ट्वीट से कोरोना भगा रहे PK, अरबों कमाये पर महामारी फंड में ठन-ठन गोपाल!

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पटना : अपनी कंपनी आईपैक के माध्यम से चुनाव मैनेज करने और इसप्रकार सैंकड़ों करोड़ कमाने वाले बिहार के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कोरोना के खिलाफ ट्विटर पर जंग छेड़ दी है। अब उनकी इस जंग का असल मकसद गरीबों की चिंता है, या अपनी कंपनी के लिए अगले कॉन्टैक्ट की पृष्ठभूमि तैयार करना, यह तो आनेवाला वक्त ही तय करेगा। लेकिन फिलहाल यह तो साफ है कि कोरोना के खिलाफ गठित पीएम और सीएम केयर फंड में तो उन्होंने अभी तक कोई योगदान नहीं दिया है। जबकि बिहार के मजदूरों, छात्रों, गरीबों के लिए वे इस कोरोना काल में तड़प उठे हैं। इसी तड़प में आज उन्होंने ट्विटर पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार पर जबर्दस्त हमला किया।

नीतीश पर पीके का हमला, ट्वीट की राजनीति

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आज शनिवार को सुबह—सुबह बिहार सीएम नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए ट्वीट कर लिखा कि—’देश भर में बिहार के लोग फंसे पड़े हैं और नीतीश कुमार जी लॉकडाउन की मर्यादा का पाठ पढ़ा रहे हैं। स्थानीय सरकारें कुछ कर भी रहीं हैं, लेकिन नीतीश जी ने सम्बंधित राज्यों से अब तक कोई बात भी नहीं की है। पीएम मोदी के साथ मीटिंग में भी उन्होंने इसकी चर्चा तक नहीं की।

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कोरोना के बहाने अगले चुनावी कॉन्टैक्ट का जुगाड़

उपरी तौर पर देखने से यही लगता है कि प्रशांत किशोर की असल चिंता बाहर फंसे बिहारियों को लेकर है। लेकिन उनकी इस चिंता की असल वजह को लेकर लोग तरह—तरह की चर्चा कर रहे हैं।संभव है कि चुनाव मैनेजमेंट के दौरान विभिन्न दलों में राजनीतिक घुसपैठ कर चुके प्रशांत किशोर को कुछ गैर एनडीए राज्यों से वहां रह रहे प्रवा​सी बिहारियों के बारे में गोपनीय इनपुट भी लीक किया गया हो। ऐसे में कोरोना के इस संकट में केंद्र और राज्य सरकार की रणनीति में कुछ मदद करने की जगह प्रशांत किशोर का यह ट्वीट उनकी अपनी कंपनी की भविष्य के कॉन्टैक्ट के जुगाड़ की कोशिश भी हो सकती है।

केंद्र और बिहार की रणनीति में पलीता लगाने की कोशिश

जहां तक कोरोना से जंग में केंद्र और बिहार की रणनीति का प्रश्न है, अभी तक के आंकड़े दोनों सरकारों की कार्यवाहियों को जायज ठहराते हैं। केंद्र और राज्य ने यह रणनीति अपनाई है जिसमें जो जहां है, वहीं ठहरे। स्थानीय सरकारों उनके लिए इंतजाम करेगी। क्योंकि इस वक्त कोरोना को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग एकमात्र हथियार है। केंद्र ने भी कहा है कि ख़ाद्यान्न की कोई कमी नहीं है। केंद्र और बिहार सरकार ने गरीबों, मजदूरों के खाते में पैसे भी सीधे भेज दिये हैं। बाकी जिम्मेदारी स्थानीय सरकारों, संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को सम्मिलित रूप से उठानी है। ऐसे में लॉकडाउन तोड़ प्रवासियों को गृह राज्यों में लाने संबंधी ट्वीट करना कोरोना के खिलाफ जंग को कमजोर करना नहीं तो और क्या है। दूसरे शब्दों में कहें तो गरीबों, मजदूरों, छात्रों का नाम लेकर निजी कंपनी का हित सोचना कहां तक उचित है? काश! इन ट्विटर के वीरों से कोरोना खुद ही यह प्रश्न पूछ लेता।

@PrashantKishor

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