दो पाटों के बीच पिस रहे हैं RCP, डोंट नो व्हाट टू डू वाली है हालत, रडार में JDU के बड़े नेता!
सामने से आकर लड़ें लड़ाई
जदयू के अंदर वर्चस्व और शासन को लेकर जारी अंतर्कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। जदयू के सर्वेसर्वा और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा संरक्षित जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह हर हाल में आरसीपी के अस्तित्व को खत्म करना चाहते हैं। इसके लिए आए दिन जदयू के अंदर आरसीपी समर्थकों को पार्टी में दरकिनार किया जा रहा है या तो उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। जदयू के अंदर हो रही तमाम राजनीतिक घटनाओं पर भाजपा भी नजर बनाए हुई है। इन तमाम राजनीतिक घटनाओं से आहत आरसीपी सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आग्रह कर इस तरह की क्षुब्ध करने वाली राजनीतिक घटनाओं पर अंकुश लगाने को कहा है, तो वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को सामने से आकर वार करने को कहा है। साथी बड़बोले नेताओं पर कार्रवाई की भी अपील की है।
दरअसल, बीते दिन जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने पार्टी के चार नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कहा था कि पदाधिकारी दल को मजबूत एवं सशक्त करने के लिये बनाये जाते है, और उनसे अपेक्षा की जाती है कि अपनी पूरी क्षमता / उर्जा का इस्तेमाल पार्टी एवं पार्टी के सर्वमान्य नेता श्री नीतीश कुमार जी को मजबूती प्रदान करने में लगायेंगे।
इसके विपरीत पिछले कई महीनों से ऐसी कई जिलों से लगातार सूचना मिल रही है कि पार्टी के कुछ पदाधिकारी दलहित के विपरीत पार्टी का समानांतर कार्यक्रम चलाने की भूमिका अदा कर रहे है एवं पार्टी पदाधिकारी के नाम पर पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच गलत संवाद स्थापित कर दिग्भ्रमित कर रहे हैं। कुछ पदाधिकारियों को व्यक्तिगत तौर पर बात कर ऐसे कृत्यों से परहेज करने का परामर्श दिया गया, इसके बावजूद ऐसे कृत किये जा रहे है, जो पूर्णतः दल विरोधी है।
अतः प्रदेश महासचिव अनील कुमार, प्रदेश महासचिव विपीन कुमार यादव एवं प्रदेश प्रवक्ता डॉ० अजय आलोक को पद से मुक्त करते हुए दल के प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किया जाता है। इसके अतिरिक्त भंग समाज सुधार सेनानी के प्रकोष्ठ अध्यक्ष जितेन्द्र नीरज को भी प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किया जाता है।
इस वजह से निकाले जा रहे RCP के करीबी
जदयू से जिन नेताओं को निकाला गया है उनके बारे में कहा जाता है कि वे सभी आरसीपी सिंह के करीबी थे और यह निलंबन का निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के आदेश पर उमेश कुशवाहा ने की है। पार्टी से इन नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने नैतिकता के आधार पर आरसीपी सिंह का केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी मांगा। इस्तीफे के बाद यह चर्चा तेज हो गई कि आखिर ललन सिंह खुद सामने नहीं आकर दल के अन्य बड़े नेताओं से आरसीपी को लेकर दलीय निर्णय और बयान क्यों दिलवा रहे हैं? क्यों जदयू हर हाल में आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर करना चाह रही है?
