‘ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ यानी दिल की ठगी : सबसे पहले रिव्यु यहां पढ़ें

0
Thugs Of Hindostan releases with huge reception at box-office but showed reluctance from next day.

भारतीय राष्ट्रप्रेमी व कथाप्रेमी दोनों होते हैं। यानी उन्हें कोई परी कथा भी देशप्रेम की चाशनी में डूबोकर कही जाए, तो वे आंख मूंदकर न सिर्फ विश्वास करते हैं, बल्कि उससे आनंदित भी होते हैं। यशराज फिल्म्स की हालिया रिलीज ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ में भी इसी सूत्र के साथ कहानी परोसी गई है। 1795 में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था। धोखे से अंग्रेज़ भारतीय रियासतों को अपना गुलाम बना रहे थे। लेकिन, कुछ लोगों को यह गुलामी स्वीकार नहीं थी। अतः वे मौत की कीमत पर भी आजाद रहना चाहते थे। ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ में खुदाबख्श (अमिताभ बच्चन) ऐसा ही किरदार है। वहीं, कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्हें आजादी वैगरह से कोई मतलब नहीं। उन्हें बस अपने से मतलब था। घोर स्वार्थी। फिरंगी मल्लाह (आमिर खान) का किरदार उन्हीं लोगों में से एक है। फिरंगी अंग्रेज़ों के लिए जासूसी करता है। लेकिन, जब वह खुदाबख्श से मिलता है और जफीरा (फातिमा सना शेख) की व्यथा सुनता है, तो उसके अंदर सोया हुआ हिंदुस्थानी जागृत हो उठता है।

पटकथा रेखीय (लिनियर) जरूर है। लेकिन, सपाट नहीं है। उसमें बीच-बीच में रहस्य और रोमांच के कारण गहराई है और साथ में हास्य भी। इसका श्रेय फिरंगी को जाता है। उसके बोलने का ढंग मजाकिया है, जो दर्शकों को गुदगुदाता है। वहीं उसके सोचने का ढंग रहस्यमयी व जटिल है, जिससे दर्शक आगे क्या होने वाला है, इसको जानने के लिए धैयपूर्वक इंतजार करते हैं। दरअसल, फिरंगी का किरदार अपने आप में पूरी पटकथा की मार्गदर्शक है। इस प्रकार से यह कैरेक्टर ओरिएंटेड पटकथा है।

swatva

’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ के निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य फिल्म के निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य उर्फ विक्टर हैं। वे आमिर को ’धूम-3’ में भी निर्देशित कर चुके हैं। विक्टर भव्य फिल्में बनाते हैं। उनकी पहली फिल्म ’टशन’ फ्लाॅप थी। फिर ’धूम-3’ के साथ उन्होंने शानदार वापसी की और अब ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ के साथ हाजिर हैं।

अमिताभ बच्चन और आमिर खान पहली बार एक साथ काम कर रहे हैं। दोनों को साथ देखना सुखद अनुभव है। खुदाबख्श बहुत ही शक्तिशाली किरदार है। इसके लिए वरीय बच्चन फिट हैं। ऊंची कद, गंभीर चेहरा, तीखी आंखें व वजनदार आवाज के मालिक अमिताभ ने खुदाबख्श को अपने अंदर उतारने में कोई कोताही नहीं की है। आमिर ने फिरंगी के मस्मौला अंदाज को पूरे मस्ती के साथ जिया है। उससे मिलते-जुलते पाइरेट्स आॅफ कैरेबियन के किरदार से प्रेरणा लेने साथ अगर संवाद शैली पर थोड़ी और मेहतन होती, तो मजा बढ़ जाता। आमिर फिरंगी मल्लाह के किरदार में होते हुए भी आमिर खान के आभामंडल से नहीं निकलते हैं। वे पूरी फिल्म में छाए रहते हैं और वे ’कुछ भी’ कर सकते हैं। हर बाजी को कहीं भी व कभी भी पलट सकते हैं। तेज दिमाग का मतलब बेतुका होना नहीं होता। आदित्य चोपड़ा ने इतने पैसे खर्च किए, ताकि फिल्म को यथार्थवादी (रियलिस्टिक) बनाया जा सके। लेकिन, आमिर के ओवरडोज ने इसे बनावटी बना दिया। आमिर खान को मि. परफेक्शनिस्ट कहा जाता है। लेकिन, वे अमिताभ की ऊंचाई को छू नहीं पाए हैं। निर्देशक ने एक काम अच्छा किया। फातिमा सना शेख के खाते संवाद अदायगी से ज्यादा तीर चलाने का काम दिया। इससे फातिमा की अभिनय परीक्षा होने से रह गई। कैटरीना कैफ ने सुरैया के रूप में सीमित काम किया है। फिल्म में उन्हें सिर्फ नाचने के लिए रखा गया है। रोनित राॅय थोड़ी देर में ही याद रखने वाला काम कर गए हैं।

