पटना : गणित, विज्ञान अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान के ज्ञान से व्यावसायिक ज्ञान हो जाता है लेकिन मातृभाषा के ज्ञान से हम नैतिक और संस्कारवान बनते हैं। अगर व्यावसायिक ज्ञान के साथ नैतिकता और संस्कार जुड़ जायें तो ये कहना अतिशियोक्ति नहीं होगी की सफलता हमारे कदम चूमने लगेगी। ये उदगार बुद्धा हेरिटेज में न्यू सरस्वती इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से आयोजित हिंदी कार्यशाला में आज डॉ विनोद प्रसून ने व्यक्त किए। इस कार्यशाला का विषय था हिंदी के शिक्षण को कैसे रुचिकर बनाया जाय। हिंदी की उपयोगिता और लोकप्रियता बरकरार है।भारत सहित दुनिया के कई देशों में हिंदी की पहुंच बढ़ी है। जरूरत इस बात की है कि शिक्षकों, विद्यार्थियों, युवाओं और नौजवानों के बीच हिंदी को व्यावहारिक और दमदार तरीके से प्रस्तुत किया जाए। शास्त्रों को या व्याकरण को लोगों तक ले जाने के लिए उसमे नवीनता लानी होगी। परंपरागत अच्छी बातों को हमें छोड़ना नहीं है। लोग सोचते हैं कि हिंदी बढ़ नहीं रही है। लेकिन मैं देश—विदेश जहां भी जाता हूं, बड़ी संख्या में शिक्षक और सामान्य लोग आते हैं। अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिंदी का प्रचलन काफी बढ़ा है।यहां तक कि खाड़ी देशों में भी हिंदी बोली जाती है। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में हिंदी के शिक्षकों ने भाग लिया
मानस दुबे
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