जिन नेताओं को दल से बाहर निकाला गया है वे भी आरसीपी सिंह की तरह विचार रखते हैं। आरसीपी सिंह खुद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का योद्धा साबित करने का कोई भी अवसर नहीं गवां रहे हैं, उन्हें जब मौका मिल रहा है तब वे केंद्र सरकार के इतर भाजपा और संघ के कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। इसके अलावा आरसीपी सिंह व्यक्तिगत बातचीत से लेकर सार्वजनिक तौर पर जातीय जनगणना, विशेष राज्य का दर्जा तथा केंद्र सरकार के कुछ मुहिम और महत्वाकांक्षी योजना, जिसका जदयू विरोध कर रही है, उसे आरसीपी सिंह राष्ट्रहित के लिए जरूरी बता रहे हैं। यही विचार रखने के कारण 14 जून को प्रदेश महासचिव अनील कुमार, प्रदेश महासचिव विपीन कुमार यादव, प्रदेश प्रवक्ता डॉ० अजय आलोक एवं भंग समाज सुधार सेनानी के प्रकोष्ठ अध्यक्ष जितेन्द्र नीरज को दल से बाहर किया गया।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर JDU मांग रही इस्तीफा, तो BJP नहीं ले रही इस्तीफा
जदयू क्यों लेना चाह रही इस्तीफा
विदित हो कि जो जुलाई महीने में राष्ट्रपति का चुनाव होना है, ऐसे में पिछले 2 राष्ट्रपति चुनाव का रिकॉर्ड देखें, तो नीतीश कुमार जिसके साथ रहे हैं उसके विपरीत जाकर उन्होंने मतदान किया है। 2012 में नीतीश कुमार ने प्रणब मुखर्जी के पक्ष में मतदान किया, जबकि उस समय वे एनडीए का हिस्सा थे। इसके अलावा 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन में रहते हुए एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया था। हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव में जदयू के समर्थन से जुड़े सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा कि अभी तक तो इस बारे में कोई निर्णय नहीं हुआ है, अभी कौन उम्मीदवार होंगे इसके बाद जदयू निर्णय लेगा कि किसे समर्थन करना है। वैसे भी राष्ट्रपति चुनाव में तो हम लोगों ने उम्मीदवार के नाम पर समर्थन दिया है, दल या गठबंधन के आधार पर समर्थन नहीं दिया है।
राष्ट्रपति चुनाव में पलटने के लिए RCP का बाहर होना जरूरी
ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर होने वाले वोटिंग से पहले नीतीश कुमार हर हाल में आरसीपी को केंद्रीय कैबिनेट से बाहर करना चाहते हैं। ताकि जदयू निश्चिन्त होकर पसंदीदा उम्मीदवार को वोटिंग कर सके। अगर आरसीपी केंद्रीय कैबिनेट में शामिल रहेंगे तो जदयू एनडीए समर्थित उम्मीदवारों के खिलाफ मतदान करेगी, तो जनता में एक संदेश जाएगा, जो नीतीश कुमार की छवि को नुकसान पहुंचाएगा। वहीं, भाजपा को भले इसका फायदा ना हो लेकिन, इसका नुकसान भी नहीं होगा। क्योंकि, आरसीपी सिंह लगातार यह कह चुके हैं कि हमारी सरकार जो है वह भाजपा के उदारता के कारण चल रही है। हमारे नेता नीतीश कुमार आज बिहार की सेवा कर रहे हैं, तो यह भाजपा के बदौलत है।
खराब हो सकती है बड़े नेताओं की छवि!
वहीं, भारतीय जनता पार्टी अभी भी इस उम्मीद में है कि जदयू में नीतीश कुमार के बाद अगर किसी का दबदबा है, तो वे आरसीपी सिंह का, भले नीतीश कुमार के कारण आरसीपी सिंह से लोग दूरी बना लिए हो, लेकिन अंदर मन में अभी भी आरसीपी के प्रति उनका सम्मान बरकरार है। भाजपा इसी कारण आरसीपी को राष्ट्रपति चुनाव तक केंद्रीय कैबिनेट से बाहर नहीं करना चाह रही है। अगर नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा समर्थित उम्मीदवार के खिलाफ जाते हैं तो बाद में अगर जदयू में कोई राजनीतिक उथल-पुथल या किसी बड़े नेता की छवि खराब होती है तो इसके पीछे आरसीपी सिंह का नेतृत्व रहेगा। हालांकि, विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह 2024 तक केंद्र में मंत्री बने रह सकते हैं।