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साहित्य चिंतन के प्रवाह पर लिखी पुस्तक का लोकार्पण

पटना : साहित्यकार और विश्वविद्यालय सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. शशिशेखर तिवारी की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘साहित्य चिंतन’ का लोकार्पण सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सभागार में हुआ। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि बिहार के पूर्व मुख्य सचिव व नालंदा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति विजय शंकर दूबे ने कहा कि इस पुस्तक में वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक की साहित्य साधना और चिंतन से संबंधित मूल्यवान निबंध संग्रहित हैं। इस अर्थ में इस पुस्तक के लेखक प्रो.शशिशेखर तिवारी को माडर्न आर्य कहना उचित होगा।

पूर्व मुख्य सचिव ने लेखक को मॉडर्न आर्य कहा

श्री दूबे ने कहा कि साहित्य वही है, जिसमें चिंतन और विचार प्रेरणा के स्तर पर स्थायित्व हो और उसकी उपयोगिता बनी रहे। उन्होंने कहा कि अखबार में प्रकाशित आलेख और अन्य प्रकार के दस्तावेजों को हम साहित्य नहीं मानते हैं।

पूर्व डीजीपी ने साहित्य के विज्ञान पर डाला प्रकाश

वहीं समारोह के विशिष्ट अतिथि और बिहार के पूर्व डीजीपी डीएन गौतम ने विज्ञान के संदर्भों से उस पुस्तक के संबंध में चर्चा शुरू की। उन्होंने कहा कि विचार और ज्ञान को ऐसी भाषा में प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि लोग उसे आसानी से समझ सकें और उसे ग्रहण करें। पुस्तक के लेखक की पत्नी व संस्कृत की प्रोफेसर अन्नपूर्णा तिवारी ने कहा कि इनके आलेख को समझना अत्यंत कठिन है। वैसे इस पुस्तक के आलेख शोध व साहित्य को संवृद्ध बनाने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूण हैं।

साहित्य को परिभाषित करना कठिन : शशिशेखर तिवारी

पुस्तक के लेखक प्रो.शशि शेखर तिवारी ने कहा कि साहित्य को परिभाषित करना आसान नहीं है। इस पुस्तक का नाम साहित्य चिंतन रखा गया है जिसमें साहित्य चिंतन का विशेषण है। मेरा मनना है कि साहित्य की रचना की प्रक्रिया स्वयं से संवाद के साथ शुरू होती है। इसमें रचनाकार भोक्ता के साथ-साथ द्रष्टा भी होता है। शायद इसीलिए ऋषियों ने कहा है-रसानंद, ब्रह्मानंद सहोदरा। इस पुस्तक में चैदह निबंध संकलित किए गए हैं। समारोह की अध्यक्षता साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा. अनिल सुलीा ने की। वहीं अतिथियों का स्वागत वरीय उपाध्यक्ष डा.शिववंश पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार व साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा. शंकर प्रसाद ने भी अपने विचार व्यक्त किए।