पटना : जदयू के राष्टीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर अर्थात पीके सफोकेशन में आ गये हैं। उनके घुटन की वजह पटना का 43 डिग्री तक बढ़़ा पारा नहीं है, न ही यहां का दमघोंटू प्रदूषण का लेवल। इसकी असली वजह-पार्टी के लगभग सभी सीनियर नेताओं का उनसे कन्नी काट लेना है।
मिली जानकारी के अनुसार पीके कल कार्यकारिणी की बैठक शुरू होने से काफी पहले और शायद सबसे पहले ही मुख्यमंत्री आवास जाकर डेरा जमा चुके थे। एक चतुर राजनीतिक रणनीतिकार पीके को मुख्यमंत्री की दिनचर्या की जानकारी बखूबी है। सो, उनके अनुसार ही गये थे। मीटींग शुरू होने के पहले उनकी मुलाकात भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हुई। शिष्टाचार वार्ता भी हुई।
नीतीश की बेरुखी देख सिपहसलारों ने बनाई दूरी
लेकिन बाद में, खासकर मीटींग शुरू होने के समय उनसे किसी वरिष्ठ नेता ने बात नहीं की। हां, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनसे बाचतीत जरूर की। आदतन गंभीर रहने वाले पीके कल अपना मुंह नहीं खोले। मीटींग में उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करनी थी कि वे जदयू के साथ रहेंगे अथवा नहीं। इतना तो विदित है कि पीके इलेक्शन मैनेजर हैं। और, अब वे एनडीए के शत्रु टीएमसी प्रमुख बंगाल की ममता दीदी को इलेक्शन में सहारा देने चहुंच गये हैं।
इसको लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चा व्याप्त है कि भाजपा का मिशन नम्बर-1 की सूची में आने वाले बंगाल में क्या पीके का इलेक्शन मैनेजर बनकर बिगुल फूंकना भाजपा को सुकुन देगा। शायद नहीं। कारण भी साफ है कि पीके चूकते नहीं हैं। देश के कई इलेक्शन इसके गवाह हैं।
बहरहाल, अंदरखाने से खबर यह भी मिली है कि पीके की नीतीश कुमार के विश्वस्तों से अब नहीं पटने वाली है। खासकर, रामचन्द्र पसाद सिंह, राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह तथा नीरज कुमार के साथ। हालांकि जानकार बतातें हें कि अपनी मुस्कुराहट से जवाब देने वाले पीके लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार के दृश्य से गायब रहे और लगाम आरसीपी अर्थात राम चन्द्र प्रसाद थामे रहे। जानकारी मिली है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब पीके से फ्रीक्वेंट बात नहीं करते जितना पहले करते थे। जानकार तो यह भी बतातें हैं कि पीके कोई निर्णय ले सकते हैं।