सामाजिक कलंक खतरनाक और विकास का अवरोधक- आर० सी० सिन्हा

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पटना: अर्थशास्त्र विभाग और आ०क्यू०ए०सी०, कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस, पटना के तत्वाधान में आयोजित विकास की नैतिकता विषय पर व्याख्यान श्रृंखला 10 में प्रोफेसर आर० सी० सिन्हा ने कहा कि मनुष्य का आर्थिक ही नहीं सांस्कृतिक पहलू भी है। उन्होंने मनुष्य के भावनात्मक और संज्ञानात्मक पहलुओं की चर्चा की। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि प्रोफेसर अमर्त्य सेन अर्थशास्त्री ही नहीं लेकिन दार्शनिक भी हैं। विकासशील देशों में सीमांत व्यक्ति विकसित नहीं होता है।

उन्होनें कहा कि विकास के फल निरपेक्ष सिद्धांत और फल सापेक्ष सिद्धांत की चर्चा की। विकास के लिए अगर हम नैतिकता की बात करें तो विकास की प्रकृति समावेशी होनी चाहिए। आज अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मनुष्य भी चिंता या अवसाद से गुजर रहा है। ऐसी परिस्थितियों में उन्होंने मिल और बेन्थम के सिद्धांतों के प्रसांगिकता की चर्चा की।

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उनके अनुसार सामाजिक कलंक बहुत ही खतरनाक है और विकास का अवरोधक है। उन्होंने पंडित दीनदयाल और गुन्नार मिरडल के सिद्धांतों की भी व्याख्या की। उनके व्याख्यान का सार विकास को सामाजिक न्याय के साथ होना चाहिए। उन्होंने नए सामान्य के तीन पहलू उत्तरजीविता, सोशल डिस्टेंसिंग और सहानुभूति की चर्चा की।


इस व्याख्यान श्रृंखला में प्रोफेसर तपन कुमार शांडिल्य, प्रधानाचार्य, कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस, पटना, ने अपने अध्यक्षीय भाषण में सबों का स्वागत करते हुए बताया कि आज के समय में विकास में नैतिकता के सिद्धांत का महत्व है। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय और प्रकृति वादी अर्थशास्त्रियों के विचारों में भी नैतिक सिद्धांतों की महत्ता है। प्रोफेसर एडम स्मिथ भी इसी विचारधारा के समर्थक थे। आज कोविड-19 के दौर में इस विषय की प्रसांगिकता की चर्चा करते हुए कहा कि विकास सामाजिक न्याय के साथ होना चाहिए।

प्रोफेसर डॉ० रश्मि अखौरी व्याख्यान श्रृंखला की संयोजक और विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग ने इस व्याख्यान श्रृंखला का संचालन किया। उन्होनें कहा कि विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति करते समय हमें नैतिक सीमाओं का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि नैतिक विकास तभी संभव है जब सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और आधारभूत आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाए।

नैतिक विकास का अध्ययन क्षेत्र आर्थिक विकास के साधन और साध्य दोनों को प्रतिबंधित करता है। विकास नैतिकता का मुख्य लक्ष्य विकास के दौर में मूल्य मुद्दों को महत्वपूर्ण ध्यान देना है।

प्रोफेसर श्यामल किशोर, दर्शनशास्त्र विभाग, टी०पी०एस० कॉलेज, पटना ने प्रोफेसर सिन्हा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके विभिन्न विभूतियों की चर्चा की।

इस श्रृंखला के खुले सत्र में प्रश्नों ने इसे और भी सूचनाप्रद और मनमोहन बना दिया। इस व्याख्यान श्रृंखला में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभिन्न विभागों के शिक्षक गण छात्र एवं छात्राएं और विशेष अतिथि गण उपस्थित थे।

खुले सत्र में जी० डी० कॉलेज, बेगूसराय से एक प्रोफेसर ने धर्म और विकास से संबंधित प्रश्न किया। डॉ० पूर्णिमा सिंह ने आधुनिकतावाद के बारे में पूछा और भी बहुत सारे प्रश्न पूछे गए। इस व्याख्यान श्रृंखला में प्रोफेसर उमेश प्रसाद, प्रोफेसर श्यामल किशोर, प्रोफेसर सलोनी, प्रोफेसर कीर्ति, प्रोफेसर अनिल नाथ, प्रोफेसर बी० के० सिन्हा, प्रोफेसर अरविंद कुमार नाग, प्रोफेसर मृदुला कुमारी इत्यादि और आइ०क्यू०ए०सी० के समन्वयक प्रोफेसर संतोष कुमार भी उपस्थित थे।

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