एक वर्ष का ‘पाटलिपुत्र’

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बिहार के सबसे पुराने पटना विश्वविद्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय आकार ले रहा है। मात्र एक वर्ष पुराने इस विश्वविद्यालय को जो नाम मिला है उससे न केवल बिहार बल्कि संपूर्ण भारत के गौरवशाली इतिहास का बोध होता है। पटना विश्वविद्यालय को गुमान हो सकता है कि वह बिहार का सबसे पुराना विश्वविद्यालय हैं। लेकिन, इतिहास की स्मृति से जब पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय को जोड़कर इसके विस्तार क्षितिज की कल्पना की जाएगी, तो भारतीय ज्ञान की परंपरा के कई बिंदु इस आधुनिक युग में जगमगा उठेंगे। पटना की तुलना में पाटलिपुत्र आधुनिक और अधिक व्यापक हो सकता है। जब सड़क बन रही होती है, तब हमारा सारा ध्यान सड़क बनाने पर होता है। यह अलग बात है कि बाद में हमें पता चलता है कि वही सड़क हमें मंजिल तक ले जाती है।

करीब एक वर्ष पूर्व इस विश्वविद्यालय का उद्घाटन करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि इसका नाम पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय है। पाटलिपुत्र शब्द अपने आप में एक ऐतिहासिक शब्द है, इसलिए इस विश्वविद्यालय का काम भी ऐतिहासिक होना चाहिए। इस विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति के रूप में प्रो. गुलाब चन्द्र राम जायसवाल ने इसकी स्थापना के महज दो दिन बाद अर्थात 20 मार्च, 2018 को कार्यभार संभाला। महामना पं. मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिंदू विश्वविद्याल से यहां आए प्रो. जायसवाल ने उसी समय अपने विजन और मिशन को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का विश्वविद्यालय होगा, जहां अंतरविषयी शोध, कौशल विकास, प्रबंधन, ज्ञान-विज्ञान एवं नवाचार पर इस तरह विशेष बल दिया जाएगा, ताकि यहां के विद्यार्थी एवं शिक्षक वैश्विक स्तर पर अध्ययन, अध्यापन एवं शोध के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें।

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भले ही यह एक नया विश्वविद्यालय है। लेकिन, विरासत व विस्तार की दृष्टि से यह असाधारण है। मगध विवि के विभाजन के बाद इस नवसृजित विश्वविद्यालय के अंतर्गत पटना और नालंदा जिले के 25 अंगीभूत महाविद्यालय, 3 सरकारी महाविद्यालय, 2 अल्पसंख्यक महाविद्यालय, 51 बीएड काॅलेज और सैकड़ों की संख्या में संबद्ध महाविद्यालय आए। विभाजन के बाद सबसे पहली चुनौती संसाधनों को लेकर सामने आयी। चाहे वह मानव संसाधन हो अथवा अर्थ संसाधन, दोनों क्षेत्रों में अपने पैतृक विश्वविद्यालय से इसे अब तक कोई भी सहायता नहीं मिली। कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए कुलपति ने किसी तरह विभिन्न महाविद्यालयों से योग्य शिक्षकों एवं अनुभवी शिक्षकेतर कर्मियों को बुलाकर एक टीम बनाई और दिन-रात मेहनत करते हुए इसको क्रियाशील करने का प्रयास शुरू किया। प्रतिकुलपति ने भी विकास की यात्रा में अपना भरपूर सहयोग दिया। दूसरी अड़चन आंतरिक रही। अपने प्रथम वर्ष के कार्यकाल में लगभग 7-8 महीने तक इस विश्वविद्यालय का कामकाज कुलसचिव के बिना ही चलता रहा। इससे भी इसके विकास की रफ्तार में थोड़ी कमी आई। धीरे-धीरे नियमित कुलसचिव की भी नियुक्ति हुई। विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों की भी नियुक्ति की गई। हर संकाय के संकायध्यक्षों की नियुक्ति की गई। अकादमिक परिषद, अभिषद् परिषद्, अधिषद् परिषद्, क्रीड़ा परिषद्, सांस्कृतिक परिषद् आदि बनाए गए और इनकी नियमित बैठकें होने लगीं।

अंगीभूत महाविद्यालयों की गतिविधियों को जानने के लिए कुलपति ने एक-एक काॅलेज का दौरा किया। उनकी समस्याओं को सुना और बहुत हद तक उनको दूर करने का प्रयास करने लगा। राजभवन से बीएड महाविद्यालयों की गतिविधियों को अद्यतन बनाने के लिए ‘राजभवन बीएड एप’ लांच किया गया, जिसमें हमारे विश्वविद्यालय के सभी बीएड महाविद्यालयों ने अपनी दैनिक गतिविधियों को न सिर्फ अपलोड किया बल्कि इसकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए दो-दो बार कार्यशाला का आयोजन भी किया। विभिन्न महाविद्यालयों में जो एनसीसी के कैडेट्स हैं, उनका निरीक्षण किया गया। विश्वविद्यालय के स्तर पर एनएसएस पदाधिकरी की नियुक्ति करके ‘क्लीन गंगा, ग्रीन गंगा’, ‘क्लीन पाटलिपुत्र, ग्रीन पाटलिपुत्र’, ‘स्वच्छता अभियान’ एवं ‘पौधारोपण’ जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की गयी।

