यह कैसी ठंड? न शीतलहर, न घना कुहासा और सीजन क्लोज होने को?

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अरवल : आज 14 जनवरी है। तीन महीने की सर्दी के सीजन का 74 वां दिन। इस साल पहली बार देखने को मिला है कि 1 नवंबर से 14 जनवरी के बीच न तो एक दिन भी शीतलहर चली और न एक दिन भी घना कुहासा हुआ। मौसम विभाग के अनुसार सर्दी के सीजन के अब 21 दिन शेष रह गए हैं। यही शीतलहर का मुख्य समय है, लेकिन अब भी दिन का तापमान 23 से 24 डिग्री पर है। जबकि रात का न्यूनतम पारा भी 9 से 11 डिग्री के बीच हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इन दिनों दिन का पारा 6 से 8 और रात का पारा 3 से 5 डिग्री के बीच होना चाहिए।

ठंडी को तरसाए रे..बिना शीतलहर लौट जाए रे..

खरमास का महीना सर्दी का मेन सीजन माना जाता है। यह 15 दिसंबर से 14 जनवरी तक होता है। खरमास का महीना बीतने में चंद घंटे शेष रह गए हैं। सूर्य मकर रेखा के करीब है। वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य के मकर रेखा पार करने के बाद दिन में गर्मी घुलने लगती है। हसनपुर गांव के जय नारायण (55) व रामाधार सिंह (63) ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि यह उनके जीवन में पहली बार है, जब सर्दी के सीजन में एक दिन भी शीतलहर और कुहासा नहीं पड़ा।

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क्या है सर्दी का मापदंड

सर्दी के शुरुआत और उत्तरार्द्ध सीजन में दिन का सामान्य तापमान 24-25 और रात का तापमान 10- 11 डिग्री होना चाहिए। जबकि, शीतलहर में दिन का पारा 10-11 डिग्री पर रहता है। वहीं, सीजन में रात का पारा 8 डिग्री से नीचे नहीं लुढ़का। आंकड़ों की मानें तो अबतक तीन बार ही रात में 7 डिग्री पर पारा पहुंचा है। इसमें से दिसंबर में दो बार और जनवरी में एक बार ही ऐसा हो सका।

ग्लोबल वार्मिंग का असर

मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम का नेचर बदल रहा है। अलनीनो और ग्लोबल वार्मिंग का असर है। वर्ष की प्रत्येक ऋतु 15-20 दिन आगे शिफ्ट हो रही है। मौसम विभाग एक नवंबर से 28 फरवरी तक विंटर सीजन मानता है। सीजन के 70 दिन गुजर चुके हैं। 11 दिसंबर और 6 जनवरी को ठंड बढ़ी थी, लेकिन शीतलहर नहीं चली। 5 जनवरी की सुबह कुहासा घना था लेेकिन विजिबिलिटी 200 मीटर थी। लेकिन दिन का पारा 22 डिग्री से नीचे नहीं गया। मतलब यह है कि इन 70 दिनों में पारा सामान्य के आसपास रहा।

15 साल में सबसे कम सर्दी, रबी पर बुरा प्रभाव

पांच जनवरी 2011 को 2.3 डिग्री तापमान था। वर्ष 2016 में 10 दिसंबर से शीतलहर चली थी। पूरे डेढ़ माह तक तक शीतलहर रही। इससे पहले 2004 में 11 व 13 दिसंबर को तापमान 9.7 डिग्री पहुंचा था। 2011 में भी 11 दिसंबर की रात में पारा 8.5 डिग्री पर था। शीतलहर और कुहासा नहीं होने का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ सकता है। रबी की फसल को नमी नहीं मिलने से पैदावार में गिरावट हो सकती है। वहीं, दिन का पारा अधिक रहने से गेहूं के पौधे में कल्ले कम हो जाएंगे। इससे किसानों को आर्थिक रूप से घाटा होगा।
राहुल हिमांशु

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