पटना : शिक्षा व शिक्षक मूल्यनिष्ठ हों तथा शिक्षकों के अंदर देने का भाव होना चाहिए। अगर छात्र को आशीर्वाद देने की जगह उसे प्रताड़ित करेंगे, तो शिक्षा शीर्षासन करेगी। ऐसा देखा जाता है कि छात्रों को कुलपति से मिलने नहीं दिया जा रहा। छात्र गेट के बाहर आक्रोशित हैं, क्योंकि परीक्षा पास के वर्षों बीत जाने के बाद भी उनका सर्टिफिकेट नहीं मिलता है। उक्त बातें बिहार के राज्यपाल सह विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति लालजी टंडन ने बुधवार को कहीं। वे टीएम भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे थे। विषय था— बिहार के विश्वविद्यालयों में शोध उन्यन हेतु संवेदीकरण कार्यशाला।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलाधिपति ने कहा कि वे जिस कुर्सी पर हैं, वहां से आदेश दिया जाता है। लेकिन, वे अनुरोध कर रहे हैं कि शिक्षकों को सुधरना चाहिए, नहीं तो वे शोषक कहलाएंगे। उन्होंने चेतावनी लहजे में कहा कि जो इस व्यवस्था में सुधार के लिए तैयार नहीं होंगे, उनके लिए दूसरी व्यवस्था करने का अधिकार राजभवन को है।
राज्यपाल ने चाणक्य, सुश्रुत, नागार्जुन, आर्यभट्ट आदि विद्वानों का उदाहरण देने हुए कहा कि लाख अभावों के बावजूद हमारे पूर्वजों ने शिक्षा के प्रकाशपुंज को जीवित रखा। आज संसाधनों की कोई कमी नहीं है। फिर भी शिक्षा की हालत ठीक नहीं है। बिहार की उच्च शिक्षा की प्रशंसा नहीं होती, क्योंकि यहां हालत ऐसी है कि इमारत हैं, तो छात्र नहीं। छात्र हैं, तो शिक्षक नहीं। दोनों हैं, तो पढ़ाई नहीं। उच्च शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन के लिए वे खुद 6 घंटा कार्य कर रहे हैं। अकादमिक कैलेंडर अपडेट हैं। शिक्षकों की कमी नहीं है। हमारी शिक्षा पद्धति में कमी है। इसको सुधारने का समय आ गया है। बिहार के सैकड़ों लोग देश—विदेश में ज्ञानार्जन कर भिन्न क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं। यह सोचने की आवश्यता है कि जिस राज्य में वे जन्मे, उस राज्य ने उन्हें क्या दिया। हमें निराश होने की जरुरत नहीं, बशर्ते हम अपनी जड़ों से जुड़ें रहें। इदं न मम हमारी शिक्षा व्यवस्था का सिद्धांत होना चाहिए।
मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय समाज विज्ञान शोध परिषद् (आईसीएसएसआर) के अध्यक्ष प्रो. बी.बी. कुमार ने उच्च शिक्षा एवं शोधकार्य में बिहार की अल्प भागीदारी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी संस्था द्वारा चार खंडों में डॉक्टरल फेलोशिप के तहत 500 शोधार्थियों को फेलोशिप दिए गए, जिसमें बिहार की भागीदारी सिंगल डिजिट में रही। यहां से प्रोपर आवेदन तक नहीं जाते। दु:ख की बात है कि आईसीएसएसआर से मान्यताप्राप्त बिहार का एकमात्र एएन सिन्हा संस्थान में निदेशक की नियुक्ति के लिए हमलोगों को संघर्ष करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि तकलीफ में यह है कि आजादी के 70 साल बाद भी हम अपने लिए शिक्षा नीति नहीं बना सके। शोधकार्य के नाम पर कॉपी—पेस्ट हो रहे हैं। 1840 तक विश्व की अर्थव्यस्था में हमारा हिस्सा 24 प्रतिशत है, जो आज मात्र 2 प्रतिशत रह गया है। समाज विज्ञानियों की इसकी चिंता क्यों नहीं होती। हमने अपनी शिक्षा व्यवस्था को सूचना आधारित बना कर रख दिया है। इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला। समाज विज्ञानी होने के नाते यह हमारा दायित्व है कि समाज को सुसंस्कृत करने के लिए शिक्षा नीति में हम सुधारात्मक प्रयास करें।
राज्यपाल के प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह ने बिहार की उच्च शिक्षा की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए राजभवन द्वारा किए जा रहे प्रयास को बताया। उन्होंने कहा कि समेकित शिक्षा प्रणाली का विकास करना हमारा लक्ष्य है। हमारे पास संसाधन हैं, इस उन चुनौतियों को समझकर इसका ठीक निष्पादन करने की आवश्यकता है।
इस कार्यशाला में यूजीसी के उपाध्यक्ष डॉ. भूषण पटवर्धन, राज्यपाल के सलाहकार प्रो. आरसी सोबती, सीएसआईआर के अध्यक्ष डॉ. एके चक्रवर्ती, टीएम भागलपुर विवि के कुलपति प्रो. लीला चंद साहा, पटना विवि के कुलपति प्रो. रासबिहारी सिंह, पाटलिपुत्र विवि के कुलपति डॉ. गुलाबचंद्रराम जायसवाल, कॉलेज आॅफ कॉमर्स, आट्र्र्र्र्र्स एंड सांइस के प्राचार्य प्रो. तपन शांडिल्य,पाटलिपुत्र विवि के शिक्षक प्रो. जय मंगल देव समेत बिहार के विभिन्न कॉलेजों के प्राचार्य, प्राध्यापक व शोधार्थी उपस्थित थे।