राममंदिर पर मध्यस्थता कमेटी : बखेड़े से बचने के लिए एक और बखेड़ा?

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नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज राम जन्मभूमि मामले में बड़ा फैसला देते हुए इस विवाद को मध्यस्थता के लिए भेज दिया। कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए तीन सदस्यों की एक कमेटी के गठन का निर्देश भी दिया। सेवानिवृत्त न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला को इस तीन सदस्यीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इसमें उनके अलावे आध्यात्मिक गुरू श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू को सदस्य बनाया गया है।

जस्टिस कलीफुल्ला, श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पंचू  सदस्य

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि मध्यस्थता की कार्यवाही उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होगी और यह प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू हो जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि मध्यस्थता करने वाली यह समिति चार सप्ताह के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट दायर करेगी और यह प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी हो जानी चाहिए। कोर्ट ने मध्यस्थता कार्यवाही की सफलता सुनिश्चित करने के लिए गोपनीयता पर बल देते हुए कहा कि प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं करेगा।

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भाजपा और ओवैसी ने उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता संबंधी इस ताजा फैसले पर जहां भाजपा नेताओं ने कहा कि कोर्ट के फैसले का स्वागत है, किंतु विवादित जमीन पर सिर्फ औ सिर्फ राम मंदिर ही बन सकता है, कोई मस्जिद नहीं। भाजपा नेता विनय कटियार, उमा भारती और सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक स्वर से कहा कि विवादित जमीन पर राम मंदिर था, जिसे बाबर ने गिराकर मस्जिद बनवाया था। अत: उस जमीन पर सिर्फ और सिर्फ राम मंदिर का ही निर्माण होना चाहिए। वहीं मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस मध्यस्थता कमेटी में श्रीश्री रविशंकर के नाम पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि उन्हें इससे बाहर किया जाना चाहिए। दूसरी तरफ बसपा नेत्री मायावती और सपा के अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया। उत्तर प्रदेश के मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। अगर यह मामला आपसी बातचीत से सुलझाया जा सकता है तो इससे अच्छी बात और कुछ नहीं हो सकती।

निर्मोही अखाड़े से जुड़े लोगों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले में मध्यस्थता का आदेश देने का स्वागत किया है। वहीं, महंत राजू दास का कहना है कि क्या अयोध्या में संत नहीं थे जो मध्यस्थता के लिए श्रीश्री रविशंकर को भेजा जा रहा है। साफ पता चल रहा है कि मामले को फिर से लटकाने की कोशिश हो रही है।

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