RCP के भविष्य पर छोटी पार्टियों की नजर, कहीं जन्म न ले एक नया राजनीतिक समीकरण
पटना : बिहार राजनीति में वर्तमान में सबसे अधिक किसी नाम की चर्चा हो रही है तो वह है आरसीपी सिंह यानी रामचंद्र प्रसाद सिंह। दरअसल, पिछले दिनों जदयू के तरफ से राज्यसभा जाने का पत्ता कटने के बाद अब इनपर मंत्री पद जाने का खतरा मंडरा रहा है। इसी बीच इनको एक और परेशानी उस वक्त हुई जब राजधानी पटना में इनके बंगले को खाली करवा दिया गया और कहा गया कि यह बंगला उनका नहीं बल्कि संजय कुमार सिंह उर्फ संजय गांधी का है, अब यह बंगला मुख्य सचिव को दिया गया और संजय गांधी को विधान परिषद वाला फ्लैट दिया गया है।
वहीं,इस घटना के बाद अधिक चर्चा का विषय यह है कि 6 जुलाई तक आरसीपी केंद्र में मंत्री हैं उसके बाद यह प्रधानमंत्री पर निर्भर होगा कि उन्हें मंत्री बनाए रखते हैं या फिर सीधा आरसीपी जमीन पर आ जाते हैं। क्योंकि, इस पुरे घटनाक्रम का बिहार की राजनीति पर लंबा प्रभाव पड़ने वाला है।
आरसीपी सिंह का भविष्य तय करने की जिम्मेदारी अब भाजपा के हाथ
दरअसल, आरसीपी का कद छोटा होने से जदयू का एक खेमा काफी खुश नजर आ रहा है। इधर, आरसीपी सिंह का भविष्य तय करने की जिम्मेदारी अब भाजपा के हाथ में दे दी गई है, ह ही यह तय करेगा की उनको मंत्री बनाए रखना है या फिर नहीं। लेकिन, आरसीपी वापस से मंत्री नहीं बनते हैं तो इसका नुकसान जदयू को ही उठाना पड़ सकता है। क्योंकि, आरसीपी जदयू के अंदर एक नेता बनकर रहते हैं तो ठीक वरना ये जदयू के लिए बड़ा खतरा हो सकते हैं।
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को अपना मुद्दा बना सकते हैं आरसीपी
बता दें कि, यह वहीं, आरसीपी सिंह है जिन्होंने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहते हुए वार्ड स्तर तक पार्टी को मजबूत करने और 33 प्रकोष्ठ बना कर कार्यकर्ताओं के कद को बढ़ाने का काम किया था। इस लिहाज से अभी भी बहुत से ऐसे जमीनी कार्यकर्ता हैं जो इनके साथ है। इसलिए यदि आरसीपी जिले-जिले जाकर नीतीश सरकार द्वारा अपनी और आम कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को अपना मुद्दा बना सकते हैं। इसे पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र की मजबूती पर नेतृत्व को चुनौती दे सकते हैं।
आरसीपी का अपना कद भी कोई छोटा कद नहीं
बता दें कि, आरसीपी का अपना कद भी कोई छोटा कद नहीं है और नीतीश के गृह जिले से आने व एक खास वोट बैंक पर अपना खुद का असर भी रखते हैं। इस लिहाज से यह अपने साथ एक बड़ा वोट बैंक रखकर चलते हैं। इस लिहाज से यदि राजनीति में कोई भी घटना समान्य घटना नहीं होती, और किसी को बाहर का रास्ता दिखाया जाता है तो वह अपना जगह दूसरी जगह जरुर तलाश कर रखता है।
एनडीए को नुकसान
राजनीतिक जानकारों की मानें तो आरसीपी सिंह को भाजपा और जदयू अनदेखा करती है तो कहीं न कहीं इसका कुछ नुकसान दोनों को जरूर उठाना पड़ सकता है। क्योंकि, आरसीपी सिंह के कुशल राजनेता होने के साथ ही साथ प्रशासक की भी भूमिका में रह चुके हैं, इस लिहाज से उन्हें जनता से कैसे जुड़ना है इसकी जानकारी बेहद ही बढ़िया है। साथ ही इन पर दूसरे लोगों की भी नजर बनी हुई है।
जन्म ले सकता है नया राजनीतिक समीकरण
राजनीतिक रणनीतिकार की मानें तो एनडीए से उपेक्षितों की भी नजर आरसीपी पर ठीकी हुई है। नीतीश के विरोध के कारण एनडीए से अलग हुए लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान की भी नजर इस पूरे घटनाक्रम पर लगी हुई है।
इसके साथ ही विकासशील इंसान पार्टी के संस्थापक मुकेश सहनी भी नजर बनाए हुए हैं। वहीं, छोटे दल की इस तरह हश्र देख फिलहाल किसी तरह से एनडीए में हिस्सा ले रही हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा भी विकल्प तलाश रही है। ऐसे में आरसीपी का कद इनके लिए एक आस बन सकता है। बड़े दलों द्वारा छोटे दलों के प्रति रवैये को देखते हुए अब इन दलों में खुद का एक वोट बैंक खड़ा करने की सोच पैदा हो सकती है। अगर लोजपा (रामविलास), वीआइपी व हम के साथ आरसीपी एक मंच पर आते हैं तो यह वोट बैंक 17-18 प्रतिशत हो सकता है, जो बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण को जन्म दे सकता है।
पप्पू भी हो सकते हैं कांग्रेस में विलय
इधर, पप्पू यादव की पत्नी को कांग्रेस के तरफ से उम्मीदवार बनाने के बाद यह भी कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में पप्पू यादव अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस के साथ कर सकते हैं। वहीं कांग्रेस भी राजद से उपेक्षित होने के बाद एक अलग विकल्प की तलाश में लगी हुई है। छोटे-छोटे दलों का गठबंधन होना भविष्य के लिए एक बड़ी बात बन सकती है।
बहरहाल, यह सारा समीकरण अब भाजपा के हाथों में है यदि भाजपा वापस से आरसीपी सिंह को जनरल मंत्री बनाए रखती है तो फिर यह जो छोटे राजनीतिक दलों द्वारा आरसीपी पर निगाहें टिकी हुई है, उसको एक झटका लग सकता है और यदि वापस से आरसीपी को मंत्री नहीं बनाती है तो हो सकता है कि यह छोटे – छोटे उसने एक बड़ा दल बनकर एनडीए को नुकसान पहुंचाए।