नवादा : जानकी की निर्वासन स्थली सीतामढी उपेक्षा का शिकार होकर रह गयी है। राज्य सरकार ने इसे रामायण सर्किट से भी नहीं जोड़ा। ऐसे में इसका विकास जो अब तक होना चाहिए वह नहीं हो सका।
जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर मेसकौर प्रखंड क्षेत्र में (तमसा नदी) अब तिलैया नदी के किनारे अवस्थित सीतामढी का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा है। बाल्मीकि रामायण की रचना सीतामढी के पास बारत गांव में की गयी थी। आज भी बाल्मीकि ऋषि के आश्रम के अवशेष यहां मौजूद हैं। इनकी काफी पुरानी प्रतिमा तालाब के बीच अवस्थित है। किंवदंती है कि जब भगवान राम ने धोबी के उलाहने पर अपने भाई लक्ष्मण को गर्भवती मां जानकी को जंगल में छोड़ने का आदेश दिया था, तब उन्हें तमसा नदी अब तिलैया के जंगलों में छोङा गया था। उस समय यहां महर्षि बाल्मीकि निवास किया करते थे।
उन्होंने मां जानकी को शरण दी। बाद में उन्होंने अपने पुत्र लव को न केवल जन्म दिया, बल्कि अस्त्र- शस्त्र के साथ ज्ञान की शिक्षा दी। माना जाता है कि जब मां सीता कपङे धोने के लिए लव को बाल्मीकि मुनी के पास छोड़ कर चली गयीं। इसी दौरान वे ध्यान में लीन हो गये। लव कहीं दूर जंगल में घूमने चले गये। जब महर्षि का ध्यान टूटा और लव को गायब पाया तो उन्होंने अपने तपोबल से कुश को उत्पन्न कर दिया, ताकि मां सीता को पुत्र के नहीं होने का आभास न हो। जब भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ का घोङा छोङा तो यही उनके दोनों पुत्रों ने घोड़े को रोककर युद्ध किया तथा युद्ध में हराकर हनुमान को बंदी बना लिया था। जिस विशालकाय पत्थर में घोङे को बांधा गया था वह अब भी मौजूद है। इस प्रकार कई ऐसे साक्ष्य अब भी मौजूद हैं, जो इसे सीता की निर्वासन स्थली होने के प्रमाण उपलब्ध कराते हैं। इसके वाबजूद अब तक इसे रामायण सर्किट से नहीं जोङना अपने आप में बडा सवाल खडा करता है।
लगता है मेला:
अगहन पूर्णिमा के अवसर पर नवादा की सीतामढी में काफी समय से मेला लगता आ रहा है। मेले में काफी दूर-दूर से लोग आते हैं। काष्ठ निर्मित सामानों की बिक्री के कारण यह मेला काफी मशहूर है, जिसकी तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं।
तालाब भी है मौजूद
मां सीता जिस तालाब में स्नान व कपङे धोने का काम करती थीं आज भी कुछ सुधार के साथ मौजूद है। मान्यता है कि अगहन पूर्णिमा के दिन उक्त तालाब में स्नान के बाद पुराने कपङे वही छोड़ देने से निःसंतान महिलाओं को पुत्र व चर्म रोग से मुक्ति मिलती है। अगहन पूर्णिमा के दिन दूर-दूर से लोग तालाब में स्नान कर मंदिर में मां सीता व लव-कुश की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही अश्वमेघ यज्ञ का घोङा व हनुमान को जिस पत्थर के खंभे से बांधा गया था आज भी मौजूद है। अगहन पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले मेले की एक विशेषता यह है कि रजौली अनुमंडल के मेसकौर, सिरदला व नरहट प्रखंड क्षेत्र के हर घर में नये चावल की रोटी व नये आलू की सब्जी खाने का प्रावधान है, जो आज भी जारी है। इस प्रकार सीता की निर्वासन स्थली होने के एक नहीं सैकड़ों प्रमाण व बाल्मीकि रामायण की रचना पास के बारत गांव में किये जाने, बाल्मीकि की मूर्ति बारत गांव में होने के बावजूद आजतक रामायण सर्किट से नहीं जोड़े जाने से जिले के लोगों में सरकार के प्रति निराशा है।