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भाजपा पर भरोसा या एनडीए की दुर्बल वापसी?

बिहार विधानसभा का चुनाव कोरोनाकाल का सबसे बड़ा चुनाव रहा। शुरुआती ना-नुकुर और असमंजस के बाद आखिरकार भारत के निर्वाचन आयोग ने विधानसभा चुनाव की घोषणा की और मजे की बात कि जो राजनीतिक दल कोरोनावायरस को लेकर शुरू में चुनाव का विरोध कर रहे थे वह भी पूरे दमखम से चुनावी मैदान में कूद पड़े। फिर तो चुनाव का खुमार ऐसा छाया कि कोरोना को लेकर निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देश कागजों तक सीमित रह गए।

कोरोनाकाल के अलावा इस चुनाव को मतदाताओं के मन में भारी उलझन के परिणाम स्वरूप मिले ’लगभग बराबर’ जनादेश के रूप में भी याद किया जाएगा। इसे लगभग बराबर इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि मुकेश सहनी और जीतन राम मांझी की पार्टी के थोड़ा बहुत भी करवट बदलने से सरकार बदल सकती है। मतगणना के दिन शाम के समय एक वक्त ऐसा भी आया जब राजग और महागठबंधन के बीच महज 3 सीटों का अंतर रह गया था।

परिणाम की अंतिम घोषणा के बाद राजद सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में सामने आया और शायद यही कारण है कि परिणाम की घोषणा के बाद तेजस्वी यादव लगातार यह कह रहे हैं कि जनादेश तो उनके पक्ष में है भले ही चुनाव आयोग ने एनडीए के पक्ष में परिणाम दिए हों। हालांकि, अब उनको जनादेश का सम्मान करना चाहिए और विपक्ष में रहकर जनहित के मुद्दों को लेकर सरकार के क्रियाकलापों पर नजर रखना चाहिए।

महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव को चुनावी समर का चेहरा बनाना और उनकी पार्टी के हिंसात्मक और अराजक अतीत को पीछे छोड़कर नए सिरे से एक युवा और ऊर्जावान (शिक्षित नहीं) नेतृत्व के रूप में ब्रांडिंग करना, इससे शुरू में लगा कि मामला महागठबंधन के पक्ष में जा सकता है। लेकिन, वह कहते हैं ना कि अतीत किसी का पीछा नहीं छोड़ती। ऐसे ही जंगलराज का भय लोगों को याद था और 15 साल बाद भी वह भय राजद की दूसरी पीढ़ी के लिए नुकसानदायक रहा।

इन सब बातों के इधर भारतीय जनता पार्टी ने जो प्रदर्शन किया है वह प्रशंसनीय है, क्योंकि 15 सालों के नीतीश विरोधी माहौल और सत्ता में साझीदार रहते हुए भी भाजपा 74 सीटें हासिल करने में सफल हुई है। बिहार प्रदेश नेतृत्व के मनमानी रवैए के बावजूद भाजपा के सफल होने के पीछे उसके विचार परिवार की शक्ति है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर जदयू की सीटें कम करने में लोजपा का भी हाथ है और नीतीश कुमार के चेहरे को लेकर नाराजगी तो है ही।

नई सरकार के गठन के बाद एक स्थिर शासन व्यवस्था बहाल करना भाजपा की जिम्मेदारी होगी, क्योंकि इस बार बड़े भाई के रूप में भाजपा स्वयं है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस बार भी नीतीश कुमार उसी प्रकार बिग ब्रदर की भांति शासन चलाएंगे जैसा वे बीते तीन कार्यकाल के दौरान चलाते आए हैं?