दक्ष शिक्षा

0

शिक्षा शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा के शिक्ष् धातु से हुई हैं, जिसका अर्थ होता है सीखना या सिखाना। शिक्षा की आत्मा को विद्या कहा गया है। विद्या का अर्थ है वह शक्ति जिससे मनुष्य बंधनों से मुक्त होकर आनंदपूर्ण जीवन की स्थिति को प्राप्त करे। भारतीय परंपरा के संदर्भ में शिक्षा का अर्थ विद्या के प्रकाश में सीखना होता है। भारतीय मनीषा ने विद्या को परा और अपरा इन दो श्रेणियों में विभक्त किया है। परा विद्या के क्षेत्र में आत्मा, प्रकृति और परमात्मा के सूक्ष्म तत्वों का ज्ञान, जिससे मनुष्य के अंदर में आत्मानुशासन एवं न्याय की प्रवृत्ति आती है। विद्या की दूसरी श्रेणी अपरा विद्या है। भौतिक जगत के जिस ज्ञान को आजकल विज्ञान (सामाजिक एवं पदार्थ) कहते हैं उसी को उपनिषद में अपराविद्या के नाम से कहा गया है। इन संदर्भों के साथ विद्या भारती के दक्षिण बिहार प्रांत के सचिव गोपेश कुमार घोष ने अपने संगठन की शिक्षण पद्धति व उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। विद्या भारती पूरे देश में फैले अपने विद्यालयों के माध्यम से भारतीय दृष्टि के साथ बच्चों को शिक्षा देती है।

पूरे विश्व के शिक्षाशास्त्री यह मानते हैं कि ज्ञान का स्रोत या तो समाज है या प्रकृति। प्रकृति का मनुष्य व समाज पर प्रभाव रहता है और उसी के अनुसार विकास का पहिया आगे बढ़ता है। इस प्रकार एक देश की शिक्षा का माॅडल दूसरे देश की शिक्षा माॅडल से भिन्न होता है। भारत एक विशाल देश है जहां भाषा, रहन-सहन में काफी भिन्नता के बावजूद एकात्मता का सूत्र स्थापित करने वाले तत्व के रूप में यहां की संस्कृति कार्य करती है। ऐसे में भारत में शिक्षा का पश्चिमी माॅडल लागू करना कहीं से भी न्यायपूर्ण व तर्कसंगत नहीं है।

swatva

लम्बे समय की गुलामी के कारण हमारे देश के मूल स्वभाव को आघात पहुंचा। अंग्रेजी शासन के दौरान यहां की भाषा, ज्ञान परंपरा और अस्मिता को नष्ट करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य हुआ। आजादी के बाद भी अंग्रेजों के दिए हुए माॅडल पर ही भारत की शिक्षा व्यवस्था चलती रही। इसके परिणामस्वरूप भारत के शैक्षणिक संस्थान नैतिक मूल्य व समाज के प्रति उत्तरदायित्व के बोध से पूर्ण मानव की जगह केवल किताबी ज्ञान वाले आदमी गढ़ने लगे। राजनीतिक आजादी के बाद भी आत्मविस्मृति वाली पीढ़ियों की स्थिति बदलने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय विचार से जुड़े शिक्षविद्ों ने विद्याभारती की स्थापना की थी। इन संस्थानों में भारतीय संस्कृति, संस्कार व सामाजिक दायित्वबोध के साथ युगानुकूल उत्तम शिक्षा दी जाती है।

वर्तमान में विद्या भारती के प्रयास से भारत में तीस हजार से अधिक शिक्षण संस्थान संचालित हो रहे हैं। विद्या भारती शिशुवाटिका, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के माध्यम से लाखों बच्चों को शिक्षा दे रही है। इसके साथ ही इन संस्थानों द्वारा संचालित संस्कार केंद्रों व एकल विद्यालयों के माध्यम से कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राओं को शैक्षणिक मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है। लगभग पांच दशक के सतत प्रयास के बाद इस गैरसरकारी संस्थान के प्रयास से संपूर्ण भारत में 86 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियों के माध्यम से लगभग 25 हजार शिक्षण संस्थान संचालित हो रहे हैं। करीब डेढ़ लाख शिक्षक भारतीय संस्कार से युक्त शैक्षिक माहौल बनाने के लिए संकल्पव्रती के रूप में कार्य कर रहे हैं। पूर्व में ऐसी जनअवधारणा थी कि विद्या भारती का कार्य केवल नगरों तक ही सीमित है। लेकिन, अब यह अवधारणा तेजी से बदल रही है। विद्या भारती के सरस्वती शिशु मंदिर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों, वन प्रांतर और पर्वतीय क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक अपने कार्य कर रहे हैं। झुग्गी-झोंपड़ियों में हजारों शिशु वाटिकाएं चल रही है, जिससे शिक्षा सें वंचित समुदायों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। विद्या भारती अब भारत में सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा संगठन बन चुका है।

विद्या भारती आधुनिक विज्ञान, सामाजिक परिवर्तन, वैश्विक स्तर पर नवाचार, भारतीय भाषा के साथ ही अंग्रेजी को भी अपने पाठ्यक्रमों में महत्व देता है। लेकिन, इसके साथ ही विद्यालय में प्रवेश के साथ दैनिक कार्यक्रमों की ऐसी रचना की गयी है, जिसमें छात्र-छात्राओं को अपनी संस्कृति का मूल भाव विचार और व्यवहार में उतरने लगे। परिसर में छात्राओं को बहन और छात्रों को भैया कहने की परंपरा हैं। प्रातःकालीन सभा में प्रार्थना, भारत माता की वंदना, शांति पाठ, सुविचार जैसी कुछ गतिविधियों के माध्यम से अपनी संस्कृति के प्रति आस्था और अपने राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान का भाव बच्चों के मन में स्वतः प्रस्फुटित होने लगता है।

