नवाचारी शिक्षा

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आधुनिक युग में शिक्षा को अधिक प्रभावोत्पादक एवं गुणवत्तापूर्ण स्वरूप प्रदान करने हेतु नित अभिनव प्रयोग हो रहे हैं। हमारी परंपरागत शिक्षा प्रणाली से अलग नई विधियों, नई कार्यपद्धतियों एवं नई तकनीक द्वारा अधिकाधिक फलदायी एवं परिवर्तित रूप में प्रस्तुत करने के लिए जिन नई गतिविधियों या क्रियाकलापों का समावेश किया गया है, उनमें नवाचार की विशेष एवं महती भूमिका है। नवाचार वस्तुतः नव़ व आचार दो शब्दों के योग से बना है, जिसका आशय किसी सेवा या उत्पाद या प्रक्रिया में नवीन प्रयोग से है, जिससे उसकी गुणवत्ता में संवर्धन हो।

शिक्षण संस्थानों खासकर, प्रारंभिक विद्यालयों में शिक्षा को और अधिक अर्थवत्ता प्रदान करने तथा उसे रोचक एवं आनंदपूर्ण बनाने हेतु नवाचार का प्रयोग शिक्षा के नए प्रतिमानों की स्थापना में सहायक साबित हो रहा है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 सुझाती है कि बच्चों को उनके स्कूली जीवन से बाहर के जीवन से जोड़ा जाना चाहिए। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा द्वारा विद्यार्थियों में रटने की प्रवृत्ति की जगह बोधात्मक शिक्षण के द्वारा सीखने पर विशेष बल दिया गया है। वस्तुतः गतिविधियों और क्रियाकलापों के माध्यम से बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित करना और उनमें कल्पनाशीलता को बढ़ावा देना नवाचार की मूल अवधारणा है। शैक्षिक विधाओं में नवाचार ने अपनी उपादेयता और सार्थकता सिद्ध कर दी है।

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नवाचार को लेकर शिक्षाविदों, विचारको एवं चिंतकों ने अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए हैं। सर्वविदित है कि कुछ बदलाव हेतु समाज में बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है। नवाचार के प्रयोग से विद्यालयों में सीखने की प्रक्रिया प्रभावकारी रूप से संपन्न होती है। इसी प्रकार नवाचार का महत्व विद्यार्थियों में उत्सुकता एवं नवचेतना के संचरण में भी सहायक सिद्ध होता है।

टायटेन के अनुसार, ’’शैक्षिक नवाचारों का उद्भव स्वयं नहीं होता, बल्कि उन्हें खोजना पड़ता है तथा सुनियोजित तरीके से इन्हें प्रयोग में लाना होता है, ताकि शैक्षिक कार्यक्रमों को परिवर्तित परिवेश में गति मिल सके और परिवर्तन के साथ गहरा तारतम्य में बनाए रख सकें।’’ इस प्रकार नवाचार एक नवीन विचार है ,एक व्यवहार है अथवा वस्तु या कोई नया तरीका है जो नवीन और वर्तमान का गुणात्मक स्वरूप है। महान वैज्ञानिक डार्विन के अनुसार प्रकृति उन्हीं को जीने का अधिकार देती है जो जीवन संघर्ष में सफल होते हैं। अतः स्वयं के अस्तित्व हेतु हमें नवाचार को स्वीकारना होगा।

दूसरी ओर एक प्रश्न और उठता है कि नवाचार की आवश्यकता क्यों है? इस संबंध में कहा जा सकता है कि जिस प्रकार आवश्यकता आविष्कार की जननी है, उसी प्रकार से शिक्षा प्रणाली में बदलाव द्वारा ही विद्यालयों में सीखने की प्रणाली को अधिक रोचक एवं प्रभावी बनाया जा सकता है। नवाचार की आवश्यकता पर बल देते हुए मीडिया मुगल रुपर्ट मर्डोक का विचार है कि दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है, अब बड़े छोटे को हरा नहीं पाएंगे। अब जो तेज है, वे धीमे को हराएँंगे। यदि हमें विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति एवं ठहराव को बढ़ाना है, तो शिक्षण अधिगम को रोचक एवं आनंददायक बनाना होगा, अन्यथा शिक्षा की परंपरागत प्रणाली से ढाक के तीन पातवाली कहावत चरितार्थ होगी। आनंदमयी शिक्षण एक ऐसा उपक्रम है, जिसके द्वारा विद्यार्थियों पर बिना कोई मानसिक दबाव डाले सहज तरीके से शिक्षण करवाकर विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति बढ़ाई जा सकती है। नवाचार को अपनाकर क्षेत्रीय परिवेश के अनुरूप क्रियाकलापमूल शिक्षण को प्रस्तुत किया जाना श्रेयस्कर है।

उल्लेखनीय है कि शिक्षा में नवाचार की भूमिका सर्वोपरि है। शिक्षण, पाठ्यक्रम और शिक्षक शिक्षा के साथ अभिनव होना चाहिए। कक्षाओं की वास्तविक अधिगम परिस्थिति में नवाचार के प्रतिमानों का समावेश अधिगम को अधिक त्वरा दे सकेगा।

डाॅ. प्रणव पराग

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