‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) की ओर से श्रीराम की पावन नगरी अयोध्या में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यसमिति व यूनियन कौंसिल की बैठक (18-19 दिसम्बर,2021) में ‘ नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, बिहार ‘ को भी भाग लेने का मौका मिला। उपजा (उत्तरप्रदेश जॉर्नलिस्ट्स एसोसिएशन) ने जानकी महल ट्रस्ट परिसर में आयोजन व देश भर से आये पत्रकारों के ठहरने की उत्तम व्यवस्था की थी। उपजा के मित्रों ने हनुमानगढ़ी में श्रीहनुमान जी के पूजन-दर्शन के साथ ही श्रीराम जन्मभूमि पर श्री रामलल्ला के दर्शन और मंदिर निर्माण स्थल पर भ्रमण की व्यवस्था श्रीराम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के महासचिव श्री चंपत राय व सचिव अनिल मिश्र जी के सहयोग से किया था। अतिसंवेदनशील प्रक्षेत्र होने के बावजूद ट्रस्ट के सहयोग से पत्रकारों को काफी सम्मान व सहजता से श्रीरामलल्ला के दर्शन व मंदिर निर्माण स्थल के भ्रमण के सौभाग्य मिला। इस मौके पर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण ट्रस्ट के महासचिव श्री चंपत राय ने निर्माण की प्रविधि और प्रगति से पत्रकारों को अवगत कराया।
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर का निर्माण करीब पिछले 17 महीने से जारी है. 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी थी. तब से लेकर अबतक कई लॉजिस्टिक बाधाओं का पार करते हुए राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से जारी है.
कोरोना संकट और अन्य मुश्किलों की वजह से पिछले एक साल में काम की रफ्तार भले ही धीमी रही हो, लेकिन ट्रस्ट को पूरा विश्वास है कि साल 2023 तक भक्त नए मंदिर में ही रामलला के दर्शन कर पाएंगे.
श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव श्री चंपत राय के मुताबिक, 2023 के अंत तक रामलला का मंदिर तैयार होगा और लोगों को दर्शन करने को मिल पाएंगे, जबकि पूरा मंदिर, श्रीराम जन्मभूमि का निर्माण करीब 2025 तक पूरा हो पाएगा.
110 एकड़ में फैला है पूरा मंदिर परिसर
चंपत राय के मुताबिक, राम मंदिर के निर्माण में कई धार्मिक, वास्तु चीज़ों का ध्यान रखा जा रहा है. अगर पूरे श्री राम मंदिर कॉम्प्लेक्स की बात करें तो मंदिर के अलावा यहां पर म्यूजियम, गेस्ट हाउस और अन्य सभी प्रकार की आधुनिक सुविधाएं मिल सकेंगी. ये पूरा निर्माण करीब 110 एकड़ की ज़मीन पर हो रहा है, जबकि ट्रस्ट को कुल 67 एकड़ की ज़मीन मुहैया कराई गई थी.
लेकिन इस सबके बीच सबसे अच्छी बात ये है कि मंदिर निर्माण को लेकर फंड की कोई चिंता नहीं है. भले ही अभी राम मंदिर के लिए विदेशी फंड या NRI से फंड लेने की इजाजत नहीं मिली है, लेकिन सूत्रों की मानें तो अबतक ट्रस्ट को करीब 3000 करोड़ का चंदा मिल चुका है. जबकि मंदिर निर्माण का लागत 1000 करोड़ तक की है.
ट्रस्ट के लिए राम मंदिर का निर्माण इतना आसान काम भी नहीं रहा है, क्योंकि इस मंदिर पर पूरे देश की निगाहें हैं और दशकों के संघर्ष के बाद यहां पर मंदिर निर्माण की अनुमति मिल पाई है. ऐसे में ट्रस्ट किसी भी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहता है.
आधुनिक तकनीक से नींव का निर्माण
भव्य राम मंदिर के निर्माण में जो सबसे ज्यादा वक्त लेने वाली चीज़ है वो इस मंदिर की नींव का काम है. जब ट्रस्ट बनाया गया तब उसके बाद सबसे पहले इंजीनियर्स की एक टीम बनाई गई, जिसने लंबे वक्त तक नींव को लेकर मंथन किया. इसमें IIT दिल्ली IIT मद्रास, IIT रुड़की, IIT गुवाहाटी, NGRI हैदराबाद, NIT सुरत समेत देश की अन्य संस्थाओं के वरिष्ठ इंजीनियर भी शामिल हुए.
