अंबेडकर के बताए मार्ग से ही वर्तमान का सबल निर्माण संभव : राकेश सिन्हा

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पटना : जन जागरण सेवा कल्याण संस्थान द्वारा ए एन सिन्हा इंस्टिट्यूट इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज में वर्तमान परिदृश्य में डॉक्टर अंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसके मुख्य वक्ता राज्यसभा सांसद डॉक्टर राकेश सिन्हा ने कहा कि बाबा भीमराव अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन समाज के लिए अर्पित कर दिया। अंबेडकर कहा करते थे मैंने अगर व्यक्तिगत हित की सोची होती तो मैं अपने राजनीतिक जीवन में सब कुछ पा सकता था। लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। मैंने हमेशा सामाजिक हित की बात सोची। इसीलिए मैं आज तक संघर्षरत हूं। समाज भौतिकता से नहीं बौद्धिकता से चलती है। इस बात को अंबेडकर समझते थे इसीलिए उन्होने दलितों के शिक्षा के प्रति जागरूक होने की बात काही।

एएन सिन्हा संस्थान में व्याख्यान, सूबेदार जी ने ये कहा..

धर्म जागरण समन्वय क्षेत्र प्रमुख माननीय सूबेदार जी ने अपने व्याख्यान में कहा  कि आज संत रविदास की जयंती है। और मेरा मानना है डॉक्टर अंबेडकर ही पूर्व जन्म  में रविदास थे। संत रविदास ने कहा था—

swatva
वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर क्यों  मै छोड़ू इसे पढ़ लूँ  झूठ कुरान
वेद धर्म छोड़ू नहीं कोशिश करो हजार
तिल तिल काटो चाहे गोदो अंग कटार।

डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि हिंदू समाज में व्याप्त छुआछूत हिंदू समाज का लक्षण नहीं है। यह  भारत में इस्लाम के आगमन के बाद आरंभ हुआ। अंबेडकर ने कहा कि हिंदू समाज में काफी कमियां अवश्य हैं पर यह संतोष की बात है कि इसमें समय समय पर धर्म सुधार आंदोलन हुए हैं जबकि इस्लाम में ऐसा देखा नहीं जाता। उन्होंने कहा कि इस्लाम एक  बंद निकाय की तरह है । उन्होंने स्पष्ट कहा कि  मुसलमान दूसरे धर्मों के लोगों के साथ तब तक घुलमिल नहीं सकते जब तक कि उनके धर्म से कट्टरता खत्म नहीं हो जाए।

मिथिलेश सिंह ने वामपंथियों पर किया प्रहार

विषय प्रवेश करते हुए चर्चित पुस्तक “अंबेडकर इस्लाम और वामपंथ ” के लेखक श्री मिथिलेश कुमार सिंह ने कहा कि अगर अंबेडकर आज जिंदा होते तो वामपंथियों द्वारा उन्हे सांप्रदायिक घोषित कर दिया गया होता ।वैसे भी अंबेडकर के जीते जी वामपंथियों एवं उनमे साँप नेवले का संबंध था ।अंबेडकर चाहते थे कि भारत की राष्ट्रभाषा संस्कृत हो। 11 सितंबर 1949 को नेशनल हेराल्ड मे  समाचार छपा था कि अंबेडकर संस्कृत के बहुत बड़े पैरोकार हैं और उन्होंने मांग किया है कि भारत की अधिकारीक  भाषा संस्कृत होनी चाहिए।उन्होंने कहा था कि सभी भाषाओं की जननी संस्कृत में ही देश को जोड़ने की क्षमता है । वे समान नागरिक संहिता के भी बहुत बड़े पैरोकार थे और पर्सनल लॉ के घोर  विरोधी थे।

आरएन दास ने लोगों को अंबेडकर से जोड़ने पर दिया बल

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ आरएन दास ने कहा कि आजादी के बाद से ही अंबेडकर के नाम पर केवल  राजनीति की गई है। उनके विचारों से आम जनता को कोसों दूर रखा गया है। अब समय आ गया है कि उनके वास्तविक विचारों को से आम जनता को अवगत कराया जाए।अंबेडकर को लगातार हिंदू धर्म विरोधी साबित करने का प्रयास किया जाता है लेकिन मैं दावे के साथ कह आसकता हूं कि वह हिंदू धर्म के नहीं बल्कि हिंदू धर्म में व्याप्त  अस्पृश्यता के विरोधी थे।

मंच संचालन आशुतोष कुमार ने किया ।कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र का कार्यवाह डॉ मोहन सिंह जी, विश्व हिंदू परिषद के संगठन मंत्री आनंद जी, स्वामी धरमदास ,साध्वी लक्ष्मी माता, धर्म जागरण  समन्वय के प्रदेश प्रमुख अरुण सिन्हा, राजकुमार साहनी, राज किशोर सिंह, अंकित कुमार, मनीष कुमार सिंह, आलोक कुमार, वकील अवधेश सिंह, रामतुजभ सिंह समेत तमाम गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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