सामान्यतः देशभक्ति फिल्मों की विशेषता होती है कि उनमें भावुक कर देने वाले संगीत और ताली बजाने के लिए विवश कर देने वाले संवाद होते हैं। इस संगीत और संवाद के मिश्रण में ऐसा सम्मोहन होता है कि दर्शक देशभक्ति की भावना से सराबोर होकर फिल्म की प्रामाणिकता को टटोलना नहीं चाहता। दर्शकों के इस सम्मोहन का लाभ अब तक फिल्मकार उठाते रहे हैं।
लेकिन, निष्णात फिल्मकार शूजित सरकार की हालिया फिल्म सरदार उधम ने देश भक्ति फिल्मों के सोपान में एक नया शिखर सृजित किया है। रेडियो पर होने वाली उद्घोषणा से लेकर 90 वर्ष पूर्व लंदन के बाज़ार-सड़क के दृश्य तक, फ़िल्म को प्रमाणिकता प्रदान करते हैं। जर्मनी से प्रसारित रेडियो संदेश कहानी को न्यायोचित ठहरता है- “लाइक देयर एलफंट्स, इंडियंस नेवर फॉरगेट देयर एनेमीज़। दे स्ट्राइक देम डाउन इवन आफ्टर ट्वेंटी इयर्स”
युवा और ऊर्जावान अभिनेता विक्की कौशल की मुख्य भूमिका वाली फिल्म सरदार उधम ओटीटी मंच अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है। महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार उधम सिंह के जीवन वृत्त पर आधारित यह फिल्म न केवल उनकी जीवन यात्रा को मार्मिक ढंग से रेखांकित करती है, बल्कि जलियांवाला बाग जैसे न भूल सकने वाले जख्म को एक नई दृष्टि से पड़ताल करने की भी कोशिश करती है। नई दृष्टि कहने का तात्पर्य है कि अब तक की फिल्मों में जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए ब्रिगेडियर जनरल रेगल इन डायर को जिम्मेदार माना जाता रहा है। वहीं, फिल्म ‘सरदार उधम’ इस नरसंहार के केंद्रबिंदु में स्थित पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ड्वायर की प्रत्यक्ष भूमिका को पूरी स्पष्टता के साथ सामने लाती है।
1982 में रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्देशित फिल्म गांधी में भी जलियांवाला बाग नरसंहार के दृश्य फिल्माए गए थे और सन 2000 में चित्रार्थ द्वारा निर्देशित फिल्म ‘शहीद उधम सिंह’ में भी इस नरसंहार का फिल्मांकन हुआ था। इस फ़िल्म में उधम सिंह का किरदार राज बब्बर द्वारा निभाया गया था। 2001 में राजकुमार संतोषी निर्देशित ‘द लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ में भी उस हृदय विदारक घटना का चित्रण किया गया था। लेकिन, शूजित सरकार ने जिस प्रामाणिकता, विश्वसनीयता और आत्मिक स्पर्श के साथ उस जलियांवाला बाग नरसंहार का फिल्मांकन किया है, वह दर्शकों को झकझोर देने के लिए पर्याप्त है। सरकार ने उस दृश्य का सीक्वेंस 28 मिनट तक के लिए अनायास ही नहीं रखा है, बल्कि वह लंबा सीक्वेंस ही फिल्म के मुख्य किरदार के कथानक को आगे बढ़ाने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। पहले की बनी फिल्मों में इस पर ज़ोर नहीं दिया गया था। इस फिल्म की चर्चा में जलियांवाला बाग पर इतना विस्तार से लिखने के पीछे भी यही वजह है की यह पूरी फिल्म उस सीक्वेंस की जमीन पर ही खड़ी है। हां यह अलग बात है कि नॉनलीनियर स्टाइल में कही गई कहानी में यह सीक्वेंस और भी व्यापक प्रभाव डालता है।
फ़िल्म ‘ सरदार उधम’ की चर्चा में जलियांवाला बाग नरसंहार के दृश्य के बाद उसके निर्माण तकनीक पर ध्यान देना भी आवश्यक है। शूजित सरकार ने किरदारों के अलावा इस फिल्म के सेट से भी अभिनय कराया है। विशेष करके रंगों के संयोजन से इस फिल्म की थीम को मजबूती के साथ स्थापित किया है। जैसे ब्रिटिश कालीन पंजाब के दृश्यों को मटमैले और धूसर रंग की पृष्ठभूमि में फिल्माया गया है, जबकि उस कालखंड के लंदन शहर को शार्प ब्लू में दिखाया गया है।
भारत और इंग्लैंड के दृश्यों में रंगों का यह विरोधाभास सरदार उधम सिंह और पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ड्वायर की टकराहट को रेखांकित करने के लिए में सहायक है। रंग और टेक्सचर की चर्चा में रूस की बर्फीली घाटी वाले दृश्य भी प्रभावी हैं। पूर्व सोवियत संघ की बर्फीली घाटी पर चलते हुए विक्की कौशल ‘द रेवेनेंट’ के दृश्यों की याद दिलाते हैं। यहां सिनेमेटोग्राफर अविक मुखोपाध्याय की प्रशंसा करनी होगी। उनके कैमरे ने दृश्यों को प्रमाणिकता के साथ जीवंत किया है। वे महान फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष के साथ काम कर चुके हैं, इसलिए सिनेमा क्राफ्ट की बुनावट को समझते हैं। दूसरी बात है कि उन्होंने शूजित के लिए अक्टूबर और गुलाबो-सिताबो में कैमरा संभाला है। इसलिए ट्यूनिंग के स्तर पर भी दोनों सहज हैं।
विक्की कौशल ने स्वाभाविक अभिनय किया है। विक्की के बाद ओ’ड्वायर की भूमिका निभाने वाले शॉन स्कोट याद रहते हैं। जॉर्ज षष्टम, प्रधानमंत्री चर्चिल, जनरल डायर, एलीन पाल्मर, इंस्पेक्टर स्वान आदि के किरदारों से विश्वसनीयता झलकती है। परिधान से लेकर प्रॉप्स तक में प्रोडक्शन टीम की मेहनत है। शूजित हर बारीकी पर स्वयं ध्यान देते हैं। मद्रास कैफ़े में गहरे हरे पृष्ठभूमि, विक्की डोनर में चटख कलेवर, पीकू में दिल्ली-कोलकाता में घुला सुरम्य हास्य, गुलाबो-सिताबो में लखनवी नोकझोंक… अब सरदार उधम में अतीत के पन्नों को पलटना… सरकार हर बार आपको एक अलग आकर्षण से अपनी ओर खींच लेते हैं।