सामाजिक दूरी को पालन करते हुए मना रहें वीर कुंवर सिंह की विजय दिवस : भारतीय जनता पार्टी बिहार

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पटना : विश्व में वैश्विक महामारी कोरोना अपने चरम पर है। देश के अधिकांश प्रदेश इस महामारी की चपेट में हैं। कारोना महामारी से बचाव के लिए देशभर में किए गए लाॅकडाउन कानून लागू है। इस लॉकडाउन के कारण लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहें हैं। इस बीच भारतीय जनता पार्टी बिहार के  प्रदेश प्रवक्ता अरविन्द कुमार सिंह ने कहा कि कोरोना वायरस को देखते हुए बाबू वीर कुंवर सिंह की विजय दिवस को भारतीय जनता पार्टी के सारे कार्यकर्ता सोशल मीडिया और अपने-अपने घरों में सामाजिक दूरी को पालन करते हुए मना रहे हैं। साथ ही साथ उन्होंने कहा कि बाबू साहब का जीवन चरित्र इस तरह का है जो सदा राष्ट्र सेवा में अपने जीवन को अर्पण कर दिए।

प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक

Read 7 facts about Babu Veer Kunwar Singhबाबू कुंवर सिंह सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे। अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे| इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है।वीर कुंवर सिंह का जन्म 1777 में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से थे। उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे|

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अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया

अंग्रेजों के लंबे समय तक टिके रहने ...1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया। बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए।

ARA JUNCTION Departure || 15563 ANTYODAYA Express !! - YouTubeआरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, ‘उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।

जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई

जगदीशपुर वार्ता - Home | Facebook23 अप्रैल 1858 में, जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को इन्होंने पूरी तरह खदेड़ दिया। उस दिन बुरी तरह घायल होने पर भी इस रणबाँकुरे ने जगदीशपुर किले से गोरे पिस्सुओं का “यूनियन जैक” नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया। वहाँ से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को इन्होंने वीरगति पाई।

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