एशिया-प्रशांत देशों में जलवायु परिवर्तन
स्वीटी कुमारी
शोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग,
वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा
हाल ही में एक अध्ययन रिपोर्ट “द रेस टू नेट ज़ीरोः एक्सेलेरेटिंग क्लाइमेट एक्शन इन एशिया एंड द पैसिफिक“ में एशिया एवं प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (UNESCAP) ने खुलासा किया है कि एशिया एवं प्रशांत के अधिकतर देशों के पास चरम मौसमी घटनाओं तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न बढ़ते खतरों का प्रबंधन करने हेतु पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। यह अध्ययन क्षेत्र में अनुकूलन और शमन प्रयासों का समर्थन करने के लिये आवश्यक डेटा और संसाधनों की कमी को दर्शाता है। इस क्षेत्र में पिछले 60 वर्षों में बढ़ते तापमान ने वैश्विक औसत को पार कर लिया है, जिससे तीव्र चरम मौसम की घटनाएँ एवं प्राकृतिक खतरे उत्पन्न हो गए हैं।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात, गर्म हवाएँ, बाढ़ तथा सूखे के कारण जीवन की महत्त्वपूर्ण हानि, विस्थापन, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और गरीबी के स्तर में वृद्धि हुई है। इस तरह की आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित शीर्ष 10 देशों में से छह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं, जिससे खाद्य प्रणालियों में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों को नुकसान हो रहा जलवायु परिवर्तन और जलवायु-प्रेरित आपदाएँ महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, विकलांग व्यक्तियों, प्रवासियों, स्वदेशी आबादी तथा कमज़ोर स्थितियों वाले युवा लोगों सहित कमज़ोर समूहों पर गंभीर रूप से बोझ डालती हैं। इन चुनौतियों के कारण गरीबी और सामाजिक असमानता जैसे अंतर्निहित कारकों के उभार में तेज़ी देखी जा रही है जो विकास की प्रगति में बाधा बन रहे हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र विश्व के आधे से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं। यह क्षेत्र तीव्र विकास और विशाल आबादी के चलते वैश्विक जलवायु संकट में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस क्षेत्र के भीतर विभिन्न निचले इलाके और कमज़ोर छोटे द्वीपीय देश स्थित हैं, जो इसे जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों के प्रति सुभेद्य बनाते हैं। जलवायु परिवर्तन की आर्थिक लागत म्ैब्।च् का अनुमान है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्राकृतिक और जैविक खतरों से लगभग 780 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक औसत नुकसान हुआ है। मध्यम जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के अनुसार, इस नुकसान के 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर सबसे खराब स्थिति में 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। जलवायु कार्रवाई के लिये मौजूदा वित्तपोषण इस क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस कम करने तक सीमित है।
जलवायु परिस्थितियों में होने वाले व्यापक परिवर्तनों के कारण कई पौधों और जानवरों की पूरी जनसंख्या विलुप्त हो गई है एवं कई अन्यों की जनसंख्या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। कुछ क्षेत्रों में कुछ विशेष प्रकार के वृक्ष सामूहिक रूप से विलुप्त हो गए हैं। जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तनों की वजह से जल-प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं एवं वर्षा अनियमित रूप से हो रही है और साथ ही वर्षा का स्वरूप भी बिगड़ता जा रहा है। ये सारी परिस्थितियां पर्यावरण में असंतुलन को बढ़ा रहे हैं। दुनिया भर में बिगड़ते मौसम की घटनाएं पहले से ही ज़्यादा तीव्र हो गई हैं जिससे जीवन और आजीविका को ख़तरा पैदा हो गया है।
धरती पर गर्मी के इसी तरह बढ़ने से कुछ इलाके बंजर हो सकते हैं, क्योंकि खेत रेगिस्तान में बदल जाएंगे। पूर्वी अफ्रीका में लगातार पांचवें साल बारिश नहीं हुई जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम का कहना है कि इस वजह ने 2.2 करोड़ लोगों को भूख के गंभीर ख़तरे में डाल दिया है। अत्यधिक तापमान जंगल की आग के ख़तरे को भी बढ़ा सकता है, जैसा कि पिछली गर्मियों में यूरोप में देखा गया था। फ्रांस और जर्मनी में औसत की तुलना में जनवरी और जुलाई 2022 के बीच लगभग सात गुना अधिक ज़मीन आग में जल गई।
गर्म तापमान का मतलब यह भी है कि जमी हुई बर्फ़ तेज़ी से पिघलेगी और समंदर का जलस्तर बढ़ेगा। कई इलाकों में ज़्यादा बारिश की वजह से पिछले साल ऐतिहासिक बाढ़ आई, जैसे की चीन, पाकिस्तान और नाइजीरिया। विकासशील देशों में रहने वाले लोगों को सबसे ज़्यादा नुक़सान होने की उम्मीद है क्योंकि उनके पास जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए कम संसाधन हैं. लेकिन ये देश निराश हैं क्योंकि इन्होंने विकसित देशों के मुक़ाबले ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन किया है। जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है। प्राकृतिक कारकों के अलावा, मानव गतिविधियों ने भी इस परिवर्तन में प्रमुख योगदान दिया है। मनुष्य प्राकृतिक कारणों को तो नियंत्रित नहीं कर सकता लेकिन वह कम से कम यह तो सुनिश्चित जरूर कर सकता है वह वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली अपनी गतिविधियों को नियंत्रण में रखे ताकि धरती पर सामंजस्य बनाया रखा जा सके। जलवायु परिवर्तन की समस्या को गंभीरता से लेना आवश्यक है और वातावरण को प्रभावित कर रहे मानवीय गतिविधियां जो वातावरण को खराब करने में योगदान दे रहे हैं, उनको नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। एशिया प्रशांत देशों को प्रमुख बिन्दुओं पर कार्य करने की आवश्यकता है जो निम्न हैं- जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण, निम्न-कार्बन वाले परिवहन मार्गों में स्थानांतरण, एकीकृत भूमि उपयोग योजना के माध्यम से परिवहन दूरी को कम करना, वाहन और ईंधन दक्षता में सुधार, क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में जलवायु संबंधी विचारों को एकीकृत करना। जलवायु-स्मार्ट व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देना, निजी क्षेत्र को निम्न-कार्बन मार्गों और धारणीयता प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना, स्थिरता रिपोर्टिंग और ग्रीनहाउस गैस लेखांकन के माध्यम से पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्त्व बढ़ाना।
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