अकादमिक क्षेत्र में कदाचार मुक्त परीक्षा के लिए वातावरण तैयार किया गया। एक दिवसीय एवं दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद एवं सेमिनार जैसे आयोजनों के माध्यम से उच्च शिक्षा की समृद्ध परंपरा की शुरुआत की गयी। व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में नामांकन के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया। आॅनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था की गई तथा ग्यारह विभागों में विश्वविद्यालय की पीजी की पढ़ाई शुरू हुई। विदित हो कि इसी वर्ष कुलाधिपति व बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन के अदेशानुसार पीजी की कक्षाओं में सीबीसीएस (च्वायस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम) लागू किया गया। विश्वविद्यालय ने पूरी कुशलता से इसे कार्यान्वित करने का प्रयास किया। यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालय को 2(एफ) की मान्यता मिली तथा भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) द्वारा आजीवन संबद्धता मिली।

कुलपति ने कार्यभार संभालते ही सबसे पहले यूजी एवं पीजी के पाठ्यक्रमों का गहन विश्लेषण किया। पीजी मंे तो पाठ्यक्रम का निर्धारण राजभवन ने किया है। लेकिन, यूजी के पाठ्यक्रम में नूतनता लाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक ‘बोर्ड आॅफ स्टडीज’ का गठन किया। पहले से चले आ रहे पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव किया गया, ताकि विद्यार्थियो को इस प्रतियोगिता के जमाने में कोई कठिनाई न हो। रह रहकर महाविद्यालयों के द्वारा फैकल्टी की कमी की बात की जाती थी। इसके निदान के लिए कुलपति ने आॅनलाइन गेस्ट फैकल्टी की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की। वित्तीय पारदर्शिता बनी रहे, इसके लिए शिक्षकों एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों को नियमित वेतन भुगतान तथा सेवांत लाभ की प्रक्रिया शुरू की गई है।

कुलपति प्रो. जायसवाल कहते हैं- ’’महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, तो इसके पीछे बच्चों के मानसिक एवं शारीरिक विकास के साथ-साथ चारित्रिक विकास पर बल दिया था। इस विकास के लिए यह आवश्यक था कि बच्चों का सर्वांगीण विकास कैसे हो। चाहे वह खेलकूद हो, चाहे अभिनय हो, चाहे वाद-विवाद हो, चाहे गायन हो या फिर नर्तन हो। इस दिशा में ‘अंतरमहाविद्यालय खेलकूद प्रतियोगिता’ का आयोजन किया गया और बिहार के स्तर पर ‘एकलव्य’ में भाग लेते हुए हमारे विद्यार्थियों ने छह गोल्ड मेडल प्राप्त किया। उसी तरह सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन के लिए मैंने ‘अंतरमहाविद्यालय सांस्कृतिक प्रतियोगिता’ आयोजित करवाई और बिहार के स्तर पर ‘तरंग’ में भाग लेते हुए हमारे छात्र-छात्राओं ने ग्यारह मेडल जीते। आरटीआई कोषांग, पदोन्नति कोषांग, मीडिया कोषांग, सेवान्त लाभ कोषांग एवं स्थापना कोषांग को मैंने शुरू किया ताकि कार्यों का निष्पादन त्वरित गति से हो। कार्यभार ग्रहण करने के कुछ ही दिनों के बाद मैंने विश्वविद्यालय का वेबसाइट तैयार करवाया। किसी भी विश्वविद्यालय का एक बहुत महत्वपूर्ण निकष होता है उसका ‘कुलगीत’ जिसे हमारे ही विश्वविद्यालय के हिन्दी के विद्वान शिक्षक डाॅ. विनोद कुमार मंगलम् ने लिखा है और जिसका स्वर संयोजन म्यूजिक की विद्वान शिक्षिका डाॅ. रीता दास ने किया है। विश्वविद्यालय में जब भी कोई कार्यक्रम होता है, हमलोग अपने कुलगीत से ही उसकी शुरुआत करते हैं, जो हमारे गौरव, शौर्य एवं स्वाभिमान का प्रतीक है।’’

सरकारी स्तर पर इस विश्वविद्यालय के लिए 8.5 एकड़ भूखण्ड आवंटित की गयी है, जिसपर अगले कुछ महीनों में निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा और विश्वविद्यालय अपने एक नये तेवर में दिखाई देगा। अभी हाल में नई दिल्ली में विश्व पुस्तक मेला का आयोजन किया गया था, जिसमें पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय ने सक्रिय रूप से भाग लिया। दो जिलों में फैले हुए लगभग 25 अंगीभूत महाविद्यालयों में से लगभग 60 प्रतिशत महाविद्यालयों ने नैक से ग्रेडिंग प्राप्त कर ली है। शेष जो बचे हुए हैं, उनमें नैक की तैयारी अंतिम चरण मंे है। यह विश्वविद्यालय के लिए एक उपलब्धि है। विश्वविद्यालय ने लगभग 24 विषयों में पीजी की पढ़ाई शुरू करने के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी। अभी हाल में 18 विषयों में पीजी की पढ़ाई शुरू करने के लिए सरकार से अनुमति मिल गई जिसे एक महत्वपूर्ण सफलता मानी जा सकती है।

सत्यपाल कुमार श्रेष्ठ

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