्था से जोड़ता है।
(मानस दुबे)