पटना की आन बान शान “गांधी मैदान”, यहां की शामों की रौनक “गांधी मैदान”, दशहरा से लेकर ईद की नमाज, राजनीतिक रैली से लेकर सरस मेला का है गवाह “गांधी मैदान”
“गांधी मैदान” पटना वासी इस जगह और नाम से खूब वाकिफ होंगे। बिहार की राजधानी पटना का इसे सिटी सेंटर भी कहें तो गलत नहीं होगा। न्यूज और टेलीविजन के माध्यम से पटना के साथ साथ अन्य शहरों में भी चर्चित है ये गांधी मैदान।
लेकिन, क्या मौजूदा समय में इसकी और इसके आस- पास की स्थिति, सिटी सेंटर कहलाने लायक है? लगभग 1.25 km की चौहद्दी वाली इस मैदान के चारों तरफ घूम कर देखा जाए तो, पूर्व में रीजेंट और मोना जैसे मशहूर सिनेमा घर, उद्योग भवन, खादी मॉल है। पश्चिम में, SBI बिहार झारखंड की मुख्य शाखा, बिस्कोमान भवन है। उत्तर में, बांकीपुर बस अड्डा, श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल, और बापू सभागार है। दक्षिण में, मौर्या और पनाश जैसे बड़े होटल, RBI और एग्जीबिशन रोड है। सरल भाषा में कहें तो, सरकारी और गैरसरकारी इंडस्ट्री का हब है गांधी मैदान।
शाम की समय में गांधी मैदान की खूबसूरती
शाम की समय में अगर आकाश की ऊंचाइयों से देखा जाए तो, गांधी मैदान पटना की खूबसूरती पर चार चांद लगाते दिखेगा। लोगों की भीड़ से यहां की रौनक और भी ज्यादा नजर आने लगती है। इसके आस पास के स्थान को भी गांधी मैदान एरिया के नाम से ही जाना जाता है। पटना में किसी भी प्रकार का मुख्य आयोजन गांधी मैदान से ही संपन्न होता है।
26 जनवरी का ध्वजारोहण हो या 15 अगस्त की झांकी, ठंड में सजने वाली लहासा और कश्मीरी उलेन मार्केट एवं पुस्तक मेला भी यही पर लगाया जाता है। बिहार दिवस के मौके पर भी बड़े-बड़े कलाकार यही से पटनावासियों को झूमातें हैं। यह मैदान पूरे शहर और शहर वासियों के लिए इतना महवपूर्ण होते हुए भी इसकी मौजूदा स्थिति देखकर ऐसा लगता है जैसे, इसके साथ नाइंसाफी हो रही है। गांधी मैदान को जितना सम्मान मिलना चाहिए, हम उसे उतनी इज्जत नहीं दे रहें हैं।
पार्किंग की व्यवस्था
इसमें कोई दोराय नहीं कि, गांधी मैदान का इलाका बिजनेस हब बना हुआ है। निश्चित, यहां व्यापार कर रहे व्यापारियों की चांदी होगी। लेकिन, इतने सारे शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट, सिनेमा हॉल आदि होने के बावजूद किसी ने भी पार्किंग की व्यवस्था नहीं कराई है। गाड़ियों की पार्किंग व्यवस्था नहीं होने के कारण लोग अपनी सवाड़ी को सड़क के किनारे पार्क करने पर मजबूर हैं। जिससे आने-जाने वाले लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सड़क की चौड़ाई वाजिब होने के बाद भी अक्सर गाड़ियों की लंबी कतार लग जाती है। लोग जाम में फंसे रहते हैं। पार्किंग की समस्या होने के कारण कुछ लोग सड़क किनारे अपनी सावड़ी को यूं खड़ा कर चले जाते हैं जैसे कि, सड़क पर उनके बाद कोई गाड़ी आयेगी ही नहीं। सिर्फ यही नहीं, जाम लगने का कारण सड़क किनारे लगी अनाधिकृत दुकानें भी हैं। ऐसी दुकानों ने फ्रेजर रोड की तरफ बढ़ने वाले आधे रास्ते पर अपना कब्जा जमाया हुआ है।
