‘राष्ट्र’ शब्द नेशन का हिंदी पर्याय नहीं: हृदय नारायण दीक्षित

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चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के समापन सत्र को संबोधित करते हृदय नारायण दीक्षित

विमर्श को राष्ट्रीय दिशा देने के लिए चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव

विभिन्न साहित्य का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो : स्वांत रंजन

जिस राज्य के शिक्षा मंत्री ने मानस पर अपमानजनक टिप्पणी की, उसी भूमि पर उस तिरस्कार का प्रक्षालन : कुमार दिनेश

अगले वर्ष फरवरी में दरभंगा में आयोजित होगा चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव : डॉ. मोहन सिंह

पटना: यूरोप के देशों में 10वीं सदी के समय जो पुनर्जागरण हुआ, उस समय अंग्रेजी का ‘नेशन’ शब्द अस्तित्व में आया, जबकि लगभग 10 हज़ार वर्ष पूर्व वेद की ऋचाओं में हमारे ऋषियों ने राष्ट्र शब्द का वर्णन किया है। स्वाभाविक है कि यूरोप के देशों द्वारा नेशन और नेशनलिज्म का जो अर्थ लगाया जाता है, वह भारतीय वांग्मय के राष्ट्र शब्द के अर्थ से बिल्कुल भिन्न और संकीर्ण है। उक्त बातें उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहीं। रविवार को राजधानी पटना के स्काउट एंड गाइड परिसर में आयोजित दो दिवसीय चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के समापन सत्र में वे बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।

उन्होंने ऋग्वेद, अथर्ववेद और उपनिषदों से संदर्भ प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिस ब्रह्म की चर्चा और तपस्या हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष की और हमारे पूर्वजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी उसे आगे बढ़ाया उसी अवधारणा को कार्ल सेगन ने अपनी पुस्तक ‘दि कॉसमॉस’ में लिखा है। उन्होंने मैकडोनेल और किथ द्वारा रचित वैदिक इंडेक्स की चर्चा करते हुए भी भारत के राष्ट्र होने का अर्थ बताया।

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उन्होंने कहा कि एक खास विचार के लोगों द्वारा आधुनिकतावाद का संकीर्ण अर्थ लगाया जाता है कि पश्चिम का ऐसा अनुकरण करना जो प्रत्यक्ष रुप से दिखाई पड़ता है। इस मनोवृति से छुटकारा पाने के लिए ही चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव जैसे आयोजन किए जा रहे हैं।

समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख स्वांत रंजन ने कहा कि कोई भी भाषा या बोली केवल भाषा नहीं होती बल्कि वह अपने साथ एक संपूर्ण संस्कृति, आचरण और परंपरा लेकर चलती है। भारत जैसे बहुभाषी समाज में विभिन्न भाषाओं के साहित्य जैसे कन्नड़ साहित्य, तमिल साहित्य, मराठी साहित्य व अन्य भाषाओं के साहित्य का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए, ताकि इनका प्रसार हो और समाज के अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके। एक खास विचार के लोगों द्वारा आधारहीन तरीके से प्रेमचंद को संकीर्णता के दायरे में बांधने की कोशिश की गई लेकिन प्रो. कमल किशोर गोयनका ने बकायदा प्रेमचंद पर शोधकर सही तथ्य बताया। सही सूचना समाज तक नहीं पहुंचती है तो युवा दिग्भ्रमित होते हैं। विश्वविद्यालयों में लंबे समय तक इस तरह के कुत्सित प्रयास होते रहे। इसी में सुधार हेतु चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव जैसे आयोजन देशभर में किए जा रहे हैं।

मंचासीन अतिथि डॉ. इंदिरा दांगी, पीएन सिंह, काशी बैठा, डॉ. मोहन सिंह, हृदय ना. दीक्षित, स्वांत रंजन, रविशंकर प्रसाद, कुमार दिनेश व दिलमणि देवी (बाएं से दाएं) और स्मृतिचिह्न व प्रमाणपत्रों के साथ निबंध प्रतियोगिता के विजेता

विशेष अतिथि कुमार दिनेश ने आमजन के घरों में रामचरितमानस का दैनिक पाठ बंद होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस राज्य के शिक्षा मंत्री ने मानस को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की थी, उसी भूमि पर उस तिरस्कार के प्रक्षालन के लिए यह आयोजन हो रहा है, यह भगवत कृपा है और हरि इच्छा है।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर भारतीय क्षेत्र कार्यवाह डॉ. मोहन सिंह ने कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि पहली बार आयोजित इस प्रकार के साहित्य उत्सव में युवाओं की भागीदारी। समानांतर सत्रों में करीब 300 लोगों की उपस्थिति हर समय रही। अपनी प्राचीन परंपराओं पर गौरव करने के लिए यह आयोजन शुरू किया गया है। अगले वर्ष फरवरी महीने में दरभंगा शहर में इसकी दूसरी कड़ी का आयोजन और बेहतर रूप में होगा।

समापन समारोह के अवसर पर प्रसिद्ध उपन्यासकार व कथाकार डॉ. इंदिरा दांगी को चंद्रगुप्त साहित्य शिखर सम्मान प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें 51 हज़ार रुपए का चेक, स्मृति चिन्ह एवं शॉल प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त तीन श्रेणियों यथा- मैट्रिक—इंटर, स्नातक तथा स्नातकोत्तर—शोध श्रेणी में तीन-तीन पुरस्कार, इस प्रकार कुल नौ पुरस्कार निबंध लेखन के विजेताओं को प्रदान किए गए।

इस अवसर पर समापन समारोह के अध्यक्ष काली बैठा, पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद, चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के संयोजक प्रो. राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, सहसंयोजक मिथिलेश कुमार सिंह मंच पर उपस्थित रहे। मंच संचालन डॉ. दीप्ति कुमारी ने किया।

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