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RCP के साथ ही BJP के इस नेता को भी मंत्रीपद जाने का दर्द! क्या हैं विकल्प?

नयी दिल्ली : राज्यसभा चुनाव ने केंद्र की मोदी कैबिनेट में शामिल चार नेताओं की आगे की राह तय कर दी है। इनमें दो तो ​मंत्रीपद पर बने रहेंगे। लेकिन जदयू के आरसीपी सिंह और भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी का दिल टूट गया है। जहां आरसीपी को जदयू ने राज्यसभा का दलीय प्रत्याशी नहीं बनाया, वहीं मुख्तार अब्बास नकवी को उनकी पार्टी बीजेपी ने राज्यसभा के टिकट से वंचित कर दिया। ऐसे में माना जा रहा है कि दोनों को केंद्रीय मंत्रिपरिषद से शीघ्र ही इस्तीफा देना पड़ेगा।

नकवी के सामने उपजी नई परिस्थितियां

मुख्तार अब्बास नकवी भाजपा के संसद लोकसभा और राज्यसभा में एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं। वे मोदी—2 सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनाए गए। नकवी राज्यसभा के सदस्य हैं, लेकिन उनकी सदस्यता जुलाई माह में समाप्त हो रही है। अब चूंकि भाजपा ने उन्हें इसबार राज्यसभा का टिकट नहीं दिया इसलिए साफ है कि उन्हें मंत्रीपद छोड़ना पड़ेगा। हालांकि मोदी सरकार उन्हें अगले 6 माह तक पद पर बनाये रख सकती है, लेकिन इस दौरान उसे नकवी को लोकसभा या राज्यसभा भेजना होगा।

मंत्री बने रहने के क्या-क्या बचे विकल्प

ऐसे में नकवी के सामने एक मात्र विकल्प रामपुर सीट के लिए होने वाले आगामी लोकसभा उपचुनाव में भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ने और जीतने का ही बचता है। अगर नकवी को यहां टिकट मिलता है और वे चुनाव जीत जाते हैं तभी मंत्रीपद पर बने रह पायेंगे। मालूम हो कि मोदी सरकार के चार मंत्री राज्यसभा के सदस्य हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण और पियूष गोयल को भाजपा ने अपना राज्यसभा कैंडिडेट बनाया और वे निर्विरोध चुन भी लिये गए। लेकिन मुख्तार अब्बास नकवी का टिकट पार्टी ने काट दिया।

आरसीपी और नकवी की पीड़ा एकसमान

दूसरी तरफ मोदी कैबिनेट के चौथे मंत्री आरसीपी सिंह का टिकट उनकी पार्टी जदयू ने काट दिया। आरसीपी के टिकट पर कहा जा रहा है कि भाजपा से निकटता के कारण बिहार सीएम नीतीश कुमार उनसे नाराज चल रहे थे। मगर दिलचस्प बात यह कि जहां नकवी के लिए रामपुर उपचुनाव के रूप में एक छोटी सी आस दिख रही है, वहीं आरसीपी सिंह के लिए तो कोई रास्ता ही उनकी पार्टी ने नहीं छोड़ा है। नकवी के बारे में कहा जाता है कि उनको टिकट नहीं दिये जाने का बड़ा कारण उनकी मंत्री के रूप में खराब पर्फार्मेंस रही, जबकि आरसीपी के आड़े नीतीश कुमार की कार्यशैली आ गई। ऐसे में दोनों नेता अपने अपने दलों के लिए पसंदीदा नहीं रह गए और दोनों गहरे दर्द से गुजरने पर मजबूर हो गए।