अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिम पक्ष को अलग से मस्जिद के लिए जो पांच एकड़ जमीन देने के निर्देश दिए हैं उसको लेकर ये सवाल उठ रहा है कि जमीन कहां दी जाएगी। कई नामों पर अटकलें लग रही हैं। इनमें से एक नाम अयोध्या से सटे सहनवा का भी उभर कर आ रहा है।
सहनवां वही जगह है जहां बाबर का सेनापति मीर बाकी दफन है। उसने ही 1528 में रामजन्मभूमि स्थान पर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। एक न्यूज चैनल की खबर के अनुसार मीर बाकी के वंशज चाहते हैं कि सहनवां में ही मस्जिद बने। यही कारण है कि यहां पर मस्जिद बनाने हेतु जमीन देने का विचार किया जा रहा है। इसके अलावा मस्जिद के लिए अयोध्या के चांदपुर हरवंश और डाभासंभर पर भी चर्चा हो रही है। लेकिन सहनवा में जमीन दिए जाने की उम्मीद ज्यादा है।
उल्लेख्य है कि रामजन्मभूमि से करीब 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित सहनवा को अयोध्या नगर निगम में शामिल करने के लिए 2017 में ही प्रस्ताव भेजा जा चुका है। अब कहा जा रहा है कि सहनवां समेत 40 गांवों को अयोध्या नगर निगम में शामिल होने की मंजूरी मिल सकती है।
सहनवा में मीर बाकी की मजार काफी जर्जर स्थिति में है। अयोध्या विवाद से पहले इस जगह को कोई जानता नहीं था। लेकिन मीर बाकी के यहीं दफन होने की बात सामने आने के बाद यह जगह चर्चा में आयी थी। अब यहीं मस्जिद के लिए जमीन देने की बात भी हो रही है। बाबरी मस्जिद के मुद्दई रहे इकबाल अंसारी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगर मनमाफिक 5 एकड़ जमीन चिन्हित होकर मिलेगी तो हम जरूर लेंगे।
मथुरा और काशी पर पेंच
राम जन्मभूमि मामले में आए फैसले में एक तरफ जहां सुप्रीमकोर्ट की पूर्ण पीठ के अंदर सर्वसम्मति तो थी ही, सरकार, न्यायपालिका और आरएसएस की सोच भी एक ही लाइन पर दिखी। अलग-अलग शब्दों में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और और सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने साफ-साफ जताया कि विवादों को पीछे छोड़कर अब आगे बढ़ने का वक्त है। जाहिर तौर पर यह संकेत सीधे-सीधे मथुरा और काशी से जुड़ता दिखता है। यह मानकर चला जा सकता है कि भविष्य में धार्मिक स्थलों के विवाद की गुंजाइश बहुत कम है।
फैसला पढ़ते वक्त जस्टिस गोगोई द्वारा 1991 के पूजा स्थल कानून का भी उल्लेख करना बेमानी नहीं है। उन्होंने यह बताया कि संसद का यह कानून 15 अगस्त 1947 के दिन जिस भी पूजा स्थल की जो स्थिति है उसमें कोई धार्मिक बदलाव की इजाजत नहीं देता है। इतना ही नहीं बल्कि इससे जुड़े कानूनी मुकदमे भी खत्म माने जाएंगे। केवल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को इससे छूट थी। यानी उनकी ओर से सचेत कर दिया गया है कि कोर्ट अब ऐसे किसी मुद्दे को सुनने के लिए तैयार नहीं है।
सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने अपने बयान में साफ किया कि ‘संघ आंदोलन नहीं करता है, राम मंदिर आंदोलन में जुड़ना एक अपवाद था।’ जाहिर है कि संघ किसी और आंदोलन की नहीं सोच रहा है।
देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बहुत बारीकी से यह संदेश दे दिया कि अब देश में कटुता के लिए स्थान नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि अब नए भारत के निर्माण में सबको जुटना है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले और करतारपुर कारीडोर का उल्लेख करते हुए कहा ‘आज के दिन का संदेश जोड़ने का है, जुड़ने का है और मिलकर जीने का है, सभी कटुता को तिलांजलि देने का वक्त है। नए भारत में भय, कटुता, नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं होगा।’
संकेत साफ है कि राम मंदिर के साथ ही सबसे बड़े धार्मिक विवाद के निपटने के बाद कोई भी अब पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता है। पूरे देश का मुस्लिम वर्ग भी राम मंदिर निर्माण के फैसले को अपना चुका है।
साधु संत समाज की ओर से भले ही मथुरा और काशी जैसे मुद्दे उठाए जा सकते हैं, लेकिन उसे भाजपा या संघ से खुला समर्थन मिले इसकी उम्मीद और गुंजाइश हाल फिलहाल नहीं दिख रही है। बीजेपी के चुनाव घोषणापत्र में राम मंदिर 1991 से शामिल है, लेकिन कभी भी मथुरा और काशी का जिक्र नहीं हुआ है। संघ परिवार में वीएचपी में भी इस मुद्दे पर चुप्पी है। वह अपना पूरा ध्यान राम मंदिर निर्माण पर लगाना चाहता है।