तस्वीरों की लड़ाई में ‘खुदा’ कौन?

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पटना: एक तो नीतीश कुमार भाजपा के पाले में चले गए, दूसरे सत्ता सुख से वंचित हो जाने की टीस। राजद नेता तेजस्वी यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करने का कोई मौका नहीं चूक रहे। कुछ मामलों में तो जहां मौका नहीं रहे तो वहां वे मौका बना भी ले रहे हैं। कुछ ऐसा ही उन्होंने मुजफ्फरपुर बालिका गृह दुष्कर्म मामले में भी किया। क्योंकि तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं। नेता विपक्ष ने इस मामले के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के नीतीश कुमार से करीबी रिश्ते होने का आरोप लगाते हुए जांच प्रभावित करने की बात कही थी। इस सिलसिले में उन्होंने एक तस्वीर दिखाते हुए कहा कि ब्रजेश ठाकुर और नीतीश कुमार के बीच गहरा रिश्ता है। अब एक पुरानी तस्वीर सामने आई है जिसमें ब्रजेश ठाकुर तेजस्वी के पिता श्री लालू यादव के हाथों में हाथ डाले मुस्कुराता हुआ घूम-टहल रहा है।

लालू-ब्रजेश बनाम नीतीश-ब्रजेश

इस तस्वीर के सामने आने के बाद राजनीतिक हलकों में भी हड़कंप मच गया है। पक्ष-विपक्ष सभी एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं। जहां राजद ने जदयू के दो मंत्रियों और राज्य सरकार के कुछ अफसरों को सीधा निशाने पर ले लिया है। वहीं वामदलों ने बिहार बंद का आयोजन कर कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाया है। दूसरी तरफ भाजपा और जदयू ने काउंटर अटैक करते हुए प्रदेश की सारी समस्याओं की जड़ राजद के जंगलराज में होने की बात कही है। जदयू ने तो यहां तक कहा कि लालू-राबड़ी शासन के दौरान ही ब्रजेश ठाकुर को पत्रकारिता तथा एनजीओ की तमाम सहूलियतें प्रदान की गईं थीं। अव आप खुद देखें की तेजस्वी कर क्या रहे हैं। पहले वे अपने पिता और ब्रजेश ठाकुर की तस्वीर देखें फिर ‘ खेत खाए गदहा, मार खाये जुलहा’ की अपनी धारणा को ठीक कर सीएम नीतीश कुमार पर झूठे हमले करना बंद कर दें।

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दोनों तस्वीरों के पीछे की मंशा

दरअसल ब्रजेश ठाकुर के साथ नीतीश और लालू की जो दो तस्वीरें सामने आईं हैं वे अपने आप में एक सिलसिले का संकेत करतीं हैं। सिलसिला वह जसके तहत ब्रजेश ठाकुर का रसूख क्रमशः परवान पर चढ़ा। पहले तो दोनों तस्वीरों का फर्क और मूड देखिए। एक तस्वीर में ब्रजेश ठाकुर कैजुअल रूप में लालू के साथ टहल रहा है। वहीं दूसरी तस्वीर में वह आधिकारिक समारोह में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के निकट खड़ै दो-चार लोगों में शामिल एक चेहरा मात्र है। जहां दूसरी तस्वीर आधिकारिक है, जिसके बारे में कुछ भी ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उसमें छिपाने लायक कुछ है। वहीं लालू के साथ वाली तस्वीर में वह उनके हाथों में हाथ डाले उनकी अनधिकृत निकटता का स्पर्श करते हुए आनंदित हो रहा है। लालू के साथ वाली तस्वीर उसके उस दौर की है जब वह अपनी जड़ें जमाने की शुरुआत कर रहा था। अब इतना तो साफ है कि लालू-राबड़ी के 16 वर्षों के शासनकाल के दौरान वह काफी आगे निकल चुका था। ऐसे में तस्वीरों की इस लड़ाई में कौन ‘खुदा’ है यह तो वक्त ही बताएगा।

एनजीओ और पत्रकारिता की आड़ में बड़े-बड़े खेल

मालूम हो कि ब्रजेश ठाकुर बालिका गृह के परिसर से ही प्रातः कमल नामक लोकल अखबार निकालता था। अपने रसूख और सेवाओं का इश्तेमाल कर उसने पत्रकारों को मिलने वाली कई सुविधाएं प्राप्त कर ली थीं। उसने प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो का कार्ड भी हासिल कर लिया था जिसे अब जाकर रद्द कर दिया गया है। यही नहीं उसने पीआईबी कार्ड धारी होने का फायदा उठा कर नई दिल्ली के पाॅश इलाके में एक मकान भी आवंटित करवा लिया था। इसके अलावा वह एके्रडिशन कमेटी का भी सदस्य नियुक्त हुआ। क्या यह सब केवल एक व्यक्ति को खुश कर हासिल किया जा सकता है? स्पष्ट है कि उसने पक्ष-विपक्ष सभी को मैनेज कर लिया था। तभी तो एक मामूली लोकल अखबार और एनजीओ से जुड़ा होने के बावजूद उसे एक वरिष्ठ और सम्मानित प्रत्रकार को मिलने वाली सहूलियतें प्राप्त हो गयीं।

(अभिषेक)

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