पटना : “यावत् जीवेत, सुखम जीवेत। ऋणं कृत्वा, घृतम पीवेत।।” चार्वाक ऋषि के इस दर्शन का अर्थ है—जब तक जियो, सुख से जियो। कर्ज लो और घी पियो। हाल ही में अपने बेडरूम में पत्नी और बच्चों की हत्या के बाद खुद को भी मार डालने वाले पटना के बड़े कपड़ा व्यवसायी निशांत सर्राफ की भी कमोबेश यही जीवनशैली रही। चर्वाक दर्शन की नींव उनकी लकदक जीवनशैली, हाई-प्रोफाइल कनेक्शन और रईसी ठाठ में साफ दृष्टिगोचर होती है। और शायद यही जीवनशैली परिवार समेत निशांत की मौत की वजह भी बनी। अनुसंधान के क्रम में जैसे—जैसे निशांत सर्राफ के जीवन के पन्ने खुलने शुरू हुए, वैसे-वैसे कर्ज तले दबे रसूखदारी जीवन का रहस्य भी निकल कर सामने आने लगा।
कर्ज के बोझ से दबी रईसी ठाठ
दरअसल, निशांत सर्राफ पटना के कुछ वैसे प्रतिष्ठित व्यवसायियों में से एक थे जिनकी पहचान सांसद, विधायक और यहां तक कि अंडरवर्ल्ड तक थी। जाहिर है कि इस हाई प्रोफाइल करैक्टर में बुजदिली तो नहीं थी। जब लोगों को पता चला कि निशांत सर्राफ ने परिवार समेत ख़ुदकुशी की है तो वे सन्न रह गए। यह इस बात को और पुख्ता करता है कि मल्टी-सेक्टर व्यवसायी के पास कुछ ठोस वजहें रही होंगी, आत्महत्या का रास्ता चुनने की। मौत के बाद पुलिस को व्यवसायी के घर से एक सुसाइडल नोट मिला है जिसमें कुछ 12 लाख रुपयों की चर्चा है। उसी क्षण पुलिस को सूरत के एक व्यवसायी से लिए गए 12 लाख के कर्ज़ का भी कागजी प्रमाण मिला। दोनों का कनेक्शन देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि निशांत ने सुसाइडल नोट में इसी क़र्ज़ की बात की होगी।
निशांत सर्राफ के करीबियों की मानें तो क़र्ज़ के दबाव को लेकर अक्सर पत्नी से उनकी अनबन हो जाया करती थी। निशांत कर्ज़ को लेकर इतने बेफिक्र हुआ करत्ते थे कि शौकिया जरूरतों के लिए भी क़र्ज़ ले लेना कोई बड़ी बात नहीं रही थी। लग्जरी गाड़ियां हों, या घर खरीदना हो तो वे सफ़ेद कॉलर या भारी जेब वाले सरकारी और गैर-सरकारी पहचानों का भरपूर लाभ उठाने में हिचकते नहीं थे। हालांकि, निशांत सर्राफ पर इतने क़र्ज़ के बावजूद अन्य कारोबारियों द्वारा उनपर विश्वास दिखाना यह साबित करता है कि उनको निशांत पर काफी भरोसा था।
हालांकि निशांत की परिवार समेत मौत के तीसरे दिन भी कोई प्रामाणिक सुराग पुलिस को नहीं मिल पाया है। कुछ सवाल अब भी रह जाते हैं कि क्या कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया था कि निशांत को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा।
सत्यम दुबे