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सुप्रीम कोर्ट ने लोहार को ST में शामिल करने पर लगाया रोक, लोहारा को मिलता रहेगा लाभ

पटना : सुप्रीम कोर्ट ने लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति यानि एसटी में शामिल करने के बिहार सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है- लोहार और लोहरा जाति एक नहीं है। जस्टिस के एम जोसेफ औऱ जस्टिस ऋषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा-लोहरा जाति में लोहार को भी शामिल करना पूरी तरह से गैरकानूनी और मनमानी है।

बिहार सरकार पर पांच लाख रुपये जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की धारा 342 के तहत अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों की सूची में राज्य सरकार जैसी किसी अक्षम संस्था फेरबदल नहीं कर सकती है। अदालत ने लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का प्रमाणपत्र देने की बिहार सरकार की अधिसूचना रद कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि लोहार बिहार में एसटी है वर्ग में नहीं आते। कोर्ट ने बिहार सरकार पर पांच लाख रुपये जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने साफ किया है अधिसूचना सिर्फ लोहार जाति के संबंध में रद की जा रही है। जबकि वहीं लोहारा को एसटी वर्ग में मिलने वाले लाभ जारी रहेंगे।

लोहारा समुदाय एसटी वर्ग में आता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, लोहारा समुदाय एसटी वर्ग में आता है, जबकि लोहार नहीं। यह फैसला न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और ऋषिकेश राय की पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने बिहार में लोहार जाति को एसटी प्रमाणपत्र देने की 23 अगस्त, 2016 की अधिसूचना रद की है।

सुप्रीम कोर्ट इससे पहले तीन फैसलों- 1996 में नित्यानंद शर्मा, 1997 में विनय प्रकाश शर्मा और 2006 में प्रभात कुमार शर्मा मामले में कह चुका है कि लोहार बिहार में एसटी नहीं, ओबीसी वर्ग में आते हैं।

मालूम हो कि, सुनील कुमार राय समेत कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का बिहार सरकार का आदेश गलत है।

जानकारी हो कि, 8 अगस्त 2016 को बिहार सरकार ने आदेश जारी किया था कि लोहार जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र जारी किया जायेगा। राज्य सरकार ने अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल लोहारा जाति को ही लोहार जाति माना था।