बन गया है खुला शौचालय
मैदान और उसके बाहर सड़क किनारे चलते हुए एक अजीब सी बदबू नाक से होते हुए मस्तिस्क तक जाकर मनुष्य के अच्छे मिजाज़ का गुड़ गोबर करती है। यह दुर्गंध असल में कुछ असमाजिक तत्वों के द्वारा अपने ही शहर के दीवारों पर की गई पेशाब से आ रही होती है। कुछ लोगों की सड़क किनारे पेशाब करने की आदत राह चलते लोगों के लिए परेशानी का शबब और बीमारियों का घर हुआ है। जगह-जगह पर सुलभ शौचालयों की व्यवस्था होने के बावजूद लोग सड़क किनारे धाराप्रवाह करने से बाज नहीं आते हैं। शायद ऐसे असमाजिक तत्व शौचालय का इस्तमाल करना ही नहीं जानते हैं।
चारों तरफ फैली है बू
गांधी मैदान गेट नंबर 7 से लेकर आदर्श थाना से होते हुए आरबीआई के पास तक, गेट नंबर 10, गेट नंबर 1 के दोनों तरफ और कारगिल चौक तक गंदी बू और पेशाब की बहती धाराएं नजर आती है। क्या ऐसे नजारों से शहर की शोभा बढ़ती है? नहीं! यह तो धब्बा है उन लोगों पर जो ऐसी हरकतें करते हैं। साथ ही धब्बा है उन लोगों की सोच पर जो अपने ही शहर को गंदा करते हैं और उन्हें इस बात का कोई अफसोस भी नहीं हैं।
कूड़ा कूड़ेदान में डालें
गर्मी बहुत है इसलिए पानी की बोतल खरीदना अति आवश्यक हो जाता है। गांधी मैदान के बाहर आस-पास खाने- पीने की पूर्ण व्यवस्था है इसलिए, भूख लगने पर पेट पूजन भी संभव है। लेकिन, उसी पानी की बोतल और खाने की रैपर को सड़क पर फेंक देना कहां तक उचित है? आइसक्रीम तो खाना है लेकिन, उसके पैकेट को कूड़ेदान में न डालकर सड़क पर फेंक देना है। यही तो करते हैं लोग।
खुद को बदलें, शहर को साफ़ बनाएं
जगह-जगह कूड़ेदान की व्यवस्था होने पर भी कचरा सड़क पर फैलाने की आदत पुरानी है। क्योंकि आज तक ऐसे लोगों ने खुद को बदलने का प्रयत्न नहीं किया है। यह समस्या सिर्फ गांधी मैदान की नहीं बल्कि पूरे शहर की है। शहर के हर गली मोहल्ले में इस तरह के दृश्य देखने को मिलेंगे। इसका कारण भी हम और आप ही हैं। एक बार अपनी आंखें बंद कर के कल्पना कीजिए कि, बिना कचरों के ढेर के, बिना सड़क पर फैले कचरे के यह शहर कितना खूबसूरत लगता है।
गांधी मैदान DM के अंतर्गत आता है और सड़क DDC के अंतर्गत आता है। मैदान और सड़क की समस्या को दो अलग कार्यालयों में देखा जाएगा। लेकिन, मामला गांधी मैदान और उससे जुड़े हुए जगहों की है। साथ ही यह एक ऐसा मसला है जिसे सुलझाना अति आवश्यक है।
सवाल है कि, हम कब तक सारी समस्याओं का जिम्मा सरकार पर थोपेंगे? क्या हमारी कोई जिम्मेदारी हमारा कोई कर्तव्य नहीं है? यह सारी समस्याएं आम जन से ही है। और इसका समाधान भी आम जन ही है। तो फिर क्यों न अपने घर के साथ-साथ अपने इस पटना शहर को भी स्वक्ष रखें जिससे हमारे आस-पास का वातावरण साफ रहे और हम भी स्वस्थ रहें। हमारी पहचान हमारे शहर से है, यह शहर हमारा घर है। तो क्यों न इसे स्वच्छ बना कर हम भी इसकी पहचान बनें। अपने शहर की प्रशंसा का कारण बनें।