पटना : अगहन महीने की पंचमी तिथि को पड़ने वाले विवाह पंचमी के बारे में सभी जानते हैं। विवाह पंचमी ही वह दिन है जब भगवान राम का माता सीता के साथ विवाह हुआ था। इस पावन दिन को देश के विभिन्न हिस्सों में कहीं अष्टयाम करवाया जाता है तो कहीं सीता—राम विवाह का आयोजन करवाया जाता है। लोग इस अवसर पर पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य भी करते हैं। यूं तो सीता—राम विवाह का वर्णन विस्तार से महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस में भी मिलता है।
मांगलिक कार्यों में अगहन महीने का खास महत्व
पंडित यज्ञदत्त शर्मा ने बताया कि चूंकि अगहन महीने में ही माता सीता और भगवान राम का विवाह हुआ था, इसलिए इस महीने विवाह आदि मांगलिक कार्य बड़े शौक से लोग करते हैं। वैसे भी अगहन का महीना पवित्र माना जाता है। जिनके घरों में विवाह योग्य कन्याए होती हैं उनकी अभिलाषा होती है इसी पवित्र महीने में उनकी पुत्री की या पुत्र का विवाह हो। सीता राम विवाह की वजह से अगहन के महीने का महत्व बढ़ जाता है।
कैसे जनकपुर पहुंचे भगवान राम
दरअसल बक्सर में महर्षि विश्वामित्र अपने आश्रम में रहकर ध्यान तपस्या और यज्ञ का अनुष्ठान किया करते थे। लेकिन उनके इस यज्ञ अनुष्ठान में ताड़का नाम की राक्षसी बाधा पहुंचाती थी। ताड़का के दोनों पुत्र मारीच और सुबाहु भी महर्षि को तंग करते थे। महर्षि इससे बहुत दुखी रहते थे। एकाएक उनके मन में अयोध्या जाने की बात आई और वहां पहुंचकर अयोध्या नरेश महाराज दशरथ से अपने यज्ञ की रक्षा हेतु राम और लक्ष्मण को उनके साथ भेजने की याचना की। महर्षि के साथ राम और लक्ष्मण बक्सर पहुंचे तथा ताड़का का वध किया। सत्संग और चर्चा-परिचर्चा के दौरान महर्षि ने जनकपुर में होनेवाले धनुष यज्ञ की बात बताई और मिथिला नरेश जनक की प्रतिज्ञा भी बताई। महाराज जनक की प्रतिज्ञा की बात सुनकर भगवान राम जनकपुर चलने को तैयार हो गए।
जनकपुर पहुंचकर भगवान ने धनुष तोड़ दिया। उनका विवाह तो सीताजी से उसी समय हो गया था, लेकिन कुल की मर्यादा और रीति-रिवाज से महाराज दशरथ अयोध्या से बारात लेकर आज के ही दिन जनकपुर आए थे।
अलौकिक विवाह
पंडित राधेश्याम चौबे ने बताया कि कहा जाता है कि जब माता सीता और भगवान राम का विवाह हो रहा था उस दिन उस विवाह को देखने और उसमें शामिल होने के लिए सभी देवी—देवता आए थे। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तब आश्चर्य में पड़ गए जब उन्होंने देखा कि जनकपुर में कुछ भी उनका बनाया हुआ नहीं है। ऐसा अलौकिक था वह विवाह। पंडित संजय तिवारी ने बताया कि जब दशरथ जी बरात लेकर जनकपुर आ रहे थे तो सीताजी ने रिद्धि-सिद्धि को बरातियों की सेवा-सत्कार करने का आदेश दिया था। रास्ते में जगह जगह बरातियों के ठहरने के लिए शामियाने बने थे। और उसमें सुख-सुविधा की प्रचुर सामग्री उपलब्ध थी। कहा जाता है कि ऐसा विवाह न तो पहले कभी देखा गया और न कभी देखा जायगा। और ये सब हुआ था अगहन महीने में विवाह पंचमी के दिन।
(मानस दुबे)