जब मिट्टी की पहचान और स्टडी की गई तब मालूम पड़ा कि 161 फीट ऊंचे मंदिर के लिए मौजूदा स्थिति कमज़ोर पड़ सकती है. इसके बाद नींव को लेकर काम शुरू करने की बारी आई, जिसमें पुरानी सभ्यताओं वाली तकनीक और नई तकनीक को लेकर भी मंथन किया गया. लेकिन बाद में जब नींव को लेकर काम किया गया, तब 70 लाख क्यूबिक फीट मिट्टी को यहां से हटाया गया और उसके बाद खाली जगह होने पर बड़ी नींव का निर्माण कार्य शुरू हुआ.
ऐसे चल रहा है नींव का काम
मंदिर निर्माण का काम देख रही कंपनी Larsen and Toubro मॉनसून के वक्त काम को रोकना चाहता था, ताकि नींव में किसी दूसरी तरह की मिट्टी का कण ना चला जाए. लेकिन लंबे मंथन के बाद काम को चालू रखा गया. हर रोज बुंदेलखंड से 140 बड़े ट्रक नींव निर्माण का सामान लाया जा रहा हैं. अब माना जा रहा है कि जनवरी, 2022 के अंत तक नींव का काम पूरा हो जाएगा.
ट्रस्ट के महासचिव के अनुसार नींव में कुल 44 लेयर्स डाली गई हैं, हर लेयर की मोटाई 8 इंच की है. इसके लिए वाइब्रो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है. पूरी नींव बनने में कुल 125 लाख क्यूबिक फीट मटेरियल लग रहा है, करीब 71 लाख क्यूबिक फीट मटेरियल लग चुका है.
मंदिर निर्माण में पुराने और नए पत्थरों का मिश्रण
नींव के बाद मंदिर निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थरों की बात करें तो राम मंदिर के लिए राजस्थान के भरतपुर में जिस माइन से पत्थर आना था, उसपर कुछ अदालती दिक्कतें आ रही थीं. लेकिन अब ये दिक्कतें दूर कर ली गई हैं, ऐसे में माइन से पत्थर को निकालने का काम किया जा रहा है और उसे तराशने के बाद अयोध्या लाया जाएगा.
करीब दो दशक से अयोध्या में मंदिर स्थल के 3 किमी. दूर करीब 40 हजार क्यूबिक तराशे हुए पत्थर पड़े हुए हैं, जो मंदिर आंदोलन के बाद से विश्व हिन्दू परिषद द्वारा यहां लाए गए थे. ट्रस्ट के मुताबिक, इनमें से करीब 70 फीसदी पत्थरों का इस्तेमाल कर लिया जाएगा, लेकिन कैसे इस्तेमाल होगा वो इंजीनियर्स अपने हिसाब से तय करेंगे.
भगवान राम का जो भव्य मंदिर बनेगा, उसकी दीवारों पर कई तरह की धार्मिक थीम तैयार की जानी हैं. दिल्ली के इंदिरा गांधी आर्ट सेंटर्स के कई आर्टिस्ट, मंदिर निर्माण से जुड़े कई संतों को साथ लाकर इन थीम्स पर बात की जानी है, मंथन के बाद ही इसे फाइनल किया जाना है. मंदिर परिसर का पूरा कामकाज मार्बल से होगा, जब पिलर और पत्थर वाला काम खत्म होगा उसके बाद ही मार्बल का काम शुरू होगा.
भूकंप का भी ध्यान, भीड़ को लेकर भी प्रबंध
मंदिर के निर्माण के वक्त भूकंप को भी ध्यान में रखा जा रहा है, ऐसे में मंदिर पर कितना बोझ आएगा इसका अध्यन भी हो रहा है. चंपत राय ने बताया कि मंदिर के भीतर स्टील का उपयोग नहीं होगा।
पूरे राम मंदिर परिसर परकोटे सहित 110 एकड़ है. वैसे ट्रस्ट को कुल 67 एकड़ जमीन मिली थी, लेकिन नए प्लान के मुताबिक बाकी ज़मीन का प्रबंध किया गया है.राम मंदिर ट्रस्ट के एक सदस्य के मुताबिक, अयोध्या रामनवमी के वक्त 10 लाख तक लोग आ सकते हैं. ऐसे में जब मंदिर बन रहा है और आगे पूरा होगा, तो इतने लोगों के लिए दर्शन में कोई दिक्कत ना हो इसलिए हर चीज़ का ध्यान रखा जा रहा है. पूरी भीड़ सिर्फ राम मंदिर के इर्द-गिर्द ना रहे, ऐसे में पूरे परिसर में म्यूजियम समेत अन्य कई चीज़ें बनाई जा रही हैं.
(श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या से लौटकर)