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कहानी बिहार के एकमात्र बलिदानी कारसेवक की, जानिए क्या हुआ था उस दिन?

जब राम और रावण का युद्ध हुआ था श्रीलंका में तब राम के साथ जो सेना गई थी उसमें से जितने वीरगति को प्राप्त हुए थे। फिर अमृतवर्षा करके जीवित किये गए थे और फिर सबको सुख मिला, सारी चीजें मिली। जो बाबरी ढांचा था वह एक रावण नामक या फिर रावण जैसा ही एक बुराई था। बाबरी ढांचा नामक रावण की बुराई से लड़ने वाले वानर सेना कारसेवक के रूप में थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अर्धांगिनी भारतेश्वरी माता सीता को रावण के द्वारा चुराए जाने के बाद भारतेश्वरी स्मिता की संस्कृति को भंग करना था, उसी प्रकार राम जन्मभूमि या जन्मस्थान पर एक प्रहार था। भारत की संस्कृति की स्मिता पर प्रहार था , जो कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे, वे राम की सेना के रूप में पहुंचे थे।

यही घटना राम जन्मभूमि के रूप में है, किसी की जन्मभूमि माता के समान होती है यह जन्मभूमि भी माता के सामान है। वे भारतेश्वरी जगत जननी माता सीता थी, यह राम की जन्मभूमि है तथा जन्मभूमि माता है। जन्मभूमि और भारतीय संस्कृति पर एक तरह का कुठाराघात किया गया था तथा स्मिता को खंडित करने का प्रयास किया गया था। विवादित ढांचा भी रावण नामक असुर के समान था तथा इसके खिलाफ राम के आदर्शों को मानकर जीने वाले लोगों ने रावण नाम असुर से लड़ाई किया। जिसमें आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद् ,बजरंग दल तथा आरएसएस के घटक दल सामने आये। इसमें सामान्य जन राम सेना के रूप में सम्मिलित हुए इनका राजनीति से कोई मतलब नहीं था उनका बस एक ही मकसद था कि हमारी भारतेश्वरी स्मिता को खत्म करने का प्रयास करने वाले असुर के खिलाफ लड़ाई करने का और वीरगति को प्राप्त होने का। अब जो-जो शहीद हुए हैं उन शहीदों पर अब समय आया है कि देवकृपा से अमृत वर्षा हो और वो अमर हों।

इस लड़ाई में शहीद होने वाले बहुत लोग थे इनमें से एक थे दिनेश चंद्र प्रसाद सिंह जिनको संघ ने राम सेना के रूप में वीरगति को प्राप्त होने या दीक्षा पाने का अवसर दिया अनिल सिंह जो बिहार के लखीसराय जिले के गंगासराय गांव से ताल्लुक रखते हैं। अनिल सिंह कहते हैं कि जब कारसेवकों को अयोध्या पहुंचना था तो प्रखंड से दो लोग को जाना था और प्रखंड से जाना तय हुआ था मेरा और दिनेश चंद्र प्रसाद सिंह का और नगर से जाने वाले लोग थे कृष्णा जी, रामनारायण बाबा और दिलीप सिंह।

विवादित ढांचे को तोड़ने की शुरुआत

अनिल कहते हैं सुबह के करीब 9 बज रहे थे। बाबरी मस्जिद से थोड़ी दूर पर कारसेवकों का सैलाब उमड़ रहा था, भीड़ बढ़ती जा रही थी। भजन व कीर्तन के साथ जय श्री राम का जयघोष हो रहा था। स्टेज पर लालकृष्ण आडवाणी का भाषण चल रहा था भाषण के एक अंश में वे कह रहे थे कि क्योंकि ये जो रथ है लोक रथ है जनता का रथ है जो सोमनाथ से चला है और जिसने मन में संकल्प किया हुआ है कि 30 अक्टूबर को वहां पर पहुंचकर कारसेवा करेंगे और मंदिर वहीँ बनाएंगे, उसको कौन रोकेगा। इस तरह का भाषण सुनते ही कारसेवकों में जोश भर गया और इसी बीच कुछ कारसेवकों ने मस्जिद के गुंबद पर चढ़ना शुरू कर दिया और ढांचे की ऊंचाई ज्यादा नहीं होने के कारण हज़ारों कारसेवकों ने ढांचे के ऊपर चढ़कर उसे तोड़ना शुरू कर दिया ।

दिनेश का शहीद होना

दो गुंबद गिर चुका था तीसरा गुंबद का तीन तरफ का दीवार गिर चुका था और गुंबद लटका हुआ था और जो भाग दीवार में लटका हुआ था, उसको हमलोग बांस में रॉड का सहारा लेके तोड़ रहे थे। किसी को अनुमान नहीं था कि यह दीवार किधर गिरेगा और दीवार उसी तरफ गिरा जिस तरफ दिनेश खड़े थे। दिनेश जी मलबे में इस तरह दब गए थे कि उनका शरीर नहीं मिल रहा था। दो दिन मशक्कत करने के बाद उनका शरीर मिला और शरीर पर मलबा गिरने के कारण उनका एक पैर कट गया और दूसरा पैर भी आधा कट गया था। इसी बीच कुछ कारसेवक आनन्- फानन में उनको लेकर फैजाबाद गए। लेकिन, ज्यादा खून बह जाने के कारण वो बच नहीं सके।

