नवादा : जिले के लोग मानसून के इंतजार में बैठे हैं, लेकिन मानसून भी खंड वर्षा की तरह अपना रुप दिखा रहा है। एक तरफ अच्छी बारिश के इंतजार में जहां किसान बैठे हैं वहीं बया नामक छोटी चिड़िया इस वर्ष बड़े इत्मिनान से अपना घोसला बनाने में लगी है। माना जाता है कि बया पक्षी बारिश के अंदेशे के हिसाब से अपना घोंसला बनाती है। इस बार मानसून देर से आया इसलिए इस चिड़िया ने देरी से अपना घोसला बनाया है।
गौरैया की तरह होती हैं बया
बया का आकार गौरैया की तरह ही होता है। बस इसका रंग पीला होता है। यह चिड़िया समूह में रहती हैं और मानसून के आगमन के हिसाब से जल स्त्रोतों के निकट वृक्षों या घरों के आंगन में विभिन्न् प्रकार की फूलदार बेलों में अपने घोसले बनाती हैं।
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े शरद चंद्र वर्मा का कहना है कि पशु पक्षियों की छठी ज्ञानइंद्री मानव से ज्यादा विकसित होते है इस लिए उन्हें मानसून के आगमन की अच्छी जानकारी होती है। यह गुर उन्हें वंशानुगत प्राप्त होता रहता है।
मानसून आने के पहले बया अपने घोसले तैयार कर लेती है
आमतौर पर यह चिड़िया जून के पहले सप्ताह से ही अपना घोषला बनाना प्रारंभ कर देती हैं, लेकिन इस वर्ष देखा जा रहा है कि वह जून के अंतिम सप्ताह से अपना घोषला बनाने में व्यस्त है। माना जाता है कि मानसून आने के पहले बया अपने घोसले तैयार कर लेती है।
यह पक्षी जुलाई में अण्डे देती हैं और अक्टूबर तक घोसला छोड़ बच्चों के साथ उड़ जाती हैं। इस बार मानसून विलंब से आया इसलिए यह अब अपने घोसले बनाने में व्यस्त है।
वैज्ञानिक होता है घोंसला
बया का घोंसला बबूल से लेकर ताड़ के वृक्ष तक में पाया जाता है। बया का घोंसला दो फीट तक लंबा हो सकता है। यह घोसला दो हिस्सों में बंटा होता है। एक प्रवेश द्वार और दूसरा अंडे देने का कक्ष या आवास के रूप में। मध्य के हिस्से में करीब 200 ग्राम मिट्टी होती है।
इस संदर्भ में बताया गया कि घोसला हल्का होने के कारण तेज हवाओं के झोंकों से उलट सकता है और ऐसा हुआ तो अण्डे या बच्चे नीचे गिर सकते हैं। ऐसा ना हो इसलिए बया घोसले के मध्य हिस्से में यह मिट्टी लगाती है। इसके चलते ही इसका घोंसला सुरक्षित रहता है।