पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी से पटना में मुलाकात की, लम्बे वक्त से लालू यादव के अस्वस्थ रहने की सूचना प्राप्त हो रही थी। अब जबकि राजद सुप्रीमो पटना आ गए हैं तो मैंने उनसे मिलकर उनका कुशलक्षेम जाना। उक्त बातें निर्दलीय एमएलसी सच्चिदानंद राय राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मुलाक़ात के बाद कही। इसके बाद सच्चिदानंद राय का लालू प्रसाद यादव से मिलने की घटना को राजनीतिक बिरादरी के लोग अपने-अपने तरीके से देख रहे हैं। कोई इसे राजनीतिक सौदेबाजी का हथकंडा बता रहा है, तो कोई विश्वासघात कह रहा है।
प्रतिद्वंदिता और कटुता का रूप ले चुकी है राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा
हालांकि, आईआईटी खड़गपुर जैसे संस्थान के पूर्ववर्ती छात्र सच्चिदानंद राय की राजनीति वर्तमान के राजनीति ग्रामर की पुनर्रचना करने वाली बात है। राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा जब प्रतिद्वंदिता और कटुता का रूप ले ले, तो यह कार्य वैचारिक की जगह हिंसक प्रवृत्ति की हो जाती है। इसी प्रवृत्ति ने आलोचना को गाली-गलौज में तब्दील कर दिया है। लोकतंत्र के लिए आवश्यक प्रतिपक्ष अब प्रतिद्वंदी बन गया।
सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष के सहारे अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है लोक आकांक्षाएं
अंबेडकर केंद्रीय विवि में समाजशास्त्र के प्राध्यापक डॉ शंकर लाल का कहना है कि सामान्य शिष्टाचार मुलाकात सनसनीखेज खबर बनने लगी है। खुले वैचारिक क्षितिज वाले सच्चिदानंद राय की अपनी राजनीतिक शैली वर्तमान में राजनीतिक व्याकरण की पुनर्रचना का एक प्रयास है, जब तक ऐसा नहीं होता तब तक विचार विनिमय का क्षितिज संकीर्ण बना रहेगा। जब विचार का आदान-प्रदान ही नहीं हो तो विकास की बात बेमानी होगी। लेकिन, खुले दिमाग से सोचें तो यह एक शिष्टाचार है, जिसकी बुनियाद पर जिम्मेदार राजनीति खड़ी होती है। जिसमें सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष लोकतंत्र के दो पहिए होते हैं, जिसके सहारे लोक आकांक्षाएं अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है।
पुराने कार्यकर्ताओं से कैसे हैं सम्बन्ध?
भाजपा से निलंबित होने के बावजूद भाजपा और उसके मातृ संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं से मिलना जुलना कम नहीं हुआ। बिहार सरकार के मंत्रियों से मिलकर वे अपने क्षेत्र तथा राज्य की समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव देते रहे हैं।
नीति और विचार की जगह नेताओं के पिछलग्गू बनते जा रहे हैं कार्यकर्त्ता
बकौल सच्चिदानंद राय, कटुता के फिसलन भरी राह पर फिसली राजनीति में दलों के बीच कटुता और वैमनस्य का रोग राजनीतिक पार्टियों के आंतरिक सांगठनिक संरचना में भी दिखाई पड़ रहा है। पार्टी के कार्यकर्ता अपनी नीति और विचार की जगह नेताओं के पिछलग्गू बनते जा रहे हैं या बनाया जा रहा है। पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना देने पर उतारू प्रवृत्ति का इलाज नहीं किया गया, तो भारत में लोकतंत्र का कबाड़ होते देर नहीं लगेगा।
ऐसे लोग हैं लोकतंत्र के दुश्मन
सच्चिदानंद राय अपनी बातों से इस कटु सत्य की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करते रहे हैं। वे खुलेआम कहते हैं पैसा और अय्याश पूर्ण जीवन जीने की आकांक्षा रखने वाले वास्तव में लोकतंत्र के दुश्मन हैं।