विद्या भारती, दक्षिण बिहार के सचिव गोपेश कुमार घोष कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में जो हम काम कर रहे हैं उसके प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद, पं. मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी जैसे हमारे पूर्वज हैं। विवेकानंद के अनुसार मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। वहीं महात्मा गांधी का मानना था कि “शिक्षा वह है जिससे बालक या मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा का संपूर्ण व सर्वांगिण विकास हो। इस दृष्टि से सोचें, तो शिक्षा को केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित रखना उसके मूल चरित्र के साथ कपट है। विभिन्न शिक्षा आयोगों ने भी शिक्षा को मूल्य से जोड़ा है। प्रो. डीएस कोठारी ने कहा है- राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा नहीं अपितु चरित्र निर्माण के लिए शिक्षा है। किसी भी राष्ट्र का चरित्र वहां के चरित्रवान नागरिकों से बनता है और यही भारतीय शिक्षा की मूल अवधारणा है।

भारतीय शिक्षा दर्शन में मूल्याधारित शिक्षा पर बल रहा। छोटे बच्चों में जीवन मूल्य का संवर्द्धन करने के लिए उन्हें आहार, विहार, वाणी, दया, करुणा, परोपकार, शूचिता, त्याग, तप, स्वाभिमान आदि की शिक्षा व व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों की रचना की जाती है जिससे बच्चे आपसी सहयोग, आत्मीयता, प्रेम, राष्ट्रीय मूल्य को समझ सके। बालक के पंचकोशात्मक विकास की अवधारणा पर हम कार्य करते हैं। इसके लिए शारीरिक एवं खेलकूद, योग शिक्षा, संगीत शिक्षा, संस्कृत शिक्षा, तथा नैतिक-आध्यात्मिक शिक्षा की विशेष व्यवस्था है। किसी भी विद्यालय के विकास एवं शिक्षा के अनुकूल वातावरण निर्माण में इन पांच तत्वों की मुख्य भूमिका है। ये विद्यालय के पंच प्राण हैं- बालक, आचार्य, प्रबंधन, अभिभावक एवं समाज। इन पांचों तत्वों के विकास की विविध गतिविधियों चलयी जाती है। दायित्व बोध, व्यवस्था कौशल तथा श्रमनिष्ठा जागरण के लिए विेशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। त्याग, सेवा, सहयोग व परोपकार की भावना के लिए ग्राम दर्शन, सेवा कार्य दर्शन, समर्पण अभियान में सहयोग, राष्ट्रीय आपदाओं में सहयोग आदि के कार्य कराए जाते हैं। पर्व-त्योहार, जयंतियां, उत्सव, महत्वपूर्ण राष्ट्रीय-अतंर्राष्ट्रीय दिवसों के आयोजन द्वारा देश की संस्कृति-परम्पराओं का ज्ञान कराते हैं। अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में आचार्य, भैया-बल एवं सम्मान के अन्य की सहभागिता, गीता जयंती, तुलसी जयंती, गुरुपूर्णिमा आदि आयोजनों से संस्कृति के प्रति श्रद्धा जताई जाती है। देश दर्शन, शहीद स्मारक दर्शन, ऐतिहासिक युद्ध-भूमि दर्शन, अखण्ड भारत के मानचित्र का दर्शन आदि कार्यक्रमों से हम राष्ट्रभक्ति के संस्कार विकसित करते हैं। पौधरोपण, ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण आदि कार्यक्रमों से प्रकृति प्रेम व पर्यापरण के प्रति भारतीय सोच को जीर्वतत प्रदान करते हैं। स्वच्छता अभियान आदि कार्यक्रमों के माध्यम से हम स्वास्थ्य जागरूकता-सामाजिकता का शाख विकसित करते हैं। मातृ-भारती, पूर्व छात्र परिषद, विद्वत परिषद के माध्यम से सम्मान जागरण के कार्यक्रमों की एक लंबी शृंखला है। प्रातः स्मरण के श्लोकों, एकात्मता स्रोत एवं एकत्मता मंत्र के नित्य स्मरण, प्रतिदिन प्रभावी एवं आध्यात्मिक भाव से परिपूर्ण हमारी वंदना सभा, भोजन मंत्र, पूर्णावकाश के समय राष्ट्रगीत का गायन राष्ट्रीय एकात्मता व स्वाभिमान जागरण का एक सशक्त प्रयास है।

इन प्रक्रियाओं व गतिविधियों से ही बालक के व्यक्तित्व व चरित्र में राष्ट्रानुकूल विकास होगा। आज आवश्यकता है ऐसे ही विद्यालयों की जहां बच्चे अंक ज्ञान-अक्षर ज्ञान के साथ-साथ शिष्ट आचरण, मृदुल व्यवहार, शिष्टाचार आदि सीख सकें। इसके साथ ही जीवन में संस्कार, पांडित्य में तेजस्विता, महापुरुषों के प्रति अनन्य भक्ति व श्रद्धा, समाज व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव भी पल्लवित हो। ऐसे बालक ही बड़े होकर अपनी प्रतिभा, ज्ञान, शक्ति, बुद्धि-विवेक के बल पर भारत माता के जगत का सिरमौर बनायेंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here