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तटस्थ रहकर नीतीश ने एक तीर से साधे ‘तीन’ निशाने

पटना : मोदी सरकार की दूसरी पारी के लिए गठित नई कैबिनेट में शामिल नहीं होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ी राजनीतिक चाल चली है। अर्थात एक बड़ा तीर चलाया है, जिसका असर आगामी कैबिनेट विस्तार में देखने को मिल सकता है। शपथ ग्रहण समारोह से लौटकर बिहार में कदम रखते ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि सांकेतिक प्रतिनिधित्व, अर्थात इस कैबिनेट में उन्हें नहीं रहना है। उन्होंने यह भी कहा कि वे एनडीए के साथ पूरी मजबूती से खड़े हैं। कहीं से कोई दरार अथवा दुविधा नहीं है।

अंदरूनी खटपट से जदयू को बचाया

दरअसल, जदयू में मंत्री पद के लिए तीन से चार प्रमुख दावेदार हैं। जबकि, नीतीश की पार्टी को अन्य घटकों की तरह एक ही सीट दी जा रही थी। ऐसे में पार्टी में विवाद हो सकता था। उनके आसपास मंडराने वालों में राम चन्द्र प्रसाद सिंह तथा ललन सिंह सर्वविदित हैं। दोनों से उनकी नजदीकियां भी हैं, और दोनों अपने-अपने क्षेत्र के अनुभवी भी। सीनीयर तो हैं ही।

‘कुश’ का विश्वास कायम रखने का मौका

चुनाव परिणाम के बाद हो रही चर्चाओं में आरसीपी और ललन सिंह के नाम मंत्रीपद के लिए तो सहज तरीक से लिये ही जा रहे थे, कुशवाहा जाति से किसी एक के नाम की भी चर्चा हो रही थी। कुशवाहा का त्याग और समर्पण नीतीश कुमार के साथ दिखा भी। 16वीं लोकसभा चुनाव में कुशवाहा मत उधर ही गया, जिधर नीतीश कुमार गये। उपेन्द्र कुशवाहा के साथ नहीं। वैसे, पहले भी ये वोट भाजपा की झोली में ही जाता रहा है। ऐसे में चर्चा के बिन्दु में यह भी शामिल था कि कुशवाहा में से किसी एक को नीतीश कुमार मंत्री पद के लिए प्रस्तावित कर सकते हैं ताकि उनका ये वोट बैंक इन्टैक्ट बना रहे। और वे लव-कुश के सर्वमान्य नेता भी बने रहें।

अगले विस्तार में अपर हैंड, केंद्र पर दबाव

कभी अटल बिहारी वाजपेयी के प्रिय रहे दिग्गज नीतीश कुमार ने सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह तटस्थ रह कर केन्द्र के नेतृत्व को असमंजस में तो डाल ही दिया कि कहीं वे नाराज तो नहीं हैं। और, उधर एक मंत्री पद नहीं लेकर अपने वरिष्ठ मित्रों के बीच खटपट अथवा खिचखिच होने से भी पार्टी को बचा लिया। वैसे, इस परित्याग अथवा बलिदान का ईनाम उन्हें तीन पदों के रूप में मिल सकता है। लेकिन, अभी नहीं। अगामी कैबिनेट विस्तार में।
एनडीए के वरिष्ठ नेता ने नीतीश कुमार के इस चातुर्य को अचूक निशाना बताते हुए कहा कि दिल्ली में अभी से ही चर्चा व्याप्त हो गयी है कि आखिर बड़े घटक दलों में से एक, जदयू के किसी नेता को मंत्री क्यों नहीं बनाया गया? इसका जवाब अगले मंत्रिमंडल विस्तार में मिल जाएगा।

(संजय उपाध्याय)