वाल्मीकि रामायण की हिंदी प्रतिकृति है श्रीरामचंद्रायण

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पटना : सीवान निवासी प्रोफेसर रामचंद्र सिंह ‘सुरसरिया’ ने आठ सौ पन्ने के हिंदी महाकाव्य श्री रामचंद्रायण की रचना की है। यह श्रीरामचंद्रायण वाल्मीकि रामायण की हिंदी प्रतिकृति है। इस महाकाव्य को स्वत्व प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस महाकाव्य का कोरोना की तीसरी लहर के बाद लोकार्पण होगा।

10 वर्षों की अनवरत साधना के बाद हुई 786 पृष्ठों वाले श्रीरामचंद्रायण नामक महाकाव्य की रचना

महाकाव्य के रचनाकार सीवान जिले के सरसर गांव निवासी प्रो. रामचंद्र सिंह ‘सुरसरिया’ बताते हैं कि उनका गांव रामभक्ति के लिए प्रसिद्ध है। गांव में हमेशा रामकथा व रामलीला होती रहती है। वे करीब 20 वर्षों तक अपने गांव की रामलीला में श्रीराम की भूमिका निभाई। तभी से उनके मन में श्रीराम के जीवन पर आधारित महाकाव्य की रचना करने की थी। करीब 10 वर्षों की अनवरत साधना, संतों व रामकथा मर्मज्ञों के साथ सत्संग के बाद 786 पृष्ठों वाले श्रीरामचंद्रायण नामक महाकाव्य की रचना की।

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वाल्मीकि कृत रामायण की रिक्तता को श्रीरामचन्द्रायण करेगा पूरा

प्रकाशन के संपादक का इस महाकाव्य को लेकर कहना है कि ‘रामायण’, आदि कवि महर्षि वाल्मीकि रचित महाकाव्य है। जिसमें श्रीराम की सम्पूर्ण जीवन यात्रा का वर्णन है। रामायण माध्यम से ही विश्व में रामकथा का सिलसिला शुरू हुआ। इसके बाद विभिन्न कालखंडों में विभिन्न भाषाओं में रामायण लिखी गयी। संस्कृत भाषा में रामायण की रचना के बहुत बाद कलिकाल में लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी में रामचरितमानस की रचनाकर रामकथा को सहज, सुलभ बनाया।

रामचरितमानस के माध्यम से रामकथा फिर भारत के घर-घर में पहुंच गयी। वर्तमान भारत की सम्पर्क भाषा हिंदी में रामकथा के विविध संदर्भों को लेकर गद्य-पद्य में कई रचनाएं की गयी हैं। लेकिन, हिंदी में वाल्मीकि कृत रामायण की तरह श्रीराम की सम्पूर्ण जीवन यात्रा का वर्णन करने वाले महाकाव्य की रचना अब तक संभवतः नहीं हुई थी। हिंदी में इस रिक्तता को श्रीरामचन्द्रायण पूरा करेगा। प्रामाणिकता, मौलिकता, छंद प्रबंध, आध्यात्मिक चेतना, सामाजिक-सांस्कृ तिक दृष्टि बोध, जैसी विशेषताओं के कारण यह ग्रंथ महाकाव्य है। देश-काल की सीमा से परे भी है।

बिहार में सरयूजी की पुण्यधारा से पोषित सिवान जिले के सरसर गांव के मूल निवासी प्रो. रामचन्द्र सिंह जी पर प्रभु श्रीराम की विशेष अनुकम्पा है, जिसके कारण उनका मन हमेशा राम कथा श्रवण व चिंतन में लगा रहा। बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक करीब बीस वर्षों तक उन्होंने अपने गांव की रामलीला में श्रीराम के पात्र का अभिनय किया।

इस महाकाव्य का प्रत्येक कांड सर्गों में विभक्त हैं और कुल एक सौ नौ सर्ग हैं

वाल्मीकि कृत रामायण का बार-बार अवगाहन करने वाले प्रो. रामचन्द्र सिंह जी को हिंदी में श्रीराम के अवतरण से लेकर उनके अंतर्धान तक की पूरी कथा को छंदबद्ध करने की प्रेरणा अंतर से मिली। अंतर की प्रेरणा दृढसंकल्प बन काव्य की धारा के रूप में फूट पड़ी। दस वर्षों के सतत पुरुषार्थ व रचना की यात्रा के बाद हिंदी का महाकाव्य श्रीरामचन्द्रायण साकार हुआ। करीब दस वर्षों की अनवरत साधना, संतों व रामकथा मर्मज्ञों के साथ सत्संग के बाद 786 पृष्ठों वाली श्रीरामचन्द्रायण नामक महाकाव्य की रचना हुई। सात कांडों वाले इस महाकाव्य का प्रत्येक कांड सर्गों में विभक्त हैं और कुल एक सौ नौ सर्ग हैं।

रामचन्द्र सिंह जी का यह अनुष्ठान रामकथा के प्राचार-प्रसार के अपने उद्येश्य में हो पूर्ण- श्रीरामभद्राचार्य जी महाराज

हिंदी में रचित इस ग्रंथ में कई स्थानों पर लोकगीतों की समृद्ध परंपरा के दर्शन होते हैं। श्री चित्रकूट तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी श्रीरामभद्राचार्य जी महाराज ने इस ग्रंथ का श्रवण करने के बाद इसकी मुक्तकंठों से प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि प्रो. रामचन्द्र सिंह जी का यह अनुष्ठान रामकथा के प्राचार-प्रसार के अपने उद्येश्य में पूर्ण हो।

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