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क्या है होलिका दहन और इसका शुभ मुहुर्त?

रविवार को होलिका दहन है। होलिका दहन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। होलिका दहन को लेकर भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को भेजा था। प्रह्लाद भगवान का परम भक्त था और ये बात हिरण्यकश्यपु को पसंद नहीं थी। हिरण्यकश्यपु राक्षस परिवार से था और चाहता था कि प्रह्लाद भी वैसा ही बने। लेकिन प्रह्लाद भगवान का भक्त बन गया और ये बात उसे हर समय चुभती रहती थी। उसने प्रह्लाद को बहुत समझाया पर वह नहीं माना। उसने उसे कई बार मारने की भी कोशिश की लेकिन हर बार भगवान की कृपा से वो बच जाता था।

ऐसे में उसने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई, और इसके लिए उसकी बहन भी तैयार हो गई। होलिका को ब्रह्मा जी से आशीर्वाद के तौर पर एक चादर मिला हुआ था जो आग में भी नहीं जलता था। होलिका प्रह्लाद को गोद मे लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान ने यहां भी अपने भक्त की लाज बचाई और जो चादर होलिका ने ओढ़ रखी थी वो हवा के झोंके से प्रह्लाद पर गिर गयी जिससे वह जल नहीं सका और होलिका आग में जलकर मर गई। तभी से लोग होलिका दहन का उत्सव मनाते हैं।

भगवान में विश्वास का पर्व है होलिका दहन

बोरिंग रोड मंदिर के पंडित संजय पाठक ने कहा कि भक्ति के इतिहास में प्रह्लाद का नाम अमर है। प्रह्लाद की भक्ति के चलते उस समय सभी लोग उनको जान गए थे।लेकिन जब होलिका उनको आग में लेकर बैठी तब दूर-दूर तक बात फैल गई थी। लोग यही सोच रहे थे कि अब क्या होगा। और जब लोगों को पता चला कि प्रह्लाद जी सुरक्षित हैं और होलिका जल गई है तो लोग खुशियां मनाने लगे। सभी भगवान विष्णु का गुणगान करने लगे। लोगों में भगवान पर विश्वास बढ़ गया।

होलिका दहन का मुहुर्त

वाराणसी से प्रकाशित पंचांग के मुताबिक 28 मार्च को सूर्योदय 5:55 बजे और पूर्णिमा तिथि का मान संपूर्ण दिन और रात को 12 : 40 बजे तक रहेगा।होलिका दहन शुरू होने से पहले उसकी पूजा की जाती है और फिर संवत जलाया जाता है। उन्होंने कहा कि होलिका की आग में अपने घर से बने पुआ, पकवान और नमकीन भोज्य डाला जाता है।

ऐसा माना जाता है कि नये साल का प्रारंभ उसी दिन से शुरू हो जाता है। संवत जलने का मतलब है कि जितने भी पाप, दरिद्रता और दुख हैं वे सब इसमें जल जाते हैं। लोग इसमे जो पकवान डालते हैं, उसका आशय भी यही होता है कि उनके जितने दुख—तकलीफ हैं, वो भी जल जाएं। वहीं पंडित शिवशंकर तिवारी ने कहा कि होलिका दहन के अगले दिन उसकी राख घर पर लानी चाहिए। उस राख को शरीर पर लगाने से सारे कष्ट, बाधाएं दूर हो जाती हैं।