पटना : देश के इतिहास और सामाजिक व्यव्यस्था पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रकोप है। औपनिवेशिक शासन द्वारा हमारी संस्कृति और पाठ्यक्रमों को अपने ढंग से गढ़ा गया है। उक्त बातें राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद के संरक्षक डॉक्टर पीवी कृष्णभट्ट ने पटना में होने वाले तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले प्रेस को संबोधित करते हुए कही।
राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद की अध्यक्षा सुषमा यादव ने कहा कि इस संस्था का मूल ध्येय औपनिवेशिक अवधारणा से परे भारतीय संस्कृति पर वृहद विचार और दर्शन को पाठ्यक्रम में शामिल कराने का है। वहीं परिषद के महामंत्री श्री वाजपेयी ने कहा कि भारतीय दर्शनशास्त्र में आमूल-चूल बदलाव में मीडिया की भूमिका अहम है। उन्होंने परिषद में हुई बातों को आमजन और छात्रों तक पहुंचाने का अनुरोध किया।
पाटलिपुत्रा यूनिवर्सिटी के कुलपति गुलाबचंद जायसवाल ने कहा कि हमारी विरासत नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय के समय से रही है। हमारे पाठ्यक्रमों में राजाराम मोहन राय और विवेकानंद जैसे महनुभावों के विचारों का क्षरण हो गया है।
बीएचयू की वरिष्ठ प्रोफेसर चंद्रकला पंड्या ने भारत की नैतिक मूल्यों पर बात करते हुए कहा कि हमारा चिंतन बौद्धिक चिंतन नहीं बोध का चिंतन है। मनुस्मृति की आलोचना करने वाले लोग अब तक मनुस्मृति में महिला सम्मान के विषय में नहीं जानते। शायद इसीलिए भारतीय समाजशास्त्र अब तक विश्व पटल पर ख्याति नहीं पा सका है।
कल महामहिम करेंगे शिरकत
कल ज्ञान भवन में समाज विज्ञान और पुनरुत्थान विषय को ले कर तीनदिवसीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। इसमें समाज वैज्ञानिकों का जमावड़ा होगा। इस संगोष्ठी में विद्यार्थी भी आमंत्रित हैं। इस कार्यक्रम में वक्ताओं के अलावा समाज वैज्ञानिक हरि मोहन शर्मा और विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षक मौजूद रहेंगे। तीन दिवसीय अधिवेशन में कल महामहिम राज्यपाल लालजी टंडन उद्घाटनकर्ता की भूमिका में नजर आएंगे। समाज वैज्ञानिकों का पाटलिपुत्र की धरती पर ऐसा अधिवेशन पहली बार आयोजित होगा।
सत्यम दुबे