हिन्दू धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व मनाए जाते हैं, पर वट सावित्री का पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या वट सावित्री अमावस्या कहलाती है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं अखण्ड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए वट सावित्री का व्रत व उपवास रख कर वटवृक्ष की पूजा करती हैं।
सावित्री—सत्यवान की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत सावित्री द्वारा अपने पति को पुनर्जीवित करने की स्मृति के रूप में रखा जाता है। कथा के अनुसार जब सावित्री के पति की मौत हो गयी तो वह सती नारी दुख से व्याकुल होकर इसी वट वृक्ष के नीचे अपने पति के जीवन के लिए तपस्या करने लगी। अतः इसे क्षीर यानी अमृत देने वाला वृक्ष माना जाता है और इसे अक्षयवट वृक्ष भी कहते हैं। कहा जाता है कि जब यमराज उसके पति को अपने साथ ले जाने लगे तो सावित्री ने वट वृक्ष के पत्तों से अपने पति की मृत देह को पूरी तरह ढंक कर, यमराज के पीछे चल पड़ी। वह किसी भी कीमत पर अपने पति को वापस पाना चाह रही थी। अंतत: यमराज उसके सतीत्व और पतिभक्ति से द्रवित हो गए और उन्होंने उसके पति को जीवित कर दिया।
पर्यावरण अनुकूलता की परिकल्पना
पुराणों के मुताविक वटवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव का वास माना जाता है। यह वृक्ष लम्बे वक्त तक अक्षय रहता है। अतः इसे अक्षयवट भी कहा जाता है। जैन और बौद्ध धर्माम्बली भी अक्षयवट को अत्यन्त पवित्र मानते हैं। उनके तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने भी अक्षयवट के नीचे बैठकर तपस्या की थी। वट वृक्ष कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह वृक्ष जहां अपनी विशालता के लिए प्रसिद्ध है वहीं आक्सीजन का भी बड़ा उत्सर्जक होने के कारण यह हमें दीर्घायु भी बनाता है। खीरनी, पाकड़, गुलर, वट, पलास आदि वृक्षों का हमारी संस्कृति में काफी उंचा स्थान है, क्योंकि यह हमें जीवन अमृत यानी आक्सीजन प्रदान करते हैं। इसी वृक्ष के नीचे राजकुमार सिद्धार्थ ने बुद्धत्व को प्राप्त किया और भगवान बुद्ध कहलाए।
कब है पर्व और क्या है शुभ मुहूर्त
इस माह अमावस्या 3 जून को है। अतः वट सावित्री का पर्व 3 जून को मनाया जाएगा। भारतीय संस्कृति में यह आदर्श नारीत्व का प्रतीक माना जाता है। इस व्रत में वट और सावित्री दोनों का बहुत ही महत्व है। ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन व व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सुहागिनों के पति को दीर्घायु मिलती है। इस दिन शुभ मुहूर्त में किया गया पूजन लम्बे वक्त तक अक्षय बना रहता है। इस बार जो महिलाएं वट सावित्री का व्रत रख रही हैं, उनके लिए महूर्त जानना बेहद जरूरी है। बता दें 2 जून को 4.39 बजे से अमावास्या की तिथी शुरू हो जाएगी और 3 जून को 3 बजकर 31 मिनट पर अमावास्या की तिथी खत्म हो जाएगी। इसलिए शुभ मुहूर्त 3 जून को प्रातः काल से लेकर दिन के 3:30 बजे तक है। इस बार वट सावित्री व्रत के दिन सोमवती अमावस्या, सर्वार्थसिद्ध योग, अमृतसिद्ध योग के साथ-साथ त्रिग्रही योग लग रहा है। इसके अलावा माना जाता है कि इस दिन शनिदेव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन वट और पीपल की पूजा कर शनिदेव को प्रसन्न किया जाता है।