शिक्षा में बदलाव जरूरी, एनआईटी पटना में राज्यपाल ने रखे विचार
पटना : शिक्षा में आधारभूत बदलाव कर उसे चरित्र निर्माण और व्यक्ति विकास के टूल के तौर पर डेवलप करने के संकल्प के साथ एनआईटी पटना में आज शनिवार को दो दिवसीय ज्ञानोत्सव विचार मंथन शुरू हुआ। राज्यपाल फागू चैहान ने इसका उद्घाटन करते हुए कहा कि यह पहल शिक्षा व्यवस्था को व्यावहारिक धरातल पर उतारने के उद्देश्य से हुई है। बापू ने कहा था कि शिक्षा केवल तथ्य आधारित ज्ञान का माध्यम नहीं बल्कि यह चरित्र व व्यक्तित्व निर्माण का औजार भी है। इस नई पहल के तहत शिक्षा संस्कृति न्यास शिक्षा को अब ज्ञानवान, चरित्रवान व पर्यावरण के प्रति सजग नागरिक तैयार करने का साधन बनाएगी। इस ज्ञानोत्सव की थीम है-शिक्षा: विकल्प, आयाम एवं नवाचार।
एनआईटी में दो दिवसीय ‘ज्ञानोत्सव’ शुरू
दो दिवसीय ज्ञानोत्सव के उद्घाटन सत्र में अपने बीज वक्तव्य में शिक्षा संस्कृति न्यास के सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि हम इस कार्यक्रम में शिक्षा के क्षेत्र में समस्याओं की चर्चा नहीं करेंगे। हम यहां शिक्षा के क्षेत्र में जमीनी सुधार के लिए किए गए कार्यों एवं विचारों पर चर्चा करेगे। प्राथमिक शिक्षा मौजूदा शिक्षा की रीढ़ है। लेकिन आजादी के बाद से ही इसकी उपेक्षा होती रही है। शिक्षा को लेकर आयोग तो बने लेकिन प्राथमिक शिक्षा को लेकर कोई आयोग नहीं बना। पहली शिक्षा नीति 1968 में और दूसरी 1986 में बनी। अब तीसरी शिक्षा नीति आने वाली है।
तथ्यों के ज्ञान के साथ चरित्र निर्माण भी आवश्यक
उन्होंने कहा कि प्रत्येक 10 वर्ष पर शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। शिक्षा में चरित्र निर्माण को शामिल नहीं किए जाने के कारण समाज में नाना प्रकार की समस्याएं पैदा हुईं। कड़े काननू के बावजूद समस्या बनी हुई है। निर्भया कांड इसका उदाहरण है। निर्भया कांड के बाद कड़े कानून बने लेकिन समस्या का समाधान न हो सका। कानून के साथ ही शिक्षा में भी बदलाव की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मां, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं होता। शिक्षा मातृभाषा में हो तो परिणाम बेहतर होगा। लेकिन, भारत में मातृभाषा में शिक्षा की उपेक्षा होती रही है। यह भावनात्मक बात नहीं बल्कि वैज्ञानिक है। मातृभाषा में बच्चे अधिक तेजी से ज्ञान ग्रहण करते हैं। ज्ञानोत्सव में हम प्रस्ताव पारित नहीं करते, बल्कि संकल्प पारित करते हैं।
बदलाव के लिए नीति और कार्यान्वयन का मॉडल हो
सामाजिक चिंतक रामदत चक्रधर ने कहा कि नीति बन जाने के बाद उसके कार्यान्वयन का मॉडल होना आवश्यक है। शिक्षा को विद्यार्थियों के हृदय और मस्तिष्क में उतारने के लिए कुछ व्यावहारिक मॉडल निर्माण की आवश्यकता है। ताकि दूसरे लोग सीखें और उसे व्यावहारिक धरातल पर उतारें। हमारे पास शिक्षक-विद्यार्थी संबंध के कई उदाहरण हैं। राधाकृष्णन एक आदर्श शिक्षक थे। कर्नाटक से जब उनका स्थानांतरण बंगाल हुआ तब उनके छात्रों ने उन्हें तांगे पर बैठाकर स्वयं अपने कंघों से खीचकर स्टेशन तक पहुंचाया था। बंगाल के प्रसिद्ध शिक्षक आशुतोष मुखर्जी अपने एक प्रतिभावान शिष्य का स्वागत करने स्वयं स्टेशन पहुंच गए थे। इसी प्रकार सीवी रमण ने भारत रत्न पुरस्कार ग्रहण करने की जगह अपने छात्र की वाइवा को अधिक महत्व दिया था।
कई विवि के कुलपतियों ने रखे विचार
पटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गुलाबचंद राम जायसवाल ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से ही भारत में बदलाव की गति को तेज किया जा सकता है। शिक्षा में तथ्यों के साथ ही नैतिकता का व्यावहारिक ज्ञान भी आवश्यक है। पटलिपुत्र विश्वविद्यालय एवं एनआईटी पटना ने संयुक्त रूप से यह आयोजन किया है। एनआईटी पटना के निदेशक पीके जैन ने अतिथियों का स्वागत किया।
समारोह के विशिष्ट अतिथि आईसीपीआर के अध्यक्ष प्रो. आरसी सिन्हा ने कहा कि शिक्षा का मॉडल तैयार करते समय भारत की संस्कृति व प्रकृति का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए। एनआईटी के निदेशक कार्यक्रम का संचालन न्यास के प्रदेश संयोजक डा. विजयकांत दास ने किया।