मानुष नंदन के कैमरे ने विश्वसनीयता के साथ दृश्यों को फिल्माया है। खासकर गुफा व जंगल के दृश्य। जाॅन स्टीवर्ट ने उर्जात्मक पाश्र्वध्वनि रची है, जो कथा के अनुसार मिलती है और एक्शन दृश्यों को प्रभावी बनाती है। अजय-अतुल का संगीत औसत है। गाने याद रखने लायक नहीं है। फिल्म को चुकि एक भारतीय फिल्मकार ने बनायी है, इसलिए वयावसायिक दृष्टि से संगीत का तड़का लगाया गया है।

Thugs of Hindostan is being compared with Pirates Of The Caribbean, though the makers deny

जब इस फिल्म का ट्रेलर आया, लोगों ने कहना शुरू कर दिया यह फिल्म मशहूर ’पाइरेट्स आॅफ कैरेबियन’ सीरीज की नकल है। फिल्म के प्लाॅट से लेकर किरदारों की रचना तक में ’पाइरेट्स आॅफ कैरेबियन’ की काॅपी लगती है। ’पाइरेट्स आॅफ कैरेबियन’ में जाॅनी डेप द्वारा निभाया गया कॅप्टन जैक स्पैरो के किरदार से आमिर खान का किरदार फिरंगी मल्लाह मिलता-जुलता है। यही हाल ज्योफ्रे रश द्वारा निभाया गया किरदार हेक्टर बरबोसा से प्रेरित अमिताभ बच्चन का किरदार खुदाबख्श का है। दोनों प्रमुख किरदारों के हाव-भाव, पहनावा आदि में काफी समानता है, जैसे फिरंगी का हैट, गहरी आंखें व चतुर स्वभाव आदि। उधर, ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ के मेकर्स का कहना है कि उनकी फिल्म का कालखंड या लोकेशन आदि ’पाइरेट्स आॅफ कैरेबियन’ से मिलता-जुलता हो सकता है। लेकिन, कहानी उससे एकदम अलग है। इसकी कथा 1795 की है, जब ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में शासन चलता था। ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ के बारे में यह कहा जा रहा है कि यह 1839 में अंग्रेज विद्वान फिलिप मीडो टेलर द्वारा लिखित चर्चित उपन्यास ’कंफेशन आॅफ ए ठग’ पर आधारित है। इस बेस्ट सेलिंग नाॅवेल में भारत में होने वाली ठगी की कथा है। फिलिप 15 की उम्र में भारत आए और मुंबई में किरानी की नौकरी की। फिर आद में वे हैदराबाद के निजाम के यहां नौकरी कर ली। इस दौरान उन्होंने भारत को काफी करीब से समझा। उनकी नाॅवल ’कंफेशन आॅफ ए ठग’ इतनी प्रसिद्ध हो गई कि कई वर्षों तक इंग्लैंड में बेस्ट सेलर रही थी। इस उपन्यास के कारण ’ठग’ शब्द इतना प्रसिद्ध हुआ कि अंग्रेजी शब्दकोश में आ गया।
’पाइरेट्स आॅफ कैरेबियन’ से इस फिल्म की तुलना करें या न करें, यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। हां, इतना अवश्य है कि हाल के वर्षों में भारतीय सिनेमा ने विश्वस्तरीय फिल्में बनाने में अपनी योग्यता सिद्ध की है। हाॅलीवुड द्वारा रचे गए तमाशे के मोहजाल से निकलकर देखेंगे, तो भारतीय सिनेमा की सत्यता का पता लगेगा। हाॅलीवुड ने लार्जर दैन लाइफ किरदारों के सहारे माया रचता रहा है। हमारे यहां पिछले साल ’बाहुबली’ और इस साल ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ ने उनके इस तिलिस्म को भी तोड़ा है। भारतीय सिनेमा जीवन का उत्सव हैं। ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ उसी उत्सव की एक झलक है। हर बात में दिमाग लगाना जरूरी नहीं होता। ’ठग्स आॅफ हिंदोस्तान’ को भरपूर मनोरंजन के लिए देखा जा सकता है। यह फिल्म किसी ठग की भांति आपका दिल चुरा लेगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here