राजनीति में सुधार और उसे अपराधमुक्त करना समय की मांग

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पटना : एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) और बिहार इलेक्शन वाच ने बिहार की राजनीति को अपराधमुक्त करने और राजनीति में सुधार पर एक कार्यक्रम किया जिसमें कई राजनीतिक दलों के कार्यकत्ताओं के अलावा पटना हाइकोर्ट के पूर्व जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद, पूर्व डीजीपी अभयानंद और एडीआर के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर ने हिस्सा लिया।
पूर्व जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि सबसे पहले तो कोई भी सुधार अपने घर से करना चाहिए। हमें सबसे पहले अपने अंदर परिवर्तन लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज डेमोक्रेसी है ही नहीं। जो वोट पड़ते हैं, वो जाति के लिए या किसी खास विचार या संस्था के लिए पड़ते हैं। यदि राजीनीतिक दल सेवा करने के भाव से आते हैं तो फिर इतनी सुविधा क्यों लेते हैं। बार -बार सैलरी, पेंशन और सुविधा क्यों बढ़ाई जा रही है। आज जितने धर्म नहीं होंगे उससे ज्यादा तो पॉलिटिकल दल हो गए हैं। अखबारों में, टीवी में बड़े-बड़े विज्ञापन दिए जाते हैं और उसका कोई हिसाब किताब नहीं होता। एडीआर के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर ने कहा कि लोग सोचते हैं कि सारी गड़बडियां चुनाव के वक़्त होती हैं। लेकिन ऐसा सोचना गलत है। पैसों का ये सारा खेल कभी-कभी 1 साल पहले से शुरू हो जाता है। उन्होंने कहा कि एडीआर ने 2009 में 6,753 लोकसभा उम्मीदवारों के शपथ पत्र का विश्लेषण किया। चुनाव में अपनी उम्मीदवारी दर्ज करवाते वक़्त प्रत्याशी शपथ पत्र दाखिल करता है जिसमें उसकी सारी डिटेल मौजूद रहती है। 6,753 में से मात्र 4 उम्मीदवारों ने माना कि उन्होंने चुनाव में ज्यादा पैसे खर्च किये। जबकि उनमें से 30 उम्मीदवारों ने कहा कि निर्धारित राशि के 90 से 95 प्रतिशत खर्च किया। बाकी बचे 6,719 उम्मीदवारों ने कहा कि उन्होंने निर्धारित राशि का महज़ 45 से 55 परसेंट ही रुपये खर्च किये। उन्होंने कहा कि दूसरी तरफ राजनीतिज्ञ कहते हैं कि चुनाव में खर्चे की सीमा बढ़ाया जाना चाहिए और यह बढ़ाया भी जाता है। मुम्बई के एक सार्वजनिक सभा मे एक प्रमुख राजनीतिक दल के नेता ने कहा था कि उसने चुनाव में 8 करोड़ रुपये खर्च किये थे, जबकि अपने शपथ पत्र में मात्र 19 लाख रुपये खर्च दिखाए थे। जगदीप छोकर ने कहा कि इससे एक बात तो साबित होती है कि चुनाव में बेइंतहा पैसे खर्च होते हैं और ये सब काला धन है। अतः लोकतंत्र को बचाने के लिए नागरिकों को एकजुट होकर संघर्ष करना पड़ेगा।
मानस द्विवेदी

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