पटना : कानून ने महिलओं को बहुत अधिकार दिए हैं और उन कानूनी अधिकारों के प्रति उनमें जागरूकता पैदा करने के लिए महिला विकास परिषद और आल इंडिया वीमेन कॉन्फ्रेंस के संयुक्त तत्वावधान में एक जागरूक सम्मेलन हुआ।
सम्मेलन में भाग लेते हुए पटना हइकोर्ट के वरिष्ठ वकील डॉ उमा शंकर प्रसाद ने कहा कि सृष्टि ने ही महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज्यादा अधिकार दिए हुए है। पूरा सृष्टि ही महिलाओं के दम पर चलता है। महिलओं को किसी से अधिकार मांगने की जरूरत नहीं है उन्हें यह अधिकार पहले से ही मिला हुआ है। डॉ उमा शंकर ने कहा कि पिता की संपत्ति में महिलाओं को पिता के जीवित रहने पर कोई अधिकार नहीं रहता है। जो की सरासर गलत है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। अभी तक किसी संविधान, किसी कानून ने महिलाओं को बराबरी का हक़ देने पर नहीं विचार किया है। इसलिए सारे कानून अधूरे और अनुत्पादक हैं। वहीं पटना हइकोर्ट की पूर्व जज और चाणक्य लॉ यूनिवर्सिटी की वाईस चांसलर मृदुला मिश्रा ने कहा कि कानून में महिलाओं को बहुत अधिकार प्राप्त है लेकिन उन अधिकारों को कैसे प्राप्त करना है ये हमें जानना होगा। उन्होंने कहा किअधिकार का मतलब नहीं कि हम परिवार व्यवस्था तोड़ दें, जरूरत है हमें सक्षम बनने की। हमारा परिवार, हमारा देश और समाज सबकुछ कायम रहना चाहिए। लेकिन हमें अपने आप को अंडरएस्टीमेट नहीं करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती का जिक्र किया और कहा कि कोई भी व्यक्ति हमारे बिना परिवार और समाज नहीं चला सकता। वैदिक काल मे स्त्रियों और पुरुषों को बराबर अधिकार था। लेकिन मनु के मुताबिक परिवार का मुखिया पुरुष ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि 1937 में वूमेन राइट एक्ट आने के बाद महिलाओं की स्तिथि में सुधार हुआ लेकिन फिर भी ज़मीन आदि सम्पतियों में उनके अधिकार सीमित ही रहे। 1956 में एक एक्ट बना जिसमे महिलाओं को तीन अधिकार मिले। लेकिन सबसे बड़ा अधिकार उन्हें 2005 में मिला। 2005 में हिन्दू सक्सेशन एक्ट में हिन्दू लॉ के अनुसार बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार दिया गया। जन्म से ही संपति में अधिकार और बराबरी का हक़ उन्हें मिलने लगा। मृदुला मिश्रा ने कहा कि अधिकार तो बहुत हैं लेकिन वे हमें मिलेंगे की नहीं मिलेंगे इसके लिए हमे सचेत रहने की ज़रूरत है। अधिकार को समझने और उसे पाने के लिए तीन चीज़े जरूरी हैं। एजुकेशन, माइंडसेट, अवेरनेस अगर आप पढ़ी लिखी हैं तो आपको पता चल सकेगा कि आपको क्या क्या अधिकार है और आपको कहाँ दबाया जा रहा है। माइंडसेट पर उन्होंने कहा कि आज भी कई घरों में महिलओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है। अवेरनेस पर उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रोग्राम होते रहने चाहिए।हमलोग आपस मे मिलते जुलते रहेंगे तो धीरे धीरे हमें अपने अधिकार समझ मे आने लगेगा।
(मानस द्विवेदी)