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बचेगी RCP की कुर्सी या मिलेगा किसी अन्य को मौका, 7 जुलाई को फैसला

पटना : आगामी 7 जुलाई के बाद भी क्या मोदी कैबिनेट में जदयू कोटे से एकमात्र मंत्री आरसीपी सिंह मंत्रिमंडल में शामिल रहेंगे या फिर उनको इस्तीफा देना होगा इन दिनों यह सवाल लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। पिछले दिनों जिस तरह से देश के प्रधानमंत्री ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपने पास बुला कर बैठाया है उसके बाद इस बात की भी क्लास लगाई जा रही है कि कहीं ऐसा ना हो की आरसीपी को हटाकर ललन सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में रखा जाए। इन सारे सवालों का जवाब तो फिल्म आगामी 7 जुलाई को ही मिलेगा, लेकिन आरसीपी को लेकर जिस तरह से जदयू के बड़े नेतायों का बयान है यह उनके पक्ष में नहीं दिख रहा है।

किसी एक सदन का सदस्य बनना जरूरी

दरअसल, जदयू नेता और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल आगामी 7 जुलाई को खत्म हो रहा है और जदयू ने इनको वापस से राज्यसभा का टिकट नहीं दिया है। ऐसे में सांसद नहीं रहने के बाद क्या सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहेंगे या उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ेगा इन सारी चीजों पर लोगों की निगाहें टिकी हैं क्योंकि मंत्री बने रहने के लिए जदयू नेता आरसीपी सिंह को लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य बनना होगा तभी वो मंत्रिमंडल में रह सकते हैं। लेकिन, जिस तरह से जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा से इस पूरे मामले को लेकर जवाब देते दिखते हैं,उससे तो यही लगता है कि जदयू के नेता आरसीपी से रूष्ट हैं और उन्हें कब किनारा करना चाहते हैं।

कुशवाहा के माध्यम से इस्तीफा

जानकारी हो कि,जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा था कि ये फैसला नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को लेना है कि आरसीपी मंत्री रहेंगे या नहीं। लेकिन, मेरा मानना है कि अगर आरसीपी सिंह में नैतिकता होगी तो उन्हें खुद अपना पद छोड़ देना चाहिए क्योंकि वो किसी भी सदन के सदस्य 7 जुलाई के बाद नहीं रहेंगे। वहीं, दूसरी तरफ कुशवाहा ने इस बयान की बारीकी से देखें तो उन्होंने न कुछ कहते हुए बहुत कुछ कह दिया है क्योंकि नीतीश कुमार को यदि आरसीपी सिंह को मंत्री पद पर बनाए रखना था तो वह आरसीपी सिंह को राज्यसभा वापस भेज कर रख सकते थे लेकिन उन्होंने पहले ही टिकट न देकर कर दिया है कि वह आरसीपी को अब पहले की तरह महत्व नहीं देते हैं।

पीएम ने ललन को बुलाया करीब

इधर, राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा प्रत्याशी के नामांकन के दौरान जिस तरह से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को आदरपूर्ण तरीके से पुकारा ”ललन जी, इधर आइए” और सबसे आगे अपने साथ वाले पंक्ति में बैठाया उसके बाद ये तो साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री के लिए जदयू जैसी सहयोगी पार्टी कितना महत्व रखती है।

वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस इशारे को लेकर राजनीतिक जानकारों की माने तो भाजपा किया पूरी कोशिश होगी कि आरसीपी सिंह को लेकर जदयू कोई फैसला नहीं करता है तो उनकी जगह जदयू में से किसी दूसरे सांसद को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा।

पीएम के पास अधिकार

हालांकि कुछ अन्य जानकारों का यह भी कहना है कि पिछले दिनों से जिस तरह आरसीपी लगातार भाजपा के करीबी संगठनों में जाकर वार्तालाप कर रहे हैं उसका फायदा उनको मिल सकता है क्योंकि यह प्रधानमंत्री के पास एक विशेष अधिकार होता है जिसके आधार पर वह छह माह तक आरसीपी सिंह मंत्री बनाए रह सकते हैं।

मगर बात यह भी है कि 6 महीने बाद आरसीपी सिंह को लेकर भाजपा क्या निर्णय लेगी। यदि 6 महीने बाद भाजपा आरसीपी को निकाल देती है तो फिर जदयू के तरफ से आज के समय में जदयू के तरफ से मंत्री पद के लिए सबसे बड़े दावेदार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ही हैं क्योंकि पिछली बार भी उनका नाम सबसे आगे था लेकिन तब आरसीपी सिंह ने खुद से अपना नाम आगे किया था और मंत्री बन गए थे। उसी के बाद नीतीश कुमार और ललन सिंह से उनके सम्बंध खराब हो गए थे।

ऐसे में तब नीतीश कुमार को तय करना होगा कि वो जदयू से किसे मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने का निर्देश देते हैं या फिर मंत्रिमंडल से बाहर रहने का फैसला लेते हैं।