अशोक सिंघल और विनय कटियार भी बेबस नज़र आये

अनिल सिंह बताते हैं कि जब हम मदद मांगने अशोक सिंघल और विनय कटियार के पास पहुंचे तो वे खुद बेबस थे, दोनों कहने लगे कि हमारा खुद का कोई ठिकाना नहीं है और हम कैसे मदद करें, अभी हम मदद करने की स्थिति में नहीं है। अशोक सिंघल और विनय कटियार इतना कह ही रहे थे कि सीआरपीएफ आयी और दोनों को गिरफ्तार करके ले गई। उम्मीद खोने ही वाले थे कि किसी ने कहा कि कारसेवापुरम में एक महंथ हैं जो सिर्फ लिखते हैं। वे कुछ बोलते नहीं है उनके पास जाईये वो मदद करेंगे। लोगों की बात मानते हुए मैं उनके पास पहुंचकर रोने लगे और कहने लगाए बाबा कैसे जाएँ घर, बिना आग दिए हुए, हिन्दू हैं, रीति रिवाज का पालन तो करना होगा, कुछ मदद कीजिये अब बस आप ही एकमात्र सहारा हैं। फिर एक दिन बाद वो किसी को लिख के दिए और फिर 2 घंटे बाद एक व्यक्ति टाटा 407 में गोभी सब्जी के बीच में पुलिस के डर लाश लेकर आए और लाश पहचानने के बाद लाश का अंतिम संस्कार के लिए जाने लगे।

सुशील कुमार मोदी फोटोग्राफर लेके आये

रास्ते में सुशील कुमार मोदी जो अब बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं वे मिल गए वे कार से आ रहे थे। सुशील कुमार मोदी के कर को रोककर हमलोगों ने कहा कि अभी नेतागिरी करने का समय नहीं है और अभी तुरंत आप एक फोटोग्राफर का व्यवस्था कीजिये और इसका फोटो खिचवाइये फिर वे अपने कर से वापिस गए और एक फोटोग्राफर को साथ में लेते आये और कारसेवापुरम के लोग सारी व्यवस्था कर दिए थे। सिंह बताते हैं कि लाश को मैंने खुद आग दिया जबकि रिश्ते में मैं उसका चाचा लगता था .इसी बीच दिनेश के बड़े भाई और छोटे भाई पहुँच गए और तब तक पूरा शरीर जल गया था उनका सर नहीं जल रहा था। लेकिन, भाई के पहुँचते ही उनका सर जलने लगा और अंतिम संस्कार पूरा करके हमलोग वापिस बड़हिया आये और बड़हिया स्टेशन के पास रामनारायण बाबा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और ढाई महीने बाद जेल से रिहा किया गया।

कारसेवक दिनेश प्रसाद सिंह

आगे भी इस तरह की शहादत के लिए तैयार रहेंगे

अनिल कहते हैं कि भविष्य में अगर कभी ऐसा आंच आये तो जिस तरह से राम के पास कोई सेना नहीं थी लेकिन, मर्यादा के अनुरूप काम करने वाले राम के साथ पूरी सेना साथ हो गई और वे अपराजेय रावण के अभेद्द किले में प्रवेश कर मार गिराया नारी स्मिता की रक्षा किये। भारतवर्ष के नागरिकों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है जो संभव नहीं है। भारत की धरती हमेशा से त्याग और बलिदान की धरती रही है। इसलिए भविष्य में कभी भी भारतीय स्मिता पर किसी तरह की आंच आती है तो शहीद होना सबसे छोटा त्याग होगा। हमने हमेशा से ऐसी लड़ाई जीती है तथा आने वाले समय में भी अपने इतिहास से सीख लेकर भारत की वैसी जनता जो कभी दिखाई नहीं देती है वह भी संस्कृति पर मुसीबत आने बाद प्रचंड रूप लेकर लड़ने के लिए तैयार हैं।

कारसेवक को श्रद्धांजलि देते रामभक्त

आज पवित्र अयोध्या नगरी में राम मंदिर भूमिपूजन होने के स्व दिनेश सिंह के परिवार वाले काफी खुश हैं। परिवार वालों का कहना है आज उनका शहादत सार्थक हुआ। इस मौके पर सैंकड़ों ग्रामीणों ने दिनेश सिंह के स्मारक के पास एकत्रित होकर एक बार पुनः श्रद्धांजलि अर्पित कर राममंदिर निर्माण में उनके योगदान को अतुलनीय बताया।