पटना। बौद्ध एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसने अहिंसक प्रसार के माध्यम से अपना विस्तार किया है और यह ईसाईयत या इस्लाम की तरह विज्ञान के विरुद्ध खड़ा नहीं है। आधुनिकतावाद के कारण इंटर रिलीजियस संघर्ष शुरू हुए। आज यह आधुनिकता विश्व सभ्यता का रूप ले चुका है। उक्त बातें हरी सिंह गौड़ विवि, सागर के प्राध्यापक प्रो. अंबिका दत्ता शर्मा ने कहीं। वे शनिवार को एएन कॉलेज में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् द्वारा आयोजित व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। विषय था— आधुनिकता, इंटर रिलीजियस संघर्ष और बौद्ध धर्म का अहिंसक प्रसार।
प्रो. शर्मा ने आधुनिकतावाद के संबंध में विश्व के प्रख्यात दार्शनिकों अगस्त कॉम्ते, कांत, नित्से, हिगल आदि के मतों का वर्णन करते हुए कहा कि आधुनिकता को हमलोग प्राय: समायिकता को बताने के लिए प्रयोग करते हैं, जबकि यह बड़े अर्थों में अवधारणात्मक व पारस्परिक परिभाषित शब्द है। इसकी शुरुआत यूनान में करीब ढाई हजार वर्ष पहले हुई। पहले पूरी दुनिया में सभ्यता के चार ही केंद्र थे। यूनान, मध्य—पूर्व, चीन और भारत। 17वीं शताब्दी तक आधुनिकता ने इन चारों केंद्रों पर भौतिक प्रभाव ही छोड़ा था। लेकिन, 1700 से 1850 तक आते—आते आधुनिकता ने इन चारों के मन को प्रभावित कर दिया। आज स्थिति यह है कि दुनिया की सारी सभ्यताएं अपनी सामाजिक व जातीय विशिष्टता को आधुनितावाद में विलीन कर इसे विश्व सभ्यता का रूप दे दिया है। जर्मन दार्शनिक हिगल ने यूरोसेंट्रिसिज्म के सिद्धांत दिए, जिसका सरल अर्थ यह हुआ कि हम कौन हैं, दुनिया कैसी है, क्या अच्छा या क्या बुरा है, यह सब यूरोप तय करेगा। महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज में इसकी कड़ी आलोचना की है।
प्रो. शर्मा ने इंटर रिलीजियस संघर्ष के संबंध में कहा कि आधुनिकता के प्रसार से धार्मिक संस्थों को खतरा लगा, तो वे सक्रीय हो गईं। चर्च के प्रसार कार्यक्रम या इस्लामिक प्रसार इसके अवांछित परिणाम हुए। भारत के धर्मों की विशेषता रही कि अपने प्रसार के लिए कभी इन्होंने हिंसा का सहारा नहीं लिया। न ही इन्होंने आधुनिक विज्ञान का विरोध किया।
एएन कॉलेज के प्राचार्य प्रो. एसपी शाही ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि दर्शनशास्त्र सभी विषयों का केंद्र है। एएन कॉलेज में अन्य विषयों के मुकाबले दर्शनशास्त्र में सेमिनार या व्याख्यान नहीं होते थे। इसलिए दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा किए गए इस आयोजन से उन्हें प्रसन्नता हो रही है। प्राचार्य ने दर्शनशास्त्र विभाग को आश्वस्त करते हुए कहा कि किसी कार्यक्रम की रूपरेखा बनाते वक्त धन की चिंता बिलकुल भी न करें। कॉलेज प्रबंधन इसमें पूरा सहयोग करेगा। प्राचार्य ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हाल के वर्षों में दर्शनशास्त्र में नामांकन कराने वाले विद्यार्थियों की संख्या में कमी आयी है। इस बार उन्होंने पहल कर 90 विद्यार्थियों का नामांकन दर्शनशास्त्र में करवाया है। उन्हें उम्मीद है कि निकट भविष्य में दर्शनशास्त्र पढ़ने वालों की संख्या में पहले की तरह बढ़ेगी।
मंच संचालन दर्शनशास्त्र विभाग के प्रो. शैलेश कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर आईसीपीआर के अध्यक्ष प्रो. आरसी सिन्हा, पटना विवि में दर्शनशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. आईएन सिन्हा, पटना विवि की प्रो. पूनम सिंह, मुंगेर विवि की प्रतिकुलपति प्रो. कुसुम कुमारी, एएन कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग के शिक्षक व छात्र—छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थीं।