पटना: कोरोना लॉकडाउन के पांचवें चरण में अब देश के साथ ही बिहार को भी अनलॉक करने की प्रक्रिया तेज हो गई है। चुनाव आयोग अगले एक—दो महीनों में कभी भी विधानसभा चुनावों का ऐलान कर सकता है। इसे देखते हुए भाजपा—जदयू—राजद समेत बिहार की सभी पार्टियों ने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा ने गृहमंत्री अमित शाह की वर्चुअल रैली द्वारा चुनावी मुहिम का ऐलान भी कर दिया है। लेकिन एक बात तो साफ है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कोरोना भी एक बहुत बड़े फैक्टर के रूप में अपनी भूमिका निभाने को तैयार है। आइए जानते हैं कि अमित शाह की कोरोना काल में होने वाली रैली के क्या निहितार्थ हैं।
रैली के दौरान होगा भाजपा के चुनावी एजेंडे का खुलासा
बिहार में इस वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनाव की तिथियों को लेकर भले ही अनिश्चितता हो, लेकिन भारतीय जनता पार्टी अपने लक्ष्यों को लेकर एक तय रणनीति पर चलने लगी है। इसी के तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भाजपा की एक डिजिटल रैली 7 जून को करेंगे। सूत्रों के अनुसार जो फीडबैक बिहार में भाजपा को मिला है उसी का आकलन करने के बाद पार्टी ने आगामी विस चुनाव की रणनीति तैयार की है। संभवत: अमित शाह अपनी रैली के दौरान पार्टी नेताओं और पदाधिकारियों के समक्ष चुनावी एजेंडे और जीत के मंत्र को शेयर करेंगे।
बिहार में तबलीगी करतूत के खिलाफ ध्रुवीकरण का फीडबैक
माना जा रहा है कि अमित शाह 7 तारीख की अपने संबोधन में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बहुत कुछ स्पष्ट करेंगे। अंदरखाने से जो बातें छनकर पता चली हैं उसके अनुसार भाजपा बिहार विधानसभा चुनाव में तबलीगी जमात की करतूतों से पैदा हुए ध्रुवीकरण के माहौल पर पूरी तरह फोकस करेगी। इसके अलावा पार्टी कोरोना से निपटने में प्रधानमंत्री मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यों को भी प्रमुखता से जनता के सामने रखेगी।
प्रवासी मजदूरों की नाराजगी दूर करने में सफल हुए नीतीश
अमित शाह की रैली में एक और प्रमुख बात स्पष्ट होने वाली है कि भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। इसमें किसी भी स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच कोई संशय नहीं होना चाहिए। वैसे भी कोरोना को लेकर जो इनपुट अमित शाह को मिला है, उससे वे काफी उत्साहित हैं। उन्हें बताया गया है कि अप्रैल महीने में जब तबलीगी जमात के लोगों के कारण कोरोना संक्रमण के फैलने की ख़बर आई तो बिहार के गांव-गांव में इसके कारण काफ़ी ध्रुवीकरण देखा गया। माना जा रहा है कि इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है।
मोदी-नीतीश के काम और कोरोना को भुनाने की रणनीति
नीतीश के नेतृत्व पर अमित शाह को भरोसा इसलिए भी है कि उन्होंने राज्य के प्रवासी मजदूरों की नारजगी दूर करने में काफी हद तक सफलता पा ली है। शुरुआती दिनों को छोड़ दें तो जिस तरह से प्रवासी श्रमिकों को नीतीश सरकार ने कैंपों में रखा, उनके भोजन से लेकर स्वास्थ्य का पूरा इंतज़ाम किया, उसने काफी हद तक डैमेज को कंट्रोल कर लिया। इतना ही नहीं, उनके टिकट से लेकर खाते में पैसा दिए जाने तक से श्रमिकों में नीतीश कुमार के प्रति नाराज़गी कम हुई है। इसके अलावा, गरीबों के खाते में वो चाहे राशन के लिए 1 हजार रूपए डाले या अन्य योजनाओं का पैसा एडवांस में भुगतान करने के कारण नीतीश कुमार के खिलाफ बहुत ज़्यादा आक्रोश नहीं बचा है। ऐसे में भाजपा विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार के कार्यों और राज्य सरकार की उपलब्धियों को भुनाने में कोई कोर—कसर बाकी नहीं रखना चाहती है।