….तो बिहार में एनडीए टूटते-टूटते बचा! पिछले अगस्त-सितम्बर में बाजाप्ता राज्य स्तर पर जद-यू के चुनावी रणनीतिकार और नेशनल वाईस प्रेसिडेंट प्रशांत किशोर की अगुवाई में एक सर्वे हुआ। उक्त सर्वे का निष्कर्ष यह निकला कि बिहार में जद-यू अपनी धर्मनिरपेक्षता और विकासात्मक पहल के कारण लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस तथा अन्य दलों के साथ जद-यू भाजपा से अलग हो सकती है। लेकिन, ऐन मौके पर गृह मंत्री अमित शाह को इसकी जानकारी मिली और उनकी चाल से जद-यू के कदम थम गये।
सूत्र बताते हैं कि सर्वे में बाजाप्ता यह बात भी उभर कर आयी कि मुस्लिमों का सबसे बड़ा धड़ा धर्मनिरपेक्षता को लेकर जद-यू का मुंह ताक रही है। कारण- राजद तथा कांग्रेस से उसे अब बहुत उम्मीद नहीं रही गयी है। उसे विकल्प की तलाश है। यही कारण है कि बिहार का सबसे बड़ा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र और कश्मीर और लददाख के बाद तीसरा सबसे अधिक घनत्व 72 फीसदी वाली मुस्लिम आबादी किशनगंज में असदुददीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को उपचुनाव में मत देकर विजयी बना दिया।
कांग्रेस, जद-यू और मुस्लिम नेताओं को लेकर बनी थी चौकड़ी
सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि सर्वे की जानकारी जद-यू के सभी वरिष्ठ नेताओं को थी। लेकिन, उन्हें यह नहीं पता था कि सर्वे का उद्देश्य था क्या? वैसे, कुछ नेताओं को तो इसके उद्देश्य की जानकारी थी ही।
जानकारी के अनुसार, टीम प्रशांत चाहती है कि बिहार में 18 फीसदी मुस्लिम, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी के साथ मिलकर भाजपा से अलग होकर सरकार बना ली जाए। भले ही अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद अभी इस सूत्र पर राजनीतिक पहल नहीं हुई, पर सूत्र बताते हैं कि संभव है अगले चुनाव में यह पाॅलिटिकल फार्मूला लागू कर दिया जाए।
टीम प्रशांत ने 1 लाख क्वालिटी यूथ को जोड़ा
वैसे, यूथ इन पाॅलिटिक्स प्रोग्राम के तहत जद-यू ने डाइरेक्ट एक लाख युवकों को पार्टी से जोड़ कर रिकार्ड बनाया है। रिकार्ड इस मायने में भी जुड़ने वाले सभी सोसायटी के क्वालिटी यूथ हैं। मसलन, मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति, प्रमुख, जिला पार्षद, जिला परिषद अध्यक्ष आदि। जाहिर है, जुड़ने वाले युवा जनप्रतिनिधियों के साथ स्थानीय युवकों की भारी भरकम फौज भी है। इसमें क्रिएटिव युवकों को अधिक महत्व दिया गया है। जानकारी के मुताबिक, सभी सीधे टीम प्रशांत से जुड़े हैं।
वैसे, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में बताया जाता है कि वे वेट एण्ड वाच कर स्थिति में हैं। एनआरसी और सीएए पर वे किंकर्तव्यविमूढ़ हैं, जबकि उक्त दोनों मसले पर उनका सीनियर फ्रेन्ड भाजपा मुखर ही नहीं आक्रामक भी है।