बेशकीमती ‘पन्ना’ पत्थर का बना है ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग! क्या हैं साक्ष्य?

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नयी दिल्ली/वाराणसी : ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले शिवलिंग पर अब एक और चौंकाने वाली बात बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास तथा संस्कृति और पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर विनोद जायसवाल ने कही है। उनके द्वारा तथ्यात्मक विश्लेषण यह निष्कर्ष देता है कि सर्वे के दौरान ज्ञानवापी बजूखाने में मिला शिवलिंग बेशकिमती हरे पत्थर ‘पन्ना’ का बना हो सकता है। प्रोफेसर जायसवाल ने इस संदर्भ में शैव आगम ग्रंथों का हवाला भी दिया।।

शैव आगम ग्रंथों में वर्णित संदर्भ

शैव आगम ग्रंथों में हिंदू संस्कृति के संदर्भ में यह कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति भगवान शिव की पूजा मिट्टी, गोबर, रेत, लकड़ी, पीतल या तांबा अथवा पत्थर से बने शिवलिंग द्वारा कर सकता है। पौराणिक ग्रंथों में भी सबसे शुद्ध ‘स्फटिक’ से बने शिवलिंग को कहा गया है। लेकिन स्फटिक शिवलिंग को मनुष्य या कारीगर तराश नहीं सकता। इसे प्राकृतिक रूप से ही प्राप्त किया जाता है। इसके बाद बेशकिमती पत्थरों से बने शिवलिंग का जिक्र आता है। उसमें भी पन्ने से बने शिवलिंग की काफी महत्ता बताई जाती है। अब ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग को इसी तरह का ‘पन्ना से बना शिवलिंग’ कहा जा रहा है।

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ऐतिहासिक और पुरातात्विक तथ्य

इस संदर्भ में ज्ञानवापी और बाबा विश्वनाथ मंदिर के ऐतिहासिक और पुरातात्विक तथ्यों की बात की जाए तो पता चलता है कि 1585 ई. में मुगल शासक अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने दक्षिण भारत के संत विद्वान पं. नारायण भट्ट की देखरेख में काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। प्रोफेसर जायसवाल ने कहा कि चूंकि पं. नारायण भट्ट द. भारत के थे और उस वक्त वहां हरे पन्ने का शिवलिंग काफी समय पहले से प्रचलन में था, इसलिए बहुत संभव है कि काशी में भी हरे पन्ने के शिवलिंग लगाये गए हों और ज्ञानवापी वजूखाने में मिला शिवलिंग भी इसी श्रेणी का है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत ने बताया

उधर वजूखाने में मिले शिवलिंग के हरे पन्ने के होने के बारे में एक और तथ्य की ओर काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी ने भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे जो तहखाना है वह असल में मंदिर का ही मंडपम् है। 1990 के दशक में जब वाराणसी के डीएम ने वहां ताला लगाया, तब फोटोग्राफी भी हुई थी। उस समय कुलपति तिवारी भी वहां मौजूद थे। उन्होंने दावा किया कि उस वक्त नंदी के ठीक सामने शिवलिंग मौजूद था और वह हरे पन्ने का ही शिवलिंग था।

बहरहाल, ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट अभी कोर्ट में दाखिल होनी है। लेकिन जहां हिंदू पक्ष वहां विशाल शिवलिंग होने की बात कह रहा, वहीं मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा। अब कोर्ट तो जो फैसला करेगा वह सामने आयेगा ही, लेकिन सारी जटिलताओं से बचने का जो सबसे बेहतर और ईमानदार रास्ता है वह एएसआई सर्वे और पुरातात्विक जांच ही है। क्योंकि अदालत के लिए भी तथ्यों और सबूतों को नजरअंदाज करना काफी ​मुश्किल होगा।

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