संयम, त्याग और आस्था का पर्व है छठ

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चंपारण : पवित्र लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व आज से नहाय खाय के साथ शुरु हो गया, जिसका समापन 14 नवंबर बुधवार को उगते सूर्य देव को अर्ध्य देने के साथ हो जाएगा। छठ पर्व बिहार में सबसे अधिक लोकप्रिय पर्व माना जाता है। यह बहुत ही परम्परागत तरीके से मनाया जाता है। इस पर्व में उपवास का बड़ा महत्व होता है जो संयम, त्याग, प्रेम, आस्था व विश्वास की भावना को बढाता हैं। इस महापर्व को लोग परम्परा, आस्था और विश्वास के साथ मनाते हैं। यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है, जो इस साल 11 नवम्बर को नहाय खाय के साथ शुरु हो गया। आज से हिन्दू स्त्रियां अपने परिवार के आरोग्य एवं मंगलमय जीवन की कामना के लिए छठी मैया की पूजा अर्चना शुरू करती हैं। 12 नवंबर को दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम में रसीयाव रोटी बनाकर छठी मैया का पूजन के पश्चात अन्न ग्रहण करेंगी। 13 नवंबर को पुनः निर्जला व्रत के साथ शाम को अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्ध्य देंंगी तथा 14 नवंबर को छठी मैया की पूजा के साथ उगते सूर्य को अर्घ्य देकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का समापन प्रसाद ग्रहण कर करेंगी।

नियम से करते है छठ पूजा का व्रत

संयम, त्याग, प्रेम, आस्था व विश्वास के इस महापर्व को तीन दिन के निर्जला व्रत के साथ किया जाता है। जिसे बहुत ही नियम के साथ किया जाता है। कुछ व्रतियों का कहना है की बहुत से स्त्री एक साथ तीन दिन निर्जला नही सहन कर सकती तो उनके जगह पहले दिन उनके पत्ति या उनके बेटे उस व्रत को करते है।और बाकी दो दिन वह स्त्री करती है।और इस महापर्व को मनाते है।
इस पर्व में प्रसाद के रूप में ठेकुआ,पूड़ी बनाता है जो मिट्टी के चूल्हे पर बनता है।

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छुट्टी लेकर घर आते हैं सभी परिजन

घर से बाहर रहकर जो लोग कमाते हैं वह इस पर्व को किसी हाल में अपने घर अपने परिजन के साथ बड़ी धूम धाम से मनाना चाहते हैं और दूरदराज रह रहे लोग 1 महीना पहले से ही अपने साधन के अनुसार टिकट बुक कराने लगते हैं। जिनको अपने ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलती उनका मन तो पूरी तरह टूट ही जाता है।

राजन कुमार

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