पैर छुए, गले लगे…फिर हाजीपुर पर क्यों झगड़ रहे LJP के चाचा-भतीजा?

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पटना : लोजपा के दोनों गुटोंं के NDA में शामिल होते ही पशुपति पारस के साथ गए नेता फिर से चिराग पासवान के खेमे में आते दिखने लगे। NDA बैठक में जिस तरह पीएम मोदी ने चिराग को गले लगाया इससे यह साफ हो गया कि चिराग पासवान अब फिर प्रधानमंत्री के हनुमान के रूप में सक्रिय होंगे। इसका असर ऐसा कि लोजपा में टूट के बाद जो नेता और सांसद पशुपति पारस के साथ हो लिये थे, अब वे भी चिराग के आगे मंडराने लगे। ऐसा होते देख पशुपति पारस ने हाजीपुर सीट पर अपना दांव खेल दिया और ऐलान कर दिया कि वे NDA से लड़ेंगें और इसी सीट से लड़ेंगे।

पारस के इस स्टैंड से यह स्पष्ट है कि NDA में आकर लोजपा के दोनों गुट एक हो गए हैं, यह अभी फाइनल नहीं है। हाजीपुर सीट पर चिराग पहले ही अपना दावा ठोंक चुके हैं। चिराग ने भी बतौर NDA उम्मीदवार ही यहां से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। लोजपा का यह झगड़ा कहीं NDA का सिरदर्द न बन जाए, इसके लिए भाजपा भी सक्रिय हो गई है। भाजपा यह जानती है कि चिराग ने भले ही NDA बैठक में अपने चाचा को देखते हुए उनके पैर छू लिये और पशुपति पारस ने भी चिराग को गले लगा लिया, लेकिन चिराग अपने पिता की मृत्यु के बाद चाचा से मिले घाव को भूल नहीं पाये हैं।

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पशुपति पारस ने रामविलास पासवान की मौत के बाद जिस तरह नीतीश कुमार की शह पर लोजपा को तोड़ डाला था, उसी का सबक सिखाने के लिए चिराग ने हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इधर पशुपति पारस जानते हैं कि उनके लिये महागठबंधन में स्पेस कम है। इधर लोजपा में टूट के बाद जो नेता उनके साथ गए थे, उन्होंने भी अब चिराग पर डोरे डालना शुरू कर दिया है क्योंकि वे जानते हैं कि रामविलास पासवान की विरासत तो अंततः चिराग पासवान को ही मिली है। ऐसे में पशुपति पारस के पास विकल्प काफी सीमित रह गए हैं। इस परिस्थिति में भाजपा दोनों चाचा—भतीजा के बीच रेफरी की भूमिका निभाने में लगी है जिसमें फाइनल निर्णय NDA में सीट शेयरिंग बैठक में किये जाने की उम्मीद है।

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