वैशाली महोत्सव इस बार तीन दिनों तक भव्यता के साथ मनाया गया। यह महोत्सव अनायास नहीं था। वैशाली की गौरवशाली भूमि का यह अधिकार है कि उसके अस्तित्व का उल्लास उच्चतम रूप में प्रस्फुटित हो। राजा विशाल का शौर्य, विश्व का प्रथम गणराज्य, सुव्यवस्थित न्याय प्रणाली, भगवान महावीर की जन्मस्थली, गौतम बुद्ध की प्रिय भूमि वैशाली को जो गौरव इतिहास ने प्रदान किया है, वह शायद की किसी अन्य को मयस्सर हुआ हो। आज विश्व में जहां कहीं भी गणतंत्र की बात हो, महावीर के अहिंसा की अथवा बुद्ध के दया, करुणा व मध्यम मार्ग की, तब संपूर्ण विश्व इन गुणों के अभिकेंद्र वैशाली कीे ओर देखता है।
वैशाली सांस्कृतिक क्रांतियों की जननी रही है। विश्व में सर्वप्रथम लोकतांत्रिक राज्य की व्यवस्था यहीं कार्यान्वित की गई थी। वैशाली भगवान बुद्ध की कार्यस्थली, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर की जन्मभूमि और विश्व की अनन्य कलासाधिका आम्रपाली की साधना भूमि रही है। प्रवज्या लेने के बाद सर्वप्रथम बुद्धदेव वैशाली आए थे। वैशाली ने बुद्ध देव के गंतव्य पथ का दिशा बोध कराया था। वैशाली से उनका काफी सानिध्य रहा तथा बुद्धत्व प्राप्ति के बाद भी वे प्रायः वैशाली आते रहे।
श्रीमद्भगवत में भी वैशाली नगरी का उल्लेख किया गया है। नृप विशाल के नाम पर ही इस नगरी का नाम वैशाली पड़ा। राजा दशरथ और जनकपुर के राजा सिरध्वज राजा विशाल के समकालीन थे। भगवान श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र और अपने भाई लक्ष्मण के साथ राजा जनक द्वारा आहूत स्वयंवर में भाग लेने के क्रम में वैशाली आए थे। वहां वैशाली के तत्कालीन राजा सुमति ने उन लोगांे का आतिथ्य किया था। वैशाली के लिच्छवी लोग बड़े ही शूर वीर उद्यमी और पराक्रमी थे।
वैशाली का मगध राज्य से भी संपर्क था। यदाकदा वृज्जी संघ और मगध साम्राज्य से टकराव भी होते थे। बौद्ध की द्वितीय धर्म संगीति 387 ई. पूर्व में वैशाली में ही संपन्न हुई थी। चौथी सदी में पाणिनी ने वृज्जि संघ का उल्लेख किया जिसके साक्ष्य काफी प्रमाणिक माने जाते है। वैशाली की अभिषेक पुष्करणी विश्व में विख्यात है। इसमें भारत की प्रायः सभी नदियों का पवित्र जल संग्रह किया गया था। वैशाली संघ के राजाओं का अभिषेक इसी पुष्करणी के जल में कराया जाता था।
वैशाली महोत्सव जो महावीर जयंती के अवसर पर मनाया जाता हैं, उनकी अहिंसा सिद्धी की जयंती है। भगवान महावीर के जन्म के ढाई हजार वर्ष से भी अधिक गुजर चुके हैं। उनकी जन्मस्थली वैशाली के पास क्षत्रिय कुंड था। पिता राजा सिद्धार्थ थे तथा माता का नाम त्रिशला था। भगवान महावीर का मन राज-काज में नहीं लगा, इसलिए वे सारे भौतिक सुखों को त्यागकर मानवता को शांति, अहिंसा का संदेश देने के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया।
भगवान महावीर विहार करते, उपदेश देते पावापुरी पहुंचे, जहां दिवाली के दिन बहत्तर वर्ष की अवस्था में उनका निर्वाण हो गया। वैशाली के राजा विशाल का गढ़, अभिषेक, पुष्करणी, बुद्धभष्मी, स्तूप स्थली, भगवान महावीर की जन्मस्थली (वासोकुंड) जैन मंदिर, विमलकीर्ति सरोवर, काजिमस्तारी की दरगाह, चौमुखी महादेव वैशाली संग्रहालय, शांति स्तूप आदि दर्शनीय स्थल है।
वैशाली गणराज्य के महा पराक्रमी सेनाध्यक्ष सिंह सेनापति अपने युद्ध कौशल के लिए परमविख्यात थे। भगवान बुद्ध एवं भगवान महावीर के अनेक वर्षावास वैशाली में हुए। दिन गुजरते गए। वैशाली की सभ्यता समय और काल के चक्र के साथ ओझल होती गई। परंतु वैशाली की संस्कृति की अमित छाप कायम रही। विदेशी विद्वान यात्री फहियान, व्हेनसांग आदि की रचनाओं में हमे प्राचीन वैशाली के गौरव का विवरण मिलता है।
वैशाली के पास जो कुंडग्राम है वही तीर्थंकर महावीर का जन्मस्थान है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पांचवे दशक में वहां की 25 एकड़ जमीन में भगवान महावीर के स्मारक भवन का शिलान्यास किया था। जापान सरकार के अनुदान से वैशाली में विश्व शांति स्तूप का निर्माण किया गया, जो आज भी हर पर्यटक को अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है।
भगवान बुद्ध के समय वैशाली में बौद्ध संघ का विराट समुदाय रहता था। वैशाली में ही भिक्षुणी संघ की स्थापना हुई थी। इसके माध्यम से महिलाओं को भी साधना की आधिकारिक मान्यता मिली थी। भारत के प्राचीन इतिहास में वैशाली महानगरी का उल्लेख मिलता है। इक्ष्वाकु के वंशधर तृज बिंदु की रानी अलम्बुजा के पुत्र राजा विशाल ने उक्त नगरी की स्थापना की थी।
वैशाली अपनी ऐतिहासिक महत्ता के कारण स्थापित सितारे की तरह है। वैशाली की चर्चा किए बिना तो हमारे देश का इतिहास अधूरा प्रतीत होता है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार शालिग्राम सिंह अशांत ने कहा है- वैशाली है युग को अविरल ज्योति समर्पित करने वाली। भावी भूका आशा केंद्र, राष्ट्र के चर्चित करने वाली।।