2024 तक नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में रहेंगे आरसीपी

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RCP SINGH

खुद को जदयू का सर्वमान्य नेता साबित करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समय-समय पर ऐसी राजनीतिक चाल चलते हैं, जिससे यह सन्देश चला जाता है कि जदयू में उनके रहते कोई दूसरा खुद को स्थापित नहीं करे। हाल ही में नीतीश कुमार अपने सबसे करीबी आरसीपी का राज्यसभा टिकट से वंचित कर यह साबित कर दिया कि जदयू मतलब नीतीश कुमार और नीतीश कुमार मतलब जदयू, इसलिए दल के साथ-साथ अन्य राजनीतिक दलों को इससे ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं है।

जॉर्ज से लेकर शरद तक किसी को नहीं बख्सा

आरसीपी को लेकर नीतीश कुमार ने जो कदम उठाया, वह कोई नया नहीं। इससे पहले नीतीश, जार्ज फर्नांडीज, दिग्विजय सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और शरद यादव के साथ ऐसा कर चुके हैं। जॉर्ज फर्नांडीज, दिग्विजय सिंह, उपेंद्र कुशवाहा तथा शरद यादव में बस यही समानता है कि ये सभी नेता एनडीए में रहते हुए केंद्रीय कैबिनेट में शामिल रहे और भाजपा से काफी निकटता रखी। लेकिन नीतीश कुमार ने किसी को भी नहीं बख्सा। नीतीश कुमार इन नेताओं के बढ़ते कद को जदयू और बिहार में अपनी सीएम कुर्सी के लिए बड़ा खतरा मान रहे थे। इसके अलावा वे इनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को भी खूब समझ रहे थे क्योंकि वे कभी नीतीश के काफी करीब हुआ करते थे। लेकिन, आरसीपी के मामले में नीतीश अपने अंजाम में सफल नहीं हो सकते हैं!

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राजनीतिक घटनाओं को कर रहे थे नजरअंदाज

दरअसल, आरसीपी के मामले में नीतीश कुमार के सफल नहीं होने के पीछे पुरानी भाजपा तथा नई भाजपा में काफी अंतर है। आज की परिस्थति में संख्याबल से इतर कुछ कारण हैं। इसलिए, बिहार की तमाम राजनीतिक घटनाओं को नजरअंदाज कर आरसीपी सिंह पीएम मोदी के मार्गदर्शन में अपने कार्य में समर्पित रहे।

टॉप परफ़ॉर्मर में RCP भी

आरसीपी को लेकर यह बातें सामने आई है कि पीएम मोदी के कैबिनेट में शामिल बेहतरीन परफॉर्मेंस वाले कुछ मंत्री हैं, उनमें से एक आरसीपी सिंह भी है। आरसीपी सिंह को जो जिम्मेदारी दी गई है, उसका निर्वहन वे मोदी के आकांक्षाओं के अनुरूप कर रहे हैं। पीएम मोदी के इस ग्रुप में भाजपा के कुछ वरिष्ठ व कद्दावर नेताओं के अलावा आईएएस बैकग्राउंड से जो मंत्री बने हैं, उनका नाम शामिल है।

जदयू में रहते भाजपा और विचार परिवार से प्रभावित

साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि आरसीपी सिंह खुद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का योद्धा साबित करने का कोई भी अवसर नहीं गवां रहे हैं, उन्हें जब मौका मिल रहा है तब वे केंद्र सरकार के इतर भाजपा और संघ के कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। इसके अलावा आरसीपी सिंह व्यक्तिगत बातचीत से लेकर सार्वजनिक तौर पर जातीय जनगणना, विशेष राज्य का दर्जा तथा केंद्र सरकार के कुछ मुहिम और महत्वाकांक्षी योजना, जिसका जदयू विरोध कर रही है, उसे आरसीपी सिंह राष्ट्रहित के लिए जरूरी बता रहे हैं।

आरसीपी का यही क्रियाकलाप और स्टैंड नीतीश को सूट नहीं कर रहा है। लेकिन, अब नीतीश के सामने बहुत ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं है। नीतीश और उनके दल के स्टैंड से अलग होकर आरसीपी सिंह दल में एक विकल्प के रूप में खड़े हो गए हैं। जिसका समर्थन चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी भी गाहे-बगाहे कर देते हैं।

आरसीपी के कार्यकाल को लेकर नीतीश भी आश्वस्त

वहीं, आरसीपी केंद्र मंत्री बने रहेंगे इसका आभास नीतीश कुमार को भी है। इसलिए नीतीश कुमार सार्वजनिक रूप से मीडिया में यह बयान दे दिया कि अभी तो आरसीपी सिंह का कार्यकाल बचा हुआ है, ऐसे में इस्तीफा देना या हटाने की कोई भी बात जरूरी नहीं है।

मिलेगा ईनाम

विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आरसीपी सिंह को यह आश्वासन दिया गया है कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से जो जिम्मेदारी दी गई है, उसका वे निर्वहन करते रहे। उन्हें इसका उचित परिणाम दिया जाएगा। यानी आरसीपी सिंह को अगले कुछ महीनों के अंदर अगर स्थिति सब कुछ भाजपा के अनुकूल रही, तो आरसीपी सिंह को सदन का सदस्य बनाया जा सकता है।

यहां से कौन होंगे उम्मीदवार?

मालूम हो कि एक प्रदेश के मुख्यमंत्री राज्यसभा के भी सदस्य हैं। इस्तीफा देने के बाद उस सीट से किसी काबिल नेता को सदन भेजा जा सकता है। हालांकि, अभी इस तरह की बातें स्क्रीनिंग कमेटी की पहले डेस्क पर आई है। इस पर अभी मंथन के कई दौर शेष हैं